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Saturday, 29 December 2018

आए हो मेरी जिंदगी में तुम बहार बन के

10:52 0
आए हो मेरी जिंदगी में तुम बहार बन के

मेरी जिंदगी खुली किताब की तरह थी। उस किताब में लोगों के लिए प्यार और हमदर्दी के सिवा कुछ नहीं था। मैं अपने दोस्तों के लिए कुछ भी कर सकती थी और मेरी इस आदत ने मुझे परेशानी में डाल दिया था। एक वक्त ऐसा भी आया जब मैं बिल्कुल अकेली हो गई थी। मैं उन दिनों 12वीं के एग्जाम की तैयारी कर थी, जब तुम मेरी लाइफ में आए थे। मैं बहुत टूट चुकी थी। हर कोई मुझे बातें सुनाता था, जबकि मेरी कोई गलती नहीं थी। मैं तो बस अपनी दोस्त की जिंदगी बचा रही थी और सबने मुझको ही गलत समझ लिया था। अपनी पर्सनल दुश्मनी निकालने के लिए सभी ने मुझे बेवजह बदनाम करना चाहा। उस वक्त तुमने मेरा हाथ थामकर मुझे सहारा दिया। तुमने मुझे उस मुश्किल दौर से निकाला था। हालांकि, मैं इतनी बार धोखा खा चुकी थी कि मैं तुम पर भी भरोसा नहीं कर पा रही थी। तुम मुझे समझाने की कोशिश करते लेकिन मैं हमेशा तुमसे दूर ही रहती। मुझे बहुत देर बाद अहसास हुआ था तुम्हारे प्यार का। तुम मुझसे कहते थे कि मैं तुम्हारा हाथ कभी नहीं छोड़ूंगा और तुमने ऐसा किया भी। तुम आज भी मेरे साथ हो। तुम्हारे घरवाले जानते हैं कि मैं तुम्हारी गर्लफ्रेंड हूं और बहुत ही जल्द हमारी शादी होने वाली है। तुम मुझे अपने पापा से मिलवाने वाले हो यह सोचकर मैं काफी एक्साइटेड हूं। मैं भी उनसे मिलना चाहती हूं। मेरी जिंदगी में आने के लिए और मुझे अपनाने के लिए तुम्हारा शुक्रिया अमित। आज के दिन मैं तुमसे बस यही कहना चाहती हूं 'आए हो मेरी जिंदगी में तुम बहार बन के'...आई लव यू अमित।

Wednesday, 14 November 2018

इस प्यार को क्या नाम दू

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इस प्यार को क्या नाम दू

सौरभ बचपन से पढ़ने में अच्छा था, वह अपने माता-पिता के साथ पटना में रहता था.उसने अपनी स्कूलिंग भी पटना से ही की थी, और कॉलेज की भी पढ़ाई पटना से ही पूरी की. हलाकि वह पढ़ने में तेज होने के साथ साथ देखने में भी स्मार्ट था, लेकिन उसकी किस्मत अच्छी नहीं थी, वह भी सिर्फ एक मामले में. वह थी लड़कियों के मामले में. उसे स्कूल से ले कर कॉलेज तक जो भी लड़की पसंद आयी किसी लड़की ने उसका साथ नहीं दिया, भले सौरभ ने लड़कियों से सच्चा प्यार किया था, अब आप सोच रहे होंगे की भला इतनी लड़कियों पर ट्राई करने वाला सौरभ सच्चा प्यार कैसे कर सकता है, तो बता दे की वो सच्चा प्यार की तलाश में ही लड़कियों पर ट्राई करता था, कुछ से तो उसने सिद्दत वाली मोहोब्बत की, लेकिन लड़कियों को सौरभ तो पसंद आता था, लेकिन उसका मोहोब्बत नहीं, शायद लड़कियां अब सिद्दत वाली मोहोब्बत से घबराती हैं, क्योँकि उन्हें अपने इज्जत के साथ साथ अपने माता-पिता की भी इज्जत प्यारी थी, लेकिन सौरभ का सोच जरा हट कर था, उसका मानना था की अगर वह सच्चा प्यार, सिद्दत से करता है तो लड़कियां भी उससे वैसा ही प्यार करे, और तो और वह प्यार शुरू करता था की बात शादी पर ले आता था, भला कोई लड़की इतनी जल्दी शादी के लिए हामी कैसे भर दे, यह बात सौरभ को समझ ही नहीं आती थी, इसलिए उसका प्यार ज्यादा दिनों तक नहीं टिकता था, और जल्दी ही टूट जाता था, फिर सौरभ गम के अँधेरे में डूब जाता था, फिर कोई लड़की पसंद आती थी तो सौरभ उसके साथ जिंदगी के हसीं सपने बुनने लगता था. इसी क्रम में ग्रेजुशन पूरा करने के बाद उसकी जॉब दवाई कम्पनी में हो गयी. कम्पनी अच्छी थी, इसलिए सौरभ की सेलरी भी अच्छी थी, वह खुश था, लेकिन इस कम्पनी में उसे उसे जीवन संगिनी नहीं मिल पायी, तभी उसके एक दोस्त ने इससे भी अच्छी कम्पनी में काम करने का मौका दिया और सौरभ दूसरी कंपनी में चला गया, इस कम्पनी में उसे पहले कम्पनी का तजुर्बा काम आया, जिसकी वजह से उसे इस कम्पनी में पोस्ट के साथ साथ सैलरी भी ज्यादा हो गया, अब सौरभ और खुश हो गया, लेकिन इस कंपनी को ज्वाइन करने के बाद उसे ट्रेनिंग के लिए दिल्ली जाना पड़ा, जहाँ उसके साथ साथ और भी लड़के और लड़कियां ट्रेनिंग करने के लिए आये थे, जिनमे एक लड़की जिसका नाम सुरभि था, वो भी आयी थी, हलाकि सुरभि का पोस्ट और सैलरी दोनों सौरभ से ज्यादा था लेकिन ट्रेनिंग के दौरान सौरभ और सुरभि के आँखें कई बार टकरायी, सुरभि देखने में बहुत सुन्दर थी सुन्दर होने के साथ साथ उसे मार्केटिंग का भी पूरा ज्ञान था, दो दिनों तक सिर्फ दोनों एक दूसरे को देखते रहे, फिर तीसरे दिन मौका देख कर सौरभ ने दोस्ती का हाथ सुरभि की तरफ बढ़ाया, जिसे सुरभि ने हस्ते हुए थाम लिया, फिर दोनों में बात चीत शुरू हुई, सुरभि ने बताया की उसका घर कानपुर है और उसके पिता उद्योगपति हैं लेकिन वह खुद अपने पैरो पर खड़ा होना चाहती है वह खुद कुछ करना चाहती है इसलिए यह कम्पनी ज्वाइन की है, सुरभि की बात सुन कर सौरभ खुश हुआ, और उसे सुरभि से कब प्यार हो गया, उसे खुद पता नहीं चला, सौरभ कई बार अपने प्यार का इजहार उससे करना चाहता था लेकिन कभी कह नहीं पाया, एक रात दोनों लंच साथ कर रहे थे, लंच करते हुए दोनों को बहुत लेट हो गया सुरभि ने सौरभ को अपने यहाँ ही रुकने को बोला, सौरभ मान गया, और सुरभि सौरभ को ले कर अपने फ्लैट में ले गयी, जहाँ सुरभि अकेले रहती थी , इसलिए फ्लैट में बेड भी एक था, रात को दोनों एक ही बेड पर सोये हुए थे ,

सौरभ को पूरा मौका था की वह अपने प्यार का इजहार कर दे लेकिन मालूम नहीं उसका दिल उसे कहने से रोक रहा था, और कब उसकी आँख लग गयी उसे खुद मालुम नहीं चला और वह सो गया, सुबह उठा तो सुरभि चाय ले कर हाजिर थी, सौरभ चुप चाप चाय पिया और फ्रेश हो कर तैयार हो गया, इसी बिच सुरभि ने नाश्ता तैयार कर दिया और खुद भी तैयार होने चली गयी, फिर दोनों एक साथ नाश्ता किये और ट्रेनिंग सेंटर की तरफ बढ़ गए , कब ट्रेनिंग पूरा हुआ सौरभ को पता ही नहीं चला और उसे वापस अपने शहर पटना लौटना पड़ा. लेकिन उसे सुरभि के साथ बिताये हर पल याद आ रहे थे, अब उसका मन काम में नहीं लग रहा था, वह एक महीना के बाद फिर से दिल्ली चला गया और सुरभि के फ्लैट पर पहुंच गया, जिसे देख कर सुरभि को आस्चर्य हुआ की अचानक से सौरभ कैसे आ गया, उस रात सौरभ ने सुरभि से अपने हाले दिल को बयान कर दिया, और उससे शादी करने की इक्छा जताई, जिसे सुन कर सुरभि चौंक गयी और उसने साफ़ साफ़ कह दिया की पहले वह कुछ बनाना चाहती है फिर शादी के बारे में सोचेगी, सौरभ ने कहा की शादी कर ले फिर उसे जो बनाना है बन जाए वह नहीं रोकेगा, इस पर सुरभि ने कहा की ठीक है, वह उसके साथ एक दिन बाजार घूमे, सौरभ मान गया, अगले दिन जब सुरभि बाजार गयी और अपने क्लाइंट से जिस तरह बात कर रही थी हसी मजाक कर थी सौरभ को अच्छा नहीं लग रहा था, लेकिन सुरभि लगातार जब तक बाजार में रही उसका व्यवहार सभी के साथ वैसा ही रहा, शायद इसलिए तो वह दिल्ली में नंबर वन पर थी, लेकिन सौरभ को यह बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा था . शाम को सुरभि ने सिर्फ इतना कहा की वह रोज इसी तरह अपने क्लाइंट से बात करती है और अपना टारगेट पूरा करती है, क्या उसे यह पसंद है सौरभ सोच में पड़ गया, उसने कहा, कुछ हद तक तो ठीक है लेकिन इतना भी फ्रेंक होना सही नहीं है, इस पर सुरभि ने बोला की अगर वह फ्रेंक नहीं होगी तो उसका टारगेट पूरा नहीं होगा, उसे टॉप करना है, इसलिए वह ऐसा ही व्यवहार रखेगी. अब सौरभ सोच में पड़ गया और बिना कुछ बोले वापस पटना आ गया, उसने काफी सोचा और बाद में उसके दिल ने कहा, जैसी भी है सुरभि उसकी है इसलिए उसका हर शर्त उसे मंजूर है, यह सोच कर वह वापस दिल्ली चला गया, लेकिन यह क्या सुरभि सौरभ को देखते ही बोली तुम फिर से वापस आ गए, तुम्हे खुद तो काम करना नहीं है मुझे भी नहीं करने दोगे, क्योँकि कम्पनी ने सौरभ को निकल दिया यह सुचना सभी को मिल चुकी थी, हलाकि यह सुचना सौरभ को नहीं मिली थी लेकिन जब उसने मेल चेक किया तो उसे मालूम पड़ा की वह कम्पनी से निकाल दिया गया है, यह देख कर और सुरभि से ऐसी बात सुन कर वह वापस पटना लौट आया और वापस पहले वाली कम्पनी को ज्वॉइन कर लिया और उस कम्पनी में उसने बहुत मेहनत की जिसकी वजह से आज कम्पनी उसे पुरे भारत में अपने वर्कर्स को मोटीवेट करने के लिए सौरभ को भेजती है. हलाकि सौरभ को सुरभि नहीं मिली लेकिन सुरभि की बात उसके दिल को इतना ठेस पहुंचा गयी की आज वह पुरे भारत में कम्पनी को रिप्रेजेंट करता है.

प्यार में हाँ-ना

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प्यार में हाँ-ना

यूँ तो प्यार में मोहोब्बत और झगड़ा आम बात है, लेकिन यहाँ कहानी यूँ है की लड़की को मालूम ही नहीं की उसे प्यार है या फिर नहीं. बात दरसल ये है की जुली चार भाई-बहन है. जिसमे जुली तीसरे नंबर है, उससे बड़ी एक बहन और एक भाई है, जबकि एक बहन उससे छोटी है. जुली के पिता प्राइवेट जॉब ही करते थे, लेकिन अचानक से बीमार पड़ने की वजह से वो जॉब नहीं कर पाए और साडी जिम्मेदारी जुली के बड़े भाई और बहन पर आ गयी, उस समय जुली ने अपनी दसवीं की परीक्षा ही दी थी की उसे पढ़ाई छोड़ना पड़ा. इधर उसकी बड़ी बहन ने घर की जिम्मेदारी उठाने के बजाय एक लड़के से शादी करके उसके साथ रहने चली गयी और बड़ा भाई भी सबो से रिश्ता तोड़ कर दिल्ली चला गया, अब घर में बच गए जुली उसकी छोटी बहन और उसके माता-पिता. हलाकि जुली की माँ ने छोटा मोटा काम करके घर चलाने की कोशिश की लेकिन जितना पैसा वो कमाती, उससे ज्यादा खर्च घर का था, ऊपर से जुली के पिता के दवाई का खर्चा अलग था. अब जुली ने भी जॉब ढूंढनी शुरू कर दी, लेकिन दसवीं पास जुली को भला क्या जॉब मिलता, लेकिन तभी उसे साडी की दुकान में सेल्स गर्ल का काम मिल गया और उसने वह काम ही शुरू कर दिया, इस तरह से घर का खर्च जुली ने उठाना श्युरु कर दिया, लेकिन आखिर कब तक महंगाई बढ़ रही थी और आमदनी सीमित थी, इसलिए जुली दूसरा भी जॉब ढूंढने लगी, इसी क्रम में उसकी मुलाकात रोहित नाम के लड़के से हुई और रोहित ने उसका अच्छा जॉब लगवा देने की बात कही, रोहित स्मार्ट था, बोलने भी काफी तेज था, जुली रोहित के बिलकुल करीब चली गयी यह सोचते हुए की अगर जॉब ना भी मिले तो वह रोहित से शादी कर लेगी और अपनी जिंदगी सेट कर लेगी, लेकिन रोहित के दिमाग में ऐसा कुछ नहीं था वह तो सिर्फ जुली का यूज़ करना चाहता था, हुआ भी यही जुली को ना ही जॉब मिली ना ही रोहित, क्योँकि रोहित ने जुली को शादी का आश्वासन ही दिया और उससे शारीरिक संबंध बनाया, जब जुली ने रोहित पर शादी के लिए प्रेसर बनाया तो रोहित मुकुर गया. यह देख जुली को बहुत बुरा लगा, इधर जॉब छोड़ने की वजह से जुली के घर की माली हालत भी खराब हो गयी, ऐसे में जुली की मदद नीरज ने की और जुली को एक स्टोर में जॉब लगवा दिया, यहाँ जुली को अच्छा पैसा मिलता था, हलाकि नीरज जुली के करीब जाने की कोशिश की लेकिन वो कहते हैं ना, दूध का जला हुआ झाझ भी फूँक फूँक कर पीता है कुछ ऐसा ही जुली के साथ था.

नीरज ने काफी कोशिश की लेकिन जुली उसके करीब नहीं आयी, और नीरज अपने जॉब में लग गया, वह जुली को भुला दिया था. इधर स्टोर में ही काम करने वाला राजेश जुली के करीब आने लगा, और धीरे धीरे दोनों करीब आ गए, एक बार फिर दोनों के बिच प्यार का रिश्ता इतना बढ़ गया की दोनों ने अपनी सीमा लांघ दिया, और एक बार फिर जुली ने राजेश से शादी की बात शुरू कर दी, इस पर राजेश टाल मटोल करने लगा और दिल्ली चला गया अच्छे जॉब के लिए, उसने बताया की वह दिल्ली में सेट होने के बाद जुली को यहीं बुला लेगा और उससे शादी भी करेगा लेकिन इस बात को अब एक साल हो गए ना राजेश आया ना ही जुली को ले गया, एक बार फिर जुली अकेली हो गयी, और अकेलेपन में उसे नीरज की याद आयी, उसे तब ध्यान आया की काश वह नीरज के प्यार को समझ पाती, लेकिन तब तक तो देर हो चुकी थी, हलाकि जुली ने काफी कोशिशे की वह वापस नीरज की जिंदगी में आ जाए, लेकिन नीरज तब ताकि बहुत आगे बढ़ चूका था, और उसने जुली से सिर्फ इतना कहा की किसी का इंतजार तभी तक किया जा सकता है, जब तक की उसे उम्मीद हो लेकिन तुम्हारे हाँ-ना के चक्कर में मैंने काफी अपने दिल को जोड़ा और तोडा आखिर कार मैंने तुम्हे दिल से निकाल दिया और तुम्हे भुला कर अपनी नयी जिंदगी शुरू कर दी, अब इस जिंदगी में तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं है, आज भी जुली की आँखें नीरज के प्यार को ढूंढती है, लेकिन नीरज ने जुली को सदा के लिए गुड बाय कह दिया……

प्यार की चोट

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प्यार की चोट


बात कुछ साल पहले की है। लखनऊ में एक लड़की अपनी मैडिकल नर्सिंग की पढ़ाई खत्म करके किसी अच्छी नौकरी की तलाश में थी। यूँ तो सुधा ने अपनी पढ़ाई बहुत ही अच्छे काॅलेज से पूरी करी थी लेकिन उसे फिर भी नौकरी नहीं मिल पा रही थी। एक दिन उसके पुराने प्रोफेसर ने बताया कि लखनऊ के एक बड़े मनोवैज्ञानिक अस्पताल में नर्स की जरूरत है जो रोगियों की देखभाल अच्छी तरह कर सके। प्रोफेसर साहब के कहने पर वह नौकरी सुधा को दे दी गयी।
सुधा ने खूब मन लगाकर मरीजों की देखभाल करना शुरू कर दिया। कभी-कभी तो कुछ चिड़चिड़े मरीज सुधा को बिना बात के डाँट-डपट देते लेकिन वह उनकी किसी बात का बुरा नहीं मानती थी तथा अपना कर्तव्य पूरी तन्मन्यता से करती थी। अस्पताल में कई वार्ड भी थे जहाँ मरीज रहकर अपना ईलाज करवाते और ठीक होकर अपने घर चले जाते थे।
एक बार सुधा के अस्पताल में अशोक नाम का एक मरीज लाया गया जो एक बहुत ही सम्पन्न परिवार का था। परिवार वाले अस्पताल के बारे में सुनकर आये थे कि जो मरीज भी यहाँ आता है वो यहाँ से ठीक होकर ही जाता है। उसके पिता ने डाक्टरों और सुधा की ओर बड़ी आशा भरी निगाहों से देखा। सबने अशोक के पिता को तसल्ली दी और कहा भरोसा रखें सब ठीक हो जायेगा।
अशोक शुरू-शुरू में काफी गुस्से वाला था, हमेशा छोटी-छोटी बात पर गुस्सा होकर सामान इधर-उधर फैंक दिया करता था लेकिन सुधा के धैर्य और सेवा भाव के कारण हर बात को मानने लगा और समय से दवा खाकर आराम करने लगा। सुधा की मेहनत के कारण अशोक की हालत तेजी से सुधरने लगी। सुधा अपना ज्यादा से ज्यादा वक्त अशोक के साथ बिताने लगी। उसको सुबह कपड़े बदलवाने, नाश्ता देने, दवा देना, दोपहर का खाना देना और शाम को चाय आदि के बाद खाना खिलाकर रात की दवा देने के बाद ही वह अपने नर्स क्वाटर में जाती थी।
अशोक को तो जैसे सुधा की आदत सी पड़ गयी थी। सुधा के जरा सा लेट हो जाने पर वह बैचेन होकर बच्चों की तरह मचलने लगता और सुधा को देखते ही शांत हो जाता था। धीरे-धीरे सुधा भी अशोक को पसंद करने लगी और उसे पता ही नहीं लगा कि उसे कब अशोक से प्यार हो गया।
समय बीतता गया और वह दिन भी आया जब डाक्टरों ने अशोक को एकदम स्वस्थ घोषित कर दिया और उसके पिता अशोक को लेने अस्पताल आ पहुँचे। अशोक को अपने पास से जाते देख सुधा बहुत उदास हो गयी लेकिन वह अशोक को कुछ न कह सकी। उसे लगता था कि शायद अशोक एक दिन उसके पास आयेगा और कहेगा कि वो तुम्हारे बिना नहीं रह सकता। लेकिन समय बीतता गया, अशोक नहीं आया। किसी ने बताया कि अशोक की शादी भी हो गयी है। ऐसा सुनकर सुधा का तो दिल ही टूट गया। परन्तु वह अपने काम में व्यस्त रहकर अपने दिल पर मरहम लगाने लगी। समय बीतने के साथ सुधा अपने दुःख से उबरने लगी।
एक दिन अस्पताल में एक बहुत ही आकर्षक नवयुवक अमर आया जो दिमागी बीमार था। उसने आते ही अस्पताल में तोड़-फोड़ शुरू कर दी। जो भी उसके पास जाता अमर उसे डरा-धमकाकर भगा देता। न वह समय से दवा लेता न ही समय से खाना खाता अथवा सोता था। डाक्टर साहब ने अमर को संभालने का जिम्मा भी सुधा को ही सौंपा। सुधा तो अभी-कभी अशोक की यादों से उभरी थी वह अमर को संभालने को तैयार न थी। लेकिन अपने फर्ज और मरीज की मनोस्थिति के चलते वह उसे संभालने को तैयार हो गयी। शुरू-शुरू में तो सुधा को अमर की गालियाँ और नाराजगी झेलनी पड़ी लेकिन धीरे-धीरे वह भी शांत होने लगा। अब सुधा के धैर्य के कारण अमर उसकी बात को बड़े गौर से सुनता और सब बात मानने लगा

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प्यार की चोट-Love Story In Hindi Language With A Message
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Last updated Nov 14, 2018  31


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बात कुछ साल पहले की है। लखनऊ में एक लड़की अपनी मैडिकल नर्सिंग की पढ़ाई खत्म करके किसी अच्छी नौकरी की तलाश में थी। यूँ तो सुधा ने अपनी पढ़ाई बहुत ही अच्छे काॅलेज से पूरी करी थी लेकिन उसे फिर भी नौकरी नहीं मिल पा रही थी। एक दिन उसके पुराने प्रोफेसर ने बताया कि लखनऊ के एक बड़े मनोवैज्ञानिक अस्पताल में नर्स की जरूरत है जो रोगियों की देखभाल अच्छी तरह कर सके। प्रोफेसर साहब के कहने पर वह नौकरी सुधा को दे दी गयी।
सुधा ने खूब मन लगाकर मरीजों की देखभाल करना शुरू कर दिया। कभी-कभी तो कुछ चिड़चिड़े मरीज सुधा को बिना बात के डाँट-डपट देते लेकिन वह उनकी किसी बात का बुरा नहीं मानती थी तथा अपना कर्तव्य पूरी तन्मन्यता से करती थी। अस्पताल में कई वार्ड भी थे जहाँ मरीज रहकर अपना ईलाज करवाते और ठीक होकर अपने घर चले जाते थे।
एक बार सुधा के अस्पताल में अशोक नाम का एक मरीज लाया गया जो एक बहुत ही सम्पन्न परिवार का था। परिवार वाले अस्पताल के बारे में सुनकर आये थे कि जो मरीज भी यहाँ आता है वो यहाँ से ठीक होकर ही जाता है। उसके पिता ने डाक्टरों और सुधा की ओर बड़ी आशा भरी निगाहों से देखा। सबने अशोक के पिता को तसल्ली दी और कहा भरोसा रखें सब ठीक हो जायेगा।
अशोक शुरू-शुरू में काफी गुस्से वाला था, हमेशा छोटी-छोटी बात पर गुस्सा होकर सामान इधर-उधर फैंक दिया करता था लेकिन सुधा के धैर्य और सेवा भाव के कारण हर बात को मानने लगा और समय से दवा खाकर आराम करने लगा। सुधा की मेहनत के कारण अशोक की हालत तेजी से सुधरने लगी। सुधा अपना ज्यादा से ज्यादा वक्त अशोक के साथ बिताने लगी। उसको सुबह कपड़े बदलवाने, नाश्ता देने, दवा देना, दोपहर का खाना देना और शाम को चाय आदि के बाद खाना खिलाकर रात की दवा देने के बाद ही वह अपने नर्स क्वाटर में जाती थी।
अशोक को तो जैसे सुधा की आदत सी पड़ गयी थी। सुधा के जरा सा लेट हो जाने पर वह बैचेन होकर बच्चों की तरह मचलने लगता और सुधा को देखते ही शांत हो जाता था। धीरे-धीरे सुधा भी अशोक को पसंद करने लगी और उसे पता ही नहीं लगा कि उसे कब अशोक से प्यार हो गया।
समय बीतता गया और वह दिन भी आया जब डाक्टरों ने अशोक को एकदम स्वस्थ घोषित कर दिया और उसके पिता अशोक को लेने अस्पताल आ पहुँचे। अशोक को अपने पास से जाते देख सुधा बहुत उदास हो गयी लेकिन वह अशोक को कुछ न कह सकी। उसे लगता था कि शायद अशोक एक दिन उसके पास आयेगा और कहेगा कि वो तुम्हारे बिना नहीं रह सकता। लेकिन समय बीतता गया, अशोक नहीं आया। किसी ने बताया कि अशोक की शादी भी हो गयी है। ऐसा सुनकर सुधा का तो दिल ही टूट गया। परन्तु वह अपने काम में व्यस्त रहकर अपने दिल पर मरहम लगाने लगी। समय बीतने के साथ सुधा अपने दुःख से उबरने लगी।
एक दिन अस्पताल में एक बहुत ही आकर्षक नवयुवक अमर आया जो दिमागी बीमार था। उसने आते ही अस्पताल में तोड़-फोड़ शुरू कर दी। जो भी उसके पास जाता अमर उसे डरा-धमकाकर भगा देता। न वह समय से दवा लेता न ही समय से खाना खाता अथवा सोता था। डाक्टर साहब ने अमर को संभालने का जिम्मा भी सुधा को ही सौंपा। सुधा तो अभी-कभी अशोक की यादों से उभरी थी वह अमर को संभालने को तैयार न थी। लेकिन अपने फर्ज और मरीज की मनोस्थिति के चलते वह उसे संभालने को तैयार हो गयी। शुरू-शुरू में तो सुधा को अमर की गालियाँ और नाराजगी झेलनी पड़ी लेकिन धीरे-धीरे वह भी शांत होने लगा। अब सुधा के धैर्य के कारण अमर उसकी बात को बड़े गौर से सुनता और सब बात मानने लगा।

लेकिन एक आदत जो वो छोड़ ही नहीं पा रहा था वो थी उसकी जोर-जोर से चीजे़े बेचने की आदत। यूँ तो सुधा अमर की बातों में ज्यादा रुचि नहीं लेती थी पर एक दिन उसके जोर-जोर से चीजे़े बेचने वाली आवाज के कारण रुककर अमर के पास पहुंची और पूछा कि तुम क्या बेच रहे हो तो अमर ने बहुत ही मासूमियत से जवाब दिया कि वह तो बर्फ का तेल बेच रहा है। यह सुनकर सुधा की बहुत जोरों से हँसी छूट पड़ी।
दरअसल अमर के पागलपन की असल वजह उसकी बेवफा प्रेमिका मोना थी जो अमर से ज्यादा अमर की दौलत को चाहती थी। वो कभी भी अमर को प्यार के वह पल न दे पायी जो एक प्रेमी अपने प्रेमिका से चाहता है। उसकी इसी बेरुखी से अमर का प्यार और ईमानदारी से विश्वास ही उठ गया। मोना की बेवफाई ने उसके दिल और दिमाग को कुछ इस तरह झकझौरा कि अमर की दिमागी हालात कुछ खराब हो गये और इलाज के लिए इस अस्पताल में आया।
सुधा के अच्छे व्यवहार और सेवा ने धीरे-धीरे अमर के दिल में एक खास जगह बना ली। अब वह हर वक्त सुधा के बारे में ही सोचने लगा। उसे हर वक्त सुधा के आने का इंतजार रहता कि कब सुबह हो और सुधा आये। धीरे-धीरे वह सुधा को दिल की गहराईयों से प्यार करने लगा। लेकिन सुधा इस स्थिति से अनजान थी क्योंकि उसने तो केवल अशोक को ही दिल से प्यार किया था जो उसे मिल न सका इसलिए वह किसी को अशोक की जगह नहीं रख पा रही थी।
एक दिन अमर ने फैसला किया कि चाहे कुछ भी हो वो सुधा को अपने प्यार का इजहार कर देगा। उसने अस्पताल कर्मचारी से एक फूलों का गुलदस्ता मंगवाकर अपने प्यार के भावों को एक चिट्ठी में लिखकर सुधा के कमरे में पहुंचाया। सुधा ने कांपते हाथों से वह खत खोला और धीरे-धीरे पढ़ने लगी। पढ़ते-पढ़ते वो अपने पुराने समय में पहुंच गयी जब वह अशोक को बेहद प्यार करती थी। जब सुधा ने पूरा खत पढ़ा और आखिर में अमर का नाम पाया तो वह अपने आप को सम्भाल न पायी क्योंकि एक अशोक था जिसे उसने अपने दिल से चाहा लेकिन वह उसे पा न सकी और एक अमर है जो सुधा को जी-जान से प्यार करता है। वह इन दोनों के प्यार को समझ नहीं पा रही थी कि वह आखिर इस प्यार को कैसे अपनाये।
इसी उधेड़बुन में सुधा ने कमरा बंद किया और आराम कुर्सी पर बैठकर सोचने लगी। सोचते-सोचते सुधा की अश्रुधारा अविरल बह निकली जा रही थी और वह एकदम जड़वत बैठी रह गयी।
तभी कमरे में डाक्टर साहब आये और सुधा की तारीफ करने लगे। डाक्टर बोले चले जा रहे थे लेकिन सुधा एकदम चुपचाप बैठी रही। डाक्टर साहब को चिन्ता हुई। उन्होने सुधा को ध्यान से देखा तो पाया कि वह एकदम विक्षप्त लग रही है। डाक्टर ने फौरन नर्स को बुलवाया और सुधा को चैक करने लगे तो पाया कि सुधा मानसिक रोगी की तरह बर्ताव कर रही है। अब डाक्टर साहब ने नर्स से कह कर सुधा को स्पेशल वार्ड में भिजवाया जहाँ उसकी अच्छी देखभाल हो सके। दुसरों का दुःख दूर करते-करते बेचारी सुधा खुद अपना मानसिक संतुलन खो बैठी थी।।

(हमें जिन्दगी में अपना व्यवहार ऐसा रखना चाहिए जिससे किसी की भावनाओं को ठेस न पहुँचे)