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Thursday, 27 December 2018

ईश्वर अच्छा ही करता है-अकबर बीरबल

22:58 0
बीरबल एक ईमानदार तथा धर्म-प्रिय व्यक्ति था। वह प्रतिदिन ईश्वर की आराधना बिना नागा किया करता था। इससे उसे नैतिक व मानसिक बल प्राप्त होता था। वह अक्सर कहा करता था कि "ईश्वर जो कुछ भी करता है मनुष्य के भले के लिए ही करता है। कभी-कभी हमें ऐसा लगता है कि ईश्वर हम पर कृपादृष्टि नहीं रखता, लेकिन ऐसा होता नहीं। कभी-कभी तो उसके वरदान को भी लोग शाप समझने की भूल कर बैठते हैं। वह हमको थोड़ी पीड़ा इसलिए देता है ताकि बड़ी पीड़ा से बच सकें।"

एक दरबारी को बीरबल की ऐसी बातें पसंद न आती थीं। एक दिन वही दरबारी दरबार में बीरबल को संबोधित करता हुआ बोला, "देखो, ईश्वर ने मेरे साथ क्या किया-कल-शाम को जब मैं जानवरों के लिए चारा काट रहा था तो अचानक मेरी छोटी उंगली कट गई। क्या अब भी तुम यही कहोगे कि ईश्वर ने मेरे लिए यह अच्छा किया है ?"
कुछ देर चुप रहने के बाद बोला बीरबल, "मेरा अब भी यही विश्वास है क्योंकि ईश्वर जो कुछ भी करता है मनुष्य के भले के लिए ही करता है।"

सुनकर वह दरबारी नाराज हो गया कि मेरी तो उंगली कट गई और बीरबल को इसमें भी अच्छाई नजर आ रही है। मेरी पीड़ा तो जैसे कुछ भी नहीं। कुछ अन्य दरबारियों ने भी उसके सुर में सुर मिलाया।
तभी बीच में हस्तक्षेप करते हुए बादशाह अकबर बोले, "बीरबल हम भी अल्लाह पर भरोसा रखते हैं, लेकिन यहां तुम्हारी बात से सहमत नहीं। इस दरबारी के मामले में ऐसी कोई बात नहीं दिखाई देती जिसके लिए उसकी तारीफ की जाए।"
बीरबल मुस्कराता हुआ बोला, "ठीक है जहांपनाह, समय ही बताएगा अब।"

तीन महीने बीत चुके थे। वह दरबारी, जिसकी उंगली कट गई थी, घने जंगल में शिकार खेलने निकला हुआ था। एक हिरन का पीछा करते वह भटककर आदिवासियों के हाथों में जा पड़ा। वे आदिवासी अपने देवता को प्रसन्न करने के लिए मानव बलि में विश्वास रखते थे। अतः वे उस दरबारी को पकड़कर मंदिर में ले गए, बलि चढ़ाने के लिए। लेकिन जब पुजारी ने उसके शरीर का निरीक्षण किया तो हाथ की एक उंगली कम पाई।
"नहीं, इस आदमी की बलि नहीं दी जा सकती।" मंदिर का पुजारी बोला, "यदि नौ उंगलियों वाले इस आदमी को बलि चढ़ा दिया गया तो हमारे देवता बजाय प्रसन्न होने के क्रोधित हो जाएंगे, अधूरी बलि उन्हें पसंद नहीं। हमें महामारियों, बाढ़ या सूखे का प्रकोप झेलना पड़ सकता है। इसलिए इसे छोड़ देना ही ठीक होगा।"
और उस दरबारी को मुक्त कर दिया गया।

अगले दिन वह दरबारी दरबार में बीरबल के पास आकर रोने लगा।
तभी बादशाह भी दरबार में आ पहुंचे और उस दरबारी को बीरबल के सामने रोता देखकर हैरान रह गए।
"तुम्हें क्या हुआ, रो क्यों रहे हो ?" अकबर ने सवाल किया।
जवाब में उस दरबारी ने अपनी आपबीती विस्तार से कह सुनाई। वह बोला, "अब मुझे विश्वास हो गया है कि ईश्वर जो कुछ भी करता है, मनुष्य के भले के लिए ही करता है। यदि मेरी उंगली न कटी होती तो निश्चित ही आदिवासी मेरी बलि चढ़ा देते। इसीलिए मैं रो रहा हूं, लेकिन ये आंसू खुशी के हैं। मैं खुश हूं क्योंकि मैं जिन्दा हूं। बीरबल के ईश्वर पर विश्वास को संदेह की दृष्टि से देखना मेरी भूल थी।"
अकबर ने मंद-मंद मुस्कराते हुए दरबारियों की ओर देखा, जो सिर झुकाए चुपचाप खड़े थे। अकबर को गर्व महसूस हो रहा था कि बीरबल जैसा बुद्धिमान उसके दरबारियों में से एक है।

कौन किसका नौकर है-अकबर बीरबल,

22:57 1
जब कभी दरबार में अकबर और बीरबल अकेले होते थे तो किसी न किसी बात पर बहस छिड़ जाती थी। एक दिन बादशाह अकबर बैंगन की सब्जी की खूब तारीफ कर रहे थे।
बीरबल भी बादशाह की हां में हां मिला रहे थे। इतना ही नहीं, वह अपनी तरफ से भी दो-चार वाक्य बैंगन की तारीफ में कह देते थे।

अचानक बादशाह अकबर के दिल में आया कि देखें बीरबल अपनी बात को कहां तक निभाते हैं- यह सोचकर बादशाह बीरबल के सामने बैंगन की बुराई करने लगे। बीरबल भी उनकी हां में हां मिलाने लगे कि बैंगन खाने से शारीरिक बीमारियाँ हो जाती हैं इत्यादि।

बीरबल की बात सुनकर बादशाह अकबर हैरान हो गए और बोले- "बीरबल! तुम्हारी इस बात का यकीन नहीं किया जा सकता। कभी तुम बैंगन की तारीफ करते हो और कभी बुराई करते हो। जब हमने इसकी तारीफ की तो तुमने भी इसकी तारीफ की और जब हमने इसकी बुराई की तो तुमने. भी इसकी बुराई की, आखिर ऐसा क्यों?"
बीरबल ने नरम लहजे में कहा- "बादशाह सलामत! मैं तो आपका नौकर हूं बैंगन का नौकर नहीं।

लहरें गिनना-अकबर बीरबल

22:53 0
एक दिन अकबर बादशाह के दरबार में एक व्यक्ति नौकरी मांगने के लिए अर्जी लेकर आया। उससे कुछ देर बातचीत करने के बाद बादशाह ने उसे चुंगी अधिकारी बना दिया।

बीरबल, जो पास ही बैठा था, यह सब देख रहा था। उस आदमी के जाने के बाद वह बोला- "यह आदमी जरूरत से ज्यादा चालाक जान पड़ता है। बेईमानी किये बिना नहीं रहेगा।"

थोड़े ही समय के बाद अकबर बादशाह के पास उस आदमी की शिकायतें आने लगीं कि वह प्रजा को काफी परेशान करता है तथा रिश्वत लेता है। अकबर बादशाह ने उस आदमी का तबादला एक ऐसी जगह करने की सोची, जहां उसे किसी भी प्रकार की बेईमानी का मौका न मिले। उन्होंने उसे घुड़साल का मुंशी मुकर्रर कर दिया। उसका काम था घोड़ों की लीद उठवाना।

मुंशीजी ने वहां भी रिश्वत लेना आरम्भ कर दिया। मुंशीजी साईसों से कहने लगे कि तुम घोड़ों को दाना कम खिलाते हो, इसलिए मुझे लीद तौलने के लिए भेजा गया है। यदि तुम्हारी लीद तौल में कम बैठी तो अकबर बादशाह से शिकायत कर दूंगा। इस प्रकार मुंशीजी प्रत्येक घोड़े के हिसाब से एक रुपया लेने लगे।
अकबर बादशाह को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने मुंशीजी को यमुना की लहरें गिनने का काम दे दिया। वहां कोई रिश्वत व बेईमानी का मौका ही नहीं था।

लेकिन मुंशीजी ने वहां भी अपनी अक्त के घोड़े दौड़ा दिये। उन्होंने नावों को रोकना आरम्भ कर दिया कि नाव रोको, हम लहरें गिन रहे हैं। अत: नावों को दो-तीन दिन रुकना पड़ता था। नाव वाले बेचारे तंग आ गए। उन्होंने मुंशीजी को दस रुपये देना आरम्भ कर दिया।

अकबर बादशाह को जब इस बात का पता लगा तो उन्होंने लिखकर आज्ञा दी- "नावों को रोको मत, जाने दो?"
उस मुंशी ने उस लिखित में थोड़ा सुधार कर टंगवा दिया – नावों को रोको, मत जाने दो - और वसूली करने लगे.
अंततः बादशाह को उस मुंशी को सार्वजनिक सेवा से बाहर करना ही पड़ा.

सही और गलत के बीच का अंतर-अकबर बीरबल

22:51 0
एक बार अकबर बादशाह ने सोचा, "हम रोज-रोज न्याय करते हैं। इसके लिए हमें सही और गलत का पता लगाना पड़ता है। लेकिन सही और गलत के बीच आखिर कितना अंतर होता है?"

अगले दिन अकबर बादशाह ने यह प्रश्न दरबारियों से पूछा।

दरबारी इस प्रश्न का क्या उत्तर देते? दरबारियों के लिए तो बीरबल ही सभी समस्याओं की कुँजी थे, इसलिए सभी दरबारियों की नजरें बीरबल पर टिक गईं।

बादशाह समझ गए कि किसी के पास इस प्रश्न का जवाब नहीं है। यदि किसी के पास जवाब है भी तो उसमें जवाब देने की हिम्मत नहीं है, इसलिए उन्होंने बीरबल से कहा, "बीरबल, तुम्हीं बताओ, सही और गलत में कितना अन्तर है?"

बीरबल ने तुरन्त उत्तर दिया, "बादशाह सलामत! सही और गलत के बीच में सिर्फ चार अंगुल का अंतर है।"

अकबर चौंके। वह तो समझते थे कि इस प्रश्न का कोई जवाब ही नहीं हो सकता!  उन्हें बीरबल का जवाब सुन कर बहुत आश्चर्य हुआ। "बीरबल! अब तुम समझाओ कि तुमने सही और गलत के बीच का यह अन्तर किस प्रकार मापा?"

बीरबल ने कहा,"जहांपनाह! सीधी सी बात है। आँख और कान के बीच चार अँगुल का अन्तर है या नहीं?"

अकबर ने कहा, "हाँ, है! लेकिन मेरे प्रश्न से इसका क्या संबंध है?"

बीरबल ने कहा, "आपके प्रश्न से इसका संबंध है, जहांपनाह! आप जिसे अपनी आंखों से देखते हैं, वही सही है। जिसे आप अपने कानों से सुनते हैं, वह गलत भी हो सकता है। कानों से सुनी हुई बात हमेशा सच नहीं होती, इसलिए सही और गलत के बीच चार अंगुल का ही अन्तर माना जाएगा।"

यह सुनकर बादशाह चकित होकर बोले, "वाह! बीरबल, वाह! तुम्हारी बुद्धि और चतुराई बेजोड़ है।

बुद्धिमानो से भी बुद्धिमान-अकबर बीरबल

22:50 0


एक दिन बादशाह ने बीरबल से कहा, बीरबल कोई एक ऐसा आदमी ढूंढकर लाओं जो बुद्धिमानों से भी ज्यादा बुद्धिमान हो। जैसा हुक्म जहापनाहं! बहुत जल्दी ऐसा आदमी आपके सामने हाजिर कर दूंगा, पर इसके लिए समय और धन की जरुरत पडेगी। 500 स्वर्ण मोहरे ले लो और तुम्हे एक सप्ताह का समय दिया जाता है।

बीरबल समय और धन पाकर अपने घर पर आराम करने लगे। आधे से ज्यादा धन को उन्होंने दिन दुखीयों की सहायता में लगा दिया। सातवे दिन बीरबल ने इधर-उधर घुमकर गाय-भैस चराते हुए एक ग्वाले को पकडा उसे नहला धुलाकर अच्छे वस्त्र पहनाऐ। फिर सौ स्वर्ण मुद्राएं देकर उसे राज दरबार मं ले गये। साथ ही उसे रास्ते में अच्छी तर सिखा पढा दिया की वहां जाकर उसे क्या करना है ।

दरबार में पहुचकर ग्वाले ने निःशब्द हाथ जोडकर बादशाह को प्रणाम किया, उसके बाद बीरबल ने बादशाह से कहा आपके आदेशानुसार मैं बुद्धिमानों से भी बुद्धिमान व्यक्ति ले आया हूं । बादशाह ने ग्वाले से पूछा- तुम कहां रहते हो ? तुम्हारा नाम क्या है ? तुम कौन सा विशेष कार्य जानते हो ? बादशाह ने उससे प्रश्न पर प्रश्न किये परन्तु वह तो बीरबल द्वारा सीखा, पढ़ाकर लाया गया था। अतः उसनें कोई उत्तर नही दिया।

बादशाह सवाल करते रहे और वह व्यक्ति खामोशी से बैठा उनका चेहरा देखता रहा। बादशाह को लगा कि यह उनका अपमान है कि मैं बोलता जा रहा हूं और यह व्यक्ति खामोश है। जब उसकी ख़ामोशी उनसे और बर्दाश्त न हुई तो झल्लाकर वह बोले- यह तुम किस बेवकूफ को पकड लाये बीरबल ? यह गुंगा बहरा तो नही है? मेरे किसी प्रश्न का उत्तर इसने नहीं दिया।

तब बीरबल ने मुस्कुराकर कहा यह इसकी बुद्धिमतता हैं अन्नदाता, बुजू्रर्गो से इसने सुन रखा हैं कि राजा और अपने से अधिक बुद्धिमान व्यक्ति के सामने चुप रहने पर ही भलाई है। इसलिए यह उन सुनी हुई बातों पर अमल कर रहा है। आपको शायद याद नही कि आपने मुझसे कहा था कि कोइ ऐसा व्यक्ति ढूंढकर लाओं जो बुद्धिमानों से भी बुद्धिमान हो। यह वही आदमी हैं बादशाह अकबर बीरबल की हाजिर जवाबी सुनकर मुस्कुराये और ग्वाले को इनाम देकर विदा किया।

रेत से चीनी अलग करो-अकबर बीरबल

22:48 0
बादशाह अकबर के दरबार की कार्यवाही चल रही थी, तभी एक दरबारी हाथ में शीशे का एक मर्तबान लिए वहां आया।

"क्या है इस मर्तबान में ?" पूछा बादशाह ने।
वह बोला, "इसमें रेत और चीनी का मिश्रण है।"
"वह किसलिए ?" फिर पूछा अकबर ने।

"माफी चाहता हूँ हुजूर," दरबारी बोला, "हम बीरबल की काबलियत को परखना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि वह रेत से चीनी का दाना-दाना अलग कर दे।"

बादशाह अब बीरबल से मुखातिब हुए, "देख लो बीरबल, रोज ही तुम्हारे सामने एक नई समस्या रख दी जाती है।" वह मुस्कराए और आगे बोले, "तुम्हें बिना पानी में घोले इस रेत में से चीनी को अलग करना है।"

"कोई समस्या नहीं जहांपना," बोला बीरबल, "यह तो मेरे बाएं हाथ का काम है।" कहकर बीरबल ने वह मर्तबान उठाया और चल दिया दरबार से बाहर। बाकी दरबारी भी पीछे थे। बीरबल बाग में पहुंचकर रुका और मर्तबान से भरा सारा मिश्रण आम के एक बड़े पेड़ के चारों ओर बिखेर दिया।

"यह तुम क्या कर रहे हो ?" एक दरबारी ने पूछा।
बीरबल बोला, "यह तुम्हें कल पता चलेगा।"
अगले दिन फिर वे सभी उस आम के पेड़ के निकट जा पहुंचे। वहां अब केवल रेत पड़ी थी, चीनी के सारे दाने चीटियां बटोर कर अपने बिलों में पहुंचा चुकी थीं। कुछ चीटियां तो अभी भी चीनी के दाने घसीट कर ले जाती दिखाई दे रही थीं।
"लेकिन सारी चीनी कहां चली गई ?" पूछा एक दरबारी ने।
"रेत से अलग हो गई।" बीरबल ने उसके कान में फुसफुसाते हुए कहा। सभी जोरों से हंस पड़े।
बादशाह अकबर को जब बीरबल की चतुराई ज्ञात हुई तो बोले, "अब तुम्हें चीनी ढूंढ़नी है तो चीटियों के बिल में घुसना होगा।"
सभी दरबारियों ने जोरदार ठहाका लगाया और बीरबल का गुणगान करने लगे।

सब बह जाएंगे-अकबर बीरबल

22:46 0
बादशाह अकबर और बीरबल शिकार पर गए हुए थे। उनके साथ कुछ सैनिक तथा सेवक भी थे। शिकार से लौटते समय एक गांव से गुजरते हुए बादशाह अकबर ने उस गांव के बारे में जानने की जिज्ञासा हुई। उन्होंने इस बारे में बीरबल से कहा तो उसने जवाब दिया—"हुजूर, मैं तो इस गांव के बारे में कुछ नहीं जानता, किंतु इसी गांव के किसी बाशिन्दे से पूछकर बताता हूं।"

बीरबल ने एक आदमी को बुलाकर पूछा—"क्यों भई, इस गांव में सब ठीकठाक तो है न ?"

उस आदमी ने बादशाह को पहचान लिया और बोला—"हुजूर आपके राज में कोई कमी कैसे हो सकती है।"

"तुम्हारा नाम क्या है ?" बादशाह ने पूछा।
"गंगा।"
"तुम्हारे पिता का नाम ?"
"जमुना और मां का नाम सरस्वती है ?"
"हुजूर, नर्मदा।"

यह सुनकर बीरबल ने चुटकी ली और बोला—"हुजूर तुरन्त पीछे हट जाइए। यदि आपके पास नाव हो तभी आगे बढ़ें वरना नदियों के इस गांव में तो डूब जाने का खतरा है।"

यह सुनकर बादशाह अकबर हंसे बगैर न रह सके।

छोटा बांस, बड़ा बांस-अकबर बीरबल

22:44 0
एक दिन अकबर व बीरबल बाग में सैर कर रहे थे। बीरबल लतीफा सुना रहा था और अकबर उसका मजा ले रहे थे। तभी अकबर को नीचे घास पर पड़ा बांस का एक टुकड़ा दिखाई दिया। उन्हें बीरबल की परीक्षा लेने की सूझी।

बीरबल को बांस का टुकड़ा दिखाते हुए वह बोले, "क्या तुम इस बांस के टुकड़े को बिना काटे छोटा कर सकते हो ?"

बीरबल लतीफा सुनाता-सुनाता रुक गया और अकबर की आंखों में झांका।

अकबर कुटिलता से मुस्कराए, बीरबल समझ गया कि बादशाह सलामत उससे मजाक करने के मूड में हैं।

अब जैसा बेसिर-पैर का सवाल था तो जवाब भी कुछ वैसा ही होना चाहिए था। बीरबल ने इधर-उधर देखा, एक माली हाथ में लंबा बांस लेकर जा रहा था। उसके पास जाकर बीरबल ने वह बांस अपने दाएं हाथ में ले लिया और बादशाह का दिया छोटा बांस का टुकड़ा बाएं हाथ में।

बीरबल बोला, "हुजूर, अब देखें इस टुकड़े को, हो गया न बिना काटे ही छोटा।"
बड़े बांस के सामने वह टुकड़ा छोटा तो दिखना ही था।
निरुत्तर बादशाह अकबर मुस्करा उठे बीरबल की चतुराई देखकर।

आधी धूप आधी छावं=अकबर बीरबल

22:42 0
एक दिन बादशाह अकबर ने खफा होकर बीरबल को नगर से बाहर जाने का आदेष दे दिया । मगर बीरबल तो हर हाल में खुष रहने वाला व्यक्ति था।

वह यह भी जानता था कि बादशाह अकबर सलामत का यह गुस्सा थोडे ही समय का है। शीघ्र ही उनकी नाराजगी दूर हो जायेगी, वे नगर से बाहर एक गांव में जा बसे।

अज्ञात वास करते-करते महीनों गुजर गये। न बादशाह अकबर ने उन्हें बुलाया और न ही वे आये। समय-समय पर बादशाह अकबर बीरबल को याद करके चिंता करते, मगर बीरबल का कोई अता-पता मालूम न होने से वे लाचार थै।

जब किसी प्रकार बीरबल का पता नही चला तो बादशाह अकबर ने उन्हे ढूंढने की तरकीब निकाली, उन्होने राज्य के चप्पे-चप्पे पर डिंडोरा पिटवा दिया कि जो शख्स आधी धूप-आधी छांया में हमारे पास आयेगा उसे एक हजार रुपये इनाम मे दिये जायेंगे।

  बहुत से लोगों ने इनाम पाने की कोशिश की पर किसी को
आधी धूप आधी छायं में होकर आने की युक्ति नहीं सुझी।

यह बात फैलते-फैलते बीरबल के कानों तक भी पहूंची । वह अपने घर के पास गरीब बढई को बुलाकर बोले- तुम एक चारपाई अपने सिर पर रखकर  बादशाह अकबर के पास जाओ और उनसे कहों कि मैं आधी धूप और आधी छायं में होकर आया हूं इसलिए मुझे इनाम मिलना चाहिए।

बडई बीरबल की बात मान एक चारपाई सिर पर रख बादशाह अकबर के पास पहूंचा और बोला बादशाह अकबर सलामत मैं आधी धूप और आधी छायं में चलकर आया हू। इसलिए मुझे इनाम के एक हजार रूप्ये मिलने चाहिए।

बादशाह अकबर ने उससे पुछा सच-सच बताओ , तुम्हे इस प्रकार की सलाह किसने दी। बादशाह अकबर सलामत कुछ दिनों पूर्व एक विद्वान हमारें गांव में आकर बसा है, लोग उसे बीरबल के नाम से पुकारते है। उसी के कहने पर मैंने यह कार्य किया।

बडई ने भोलेपन से कहा- बडई के मुख से बीरबल का नाम सुनकर बादशाह अकबर बडे प्रसन्न हुए। उन्होने खंजांची से बढई को एक हजार रूप्ये देने का आदेष दिया। फिर बढई के साथ अपने दो खास कर्मचारीयों को बीरबल को लाने को भेज दिया।

इस प्रकार बीरबल बादशाह अकबर के पास दोबारा पहूंच गये।

खाने के बाद लेटना-अकबर बीरबल

22:40 0
किसी समय बीरबल ने अकबर को यह कहावत सुनाई थी कि खाकर लेट जा और मारकर भाग जा-यह सयानें लोगों की पहचान है। जो लोग ऐसा करते हैं, जिन्दगी में उन्हें किसी भी प्रकार का दुख नहीं उठाना पड़ता।

एक दिन अकबर के अचानक ही बीरबल की यह कहावत याद आ गई।

दोपहर का समय था। उन्होंने सोचा, बीरबल अवश्य ही खाना खाने के बाद लेटता होगा। आज हम उसकी इस बात को गलत सिद्ध कर देंगे। उन्होंने एक नौकर को अपने पास बुलाकर पूरी बात समझाई और बीरबल के पास भेज दिया।

नौकर ने अकबर का आदेश बीरबल को सुना दिया।

बीरबल बुद्धिमान तो थे ही, उन्होंने समझ लिया कि बादशाह ने उसे क्यों तुरन्त आने के लिए कहा है। इसलिए बीरबल ने भोजन करके नौकर से कहा-"ठहरो, मैं कपड़े बदलकर तुम्हारे साथ ही चल रहा हूं।

उस दिन बीरबल ने पहनने के लिए चुस्त पाजामा चुना। पाजामे को पहनने के लिए वह कुछ देर के लिए बिस्तर पर लेट गए। पाजामा पहनने के बहाने वे काफी देर बिस्तर पर लेटे रहे। फिर नौकर के साथ चल दिए।

जब बीरबल दरबार में पहुंचे तो अकबर ने कहा-"कहो बीरबल, खाना खाने के बाद आज भी लेटे या नहीं ?" "बिल्कुल लेटा था जहांपनाह।" बीरबल की बात सुनकर अकबर ने क्रोधित स्वर में कहा-"इसका मतलब, तुमने हमारे हुक्म की अवहेलना की है। हम तुम्हें हुक्म उदूली करने की सजा देंगे। जब हमने खाना खाकर तुरन्त बुलाया था, फिर तुम लेटे क्यों ।

"बादशाह सलामत! मैंने आपके हुक्म की अवहेलना कहां की है। मैं तो खाना खाने के बाद कपड़े पहनकर सीधा आपके पास ही आ रहा हूं। आप तो पैगाम ले जाने वाले से पूछ सकते हैं। अब ये अलग बात है कि ये चुस्त पाजामा पहनने के लिए ही मुझे लेटना पड़ा था।" बीरबल ने सहज भाव से उत्तर दिया।

अकबर बादशाह बीरबल की चतुरता को समझ गए और मुस्करा पड़े।

सारा जग बेईमान है!-अकबर बीरबल

22:39 0
एक बार अकबर बादशाह ने बीरबल से शान से कहा - "बीरबल! हमारी जनता बेहद ईमानदार है और हमें कितना बहुत प्यार करती है"

बीरबल ने तुरन्त उत्तर दिया-"बादशाह सलामत! आपके राज्य में कोई भी पूरी तरह ईमानदार नहीं है, न ही वो आपसे ज्यादा प्यार करती है।

"यह तुम क्या कह रहे हो बीरबल?"?
मैं अपनी बात को साबित कर सकता हूं बादशाह सलामत!
"ठीक है, तुम हमें साबित करके दिखाओ। "बादशाह अकबर बोले।

बीरबल ने नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि बादशाह सलामत एक भोज करने जा रहे हैं। उसके लिए सारी प्रजा से अनुरोध है कि कल सुबह दिन निकलने से पहले हर आदमी एक-एक लोटा दूध डाल दे। कडाहे रखवा दिये गये हैं। उनमें हर आदमी दूध डाल जाये। हर आदमी ने यही सोचा कि जहां इतना दूध इकट्ठा होगा, वहां उसके एक लोटे पानी का क्या पता चलेगा? अत: हर आदमी कड़ाहों में पानी डाल गया।

सुबह जब अकबर ने उन कड़ाही को देखा, जिनमें जनता से दूध डालने को कहा गया था, तो दंग रह गये। उन कड़ाहों में तो केवल सफेद पानी था। अकबर को वस्तुस्थिति का पता चल गया.

हरे रंग का घोड़ा-अकबर बीरबल

22:30 0
एक दिन बादशाह अकबर घोड़े पर बैठकर शाही बाग में घूमने गए। साथ में बीरबल भी था। चारों ओर हरे-भरे वृक्ष और हरी-हरी घास देखकर अकबर को बहुत आनन्द आया। उन्हें लगा कि बगीचे में सैर करने के लिए तो घोड़ा भी हरे रंग का ही होना चाहिए।

उन्होंने बीरबल से कहा, "बीरबल मुझे हरे रंग का घोड़ा चाहिए। तुम मुझे सात दिन में हरे रंग का घोड़ा ला दो। यदि तुम हरे रंग का घोड़ा न ला सके तो हमें अपनी शक्ल मत दिखाना।" हरे रंग का घोड़ा तो होता ही नहीं है। अकबर और बीरबल दोनों को यह मालूम था। लेकिन अकबर को तो बीरबल की परीक्षा लेनी थी।

दरअसल, इस प्रकार के अटपटे सवाल करके वे चाहते थे कि बीरबल अपनी हार स्वीकार कर लें और कहें कि जहांपनाह मैं हार गया, मगर बीरबल भी अपने जैसे एक ही थे। बीरबल के हर सवाल का सटीक उत्तर देते थे कि बादशाह अकबर को मुंह की खानी पड़ती थी।

बीरबल हरे रंग के छोड़ की खोज के बहाने सात दिन तक इधर-उधर घूमते रहे। आठवें दिन वे दरबार में हाजिर हुए और बादशाह से बोले, "जहांपनाह! मुझे हरे रंग का घोड़ा मिल गया है।" बादशाह को आश्चर्य हुआ। उन्होंने कहा, "जल्दी बताओ, कहां है हरा घोड़ा ? बीरबर ने कहा, "जहांपनाह! घोड़ा तो आपको मिल जाएगा, मैंने बड़ी मुश्किल से उसे खोजा है, मगर उसके मालिक ने दो शर्त रखी हैं।

बादशाह ने कहा, "क्या शर्ते हैं ?

"पहली शर्त तो यह है कि घोड़ा लेने कि लिए आपको स्वयं जाना होगा।

"यह तो बड़ी आसान शर्त है। दूसरी शर्त क्या है ?

"घोड़ा खास रंग का है, इसलिए उसे लाने का दिन भी खास ही होगा। उसका मालिक कहता है कि सप्ताह के सात दिनों के अलावा किसी भी दिन आकर उसे ले जाओ।

अकबर बीरबल का मुंह देखते रह गए।

बीरबल ने हंसते हुए कहा, "जहांपनाह! हरे रंग का घोड़ा लाना हो, तो उसकी शर्तें भी माननी ही पड़ेगी।

अकबर खिलखिला कर हंस पड़े। बीरबल की चतुराई से वह खुश हुए। समझ गए कि बीरबल को मूर्ख बनाना सरल नहीं है।

पैसे की थैली किसकी-अकबर बीरबल

22:27 0
दरबार लगा हुआ था। बादशाह अकबर राज-काज देख रहे थे। तभी दरबान ने सूचना दी कि दो व्यक्ति अपने झगड़े का निपटारा करवाने के लिए आना चाहते हैं।

बादशाह ने दोनों को बुलवा लिया। दोनों दरबार में आ गए और बादशाह के सामने झुककर खड़े हो गए।

"कहो क्या समस्या है तुम्हारी?" बादशाह ने पूछा।

"हुजूर मेरा नाम काशी है, मैं तेली हूं और तेल बेचने का धंधा करता हूं और हुजूर यह कसाई है।
इसने मेरी दुकान पर आकर तेल खरीदा और साथ में मेरी पैसों की भरी थैली भी ले गया। जब मैंने इसे पकड़ा और अपनी थैली मांगी तो यह उसे अपनी बताने लगा, हुजूर अब आप ही न्याय करें।"

"जरूर न्याय होगा, अब तुम कहो तुम्हें क्या कहना है?" बादशाह ने कसाई से कहा। "हुजूर मेरा नाम रमजान है और मैं कसाई हूं, हुजूर, जब मैंने अपनी दुकान पर आज मांस की बिक्री के पैसे गिनकर थैली जैसे ही उठाई, यह तेली आ गया और मुझसे यह थैली छीन ली। अब उस पर अपना हक जमा रहा है, हुजूर, मुझ गरीब के पैसे वापस दिला दीजिए।"

दोनों की बातें सुनकर बादशाह सोच में पड़ गए। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वह किसके हाथ फैसला दें। उन्होंने बीरबल से फैसला करने को कहा।

बीरबल ने उससे पैसों की थैली ले ली और दोनों को कुछ देर के लिए बाहर भेज दिया। बीरबल ने सेवक से एक कटोरे में पानी मंगवाया और उस थैली में से कुछ सिक्के निकालकर पानी में डाले और पानी को गौर से देखा। फिर बादशाह से कहा- "हुजूर, इस पानी में सिक्के डालने से तेल जरा-सा भी अंश पानी में नहीं उभार रहा है। यदि यह सिक्के तेली के होते तो यकीनन उन पर सिक्कों पर तेल लगा होता और वह तेल पानी में भी दिखाई देता।"

बादशाह ने भी पानी में सिक्के डाले, पानी को गौर से देखा और फिर बीरबल की बात से सहमत हो गए।

बीरबल ने उन दोनों को दरबार में बुलाया और कहा- "मुझे पता चल गया है कि यह थैली किसकी है। काशी, तुम झूठ बोल रहे हो, यह थैली रमजान कसाई की है।"

"हुजूर यह थैली मेरी है।"काशी एक बार फिर बोला।

बीरबल ने सिक्के डले पानी वाला कटोरा उसे दिखाते हुए कहा- "यदि यह थैली तुम्हारी है तो इन सिक्कों पर कुछ-न-कुछ तेल अवश्य होना चाहिए, पर तुम भी देख लो… तेल तो अंश मात्र भी नजर नहीं आ रहा है।"

काशी चुप हो गया।

बीरबल ने रमजान कसाई को उसकी थैली दे दी और काशी को कारागार में डलवा दिया।

कवि और धनवान आदमी-अकबर बीरबल

22:25 0
एक दिन एक कवि किसी धनी आदमी से मिलने गया और उसे कई सुंदर कविताएं इस उम्मीद के साथ सुनाईं कि शायद वह धनवान खुश होकर कुछ ईनाम जरूर देगा। लेकिन वह धनवान भी महाकंजूस था, बोला, "तुम्हारी कविताएं सुनकर दिल खुश हो गया। तुम कल फिर आना, मैं तुम्हें खुश कर दूंगा।"

"कल शायद अच्छा ईनाम मिलेगा।" ऐसी कल्पना करता हुआ वह कवि घर पहुंचा और सो गया। अगले दिन वह फिर उस धनवान की हवेली में जा पहुंचा। धनवान बोला, "सुनो कवि महाशय, जैसे तुमने मुझे अपनी कविताएं सुनाकर खुश किया था, उसी तरह मैं भी तुमको बुलाकर खुश हूं। तुमने मुझे कल कुछ भी नहीं दिया, इसलिए मैं भी कुछ नहीं दे रहा, हिसाब बराबर हो गया।"

कवि बेहद निराश हो गया। उसने अपनी आप बीती एक मित्र को कह सुनाई और उस मित्र ने बीरबल को बता दिया। सुनकर बीरबल बोला, "अब जैसा मैं कहता हूं, वैसा करो। तुम उस धनवान से मित्रता करके उसे खाने पर अपने घर बुलाओ। हां, अपने कवि मित्र को भी बुलाना मत भूलना। मैं तो खैर वहां मैंजूद रहूंगा ही।"

कुछ दिनों बाद बीरबल की योजनानुसार कवि के मित्र के घर दोपहर को भोज का कार्यक्रम तय हो गया। नियत समय पर वह धनवान भी आ पहुंचा। उस समय बीरबल, कवि और कुछ अन्य मित्र बातचीत में मशगूल थे। समय गुजरता जा रहा था लेकिन खाने-पीने का कहीं कोई नामोनिशान न था। वे लोग पहले की तरह बातचीत में व्यस्त थे। धनवान की बेचैनी बढ़ती जा रही थी, जब उससे रहा न गया तो बोल ही पड़ा, "भोजन का समय तो कब का हो चुका ? क्या हम यहां खाने पर नहीं आए हैं ?"

"खाना, कैसा खाना ?" बीरबल ने पूछा।

धनवान को अब गुस्सा आ गया, "क्या मतलब है तुम्हारा ? क्या तुमने मुझे यहां खाने पर नहीं बुलाया है ?"

"खाने का कोई निमंत्रण नहीं था। यह तो आपको खुश करने के लिए खाने पर आने को कहा गया था।" जवाब बीरबल ने दिया। धनवान का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया, क्रोधित स्वर में बोला, "यह सब क्या है? इस तरह किसी इज्जतदार आदमी को बेइज्जत करना ठीक है क्या ? तुमने मुझसे धोखा किया है।"

अब बीरबल हंसता हुआ बोला, "यदि मैं कहूं कि इसमें कुछ भी गलत नहीं तो…। तुमने इस कवि से यही कहकर धोखा किया था ना कि कल आना, सो मैंने भी कुछ ऐसा ही किया। तुम जैसे लोगों के साथ ऐसा ही व्यवहार होना चाहिए।"

धनवान को अब अपनी गलती का आभास हुआ और उसने कवि को अच्छा ईनाम देकर वहां से विदा ली।

वहां मौजूद सभी बीरबल को प्रशंसाभरी नजरों से देखने लगे।

तोता ना खाता है ना पीता है- अकबर बीरबल

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एक बहेलीये को तोते में बडी ही दिलचस्पी थी. वह उन्हें पकडता, सिखाता और तोते के शौकीन लोगों को ऊँचे दामों में बेच देता था. एक बार एक बहुत ही सुन्दर तोता उसके हाथ लगा. उसने उस तोते को अच्छी-अच्छी बातें सिखायीं उसे तरह-तरह से बोलना सिखाया और उसे लेकर अकबर के दरबार में पहुँच गया. दरबार में बहेलिये ने तोते से पूछा – बताओ ये किसका दरबार है? तोता बोला, "यह जहाँपनाह अकबर का दरबार है". सुनकर अकबर बडे ही खुश हुए. वह बहेलिये से बोले, "हमें यह तोता चाहिये, बोलो इसकी क्या कीमत माँगते हो". बहेलीया बोला जहाँपनाह – सब कुछ आपका है आप जो दें वही मुझे मंजूर है. अकबर को जवाब पसंद आया और उन्होंने बहेलिये को अच्छी कीमत देकर उससे तोते को खरीद लिया.

महाराजा अकबर ने तोते के रहने के लिये बहुत खास इंतजाम किये. उन्होंने उस तोते को बहुत ही खास सुरक्षा के बीच रखा. और रखवालों को हिदायत दी कि इस तोते को कुछ नहीं होना चाहिये. यदि किसी ने भी मुझे इसकी मौत की खबर दी तो उसे फाँसी पर लटका दिया जायेगा. अब उस तोते का बडा ही ख्याल रखा जाने लगा. मगर विडंबना देखीये कि वह तोता कुछ ही दिनों बाद मर गया. अब उसकी सूचना महाराज को कौन दे?

रखवाले बडे परेशान थे. तभी उन्में से एक बोला कि बीरबल हमारी मदद कर सकता है. और यह कहकर उसने बीरबल को सारा वृतांत सुनाया तथा उससे मदद माँगी.

बीरबल ने एक क्षण कुछ सोचा और फिर रखवाले से बोला – ठीक है तुम घर जाओ महाराज को सूचना मैं दूँगा. बीरबल अगले दिन दरबार में पहुँचे और अकबर से कहा, "हुज़ूर आपका तोता…" अकबर ने पूछा – "हाँ-हाँ क्या हुआ मेरे तोते को?" बीरबल ने फिर डरते-डरते कहा – "आपका तोता जहाँपनाह…" हाँ-हाँ बोलो बीरबल क्या हुआ तोते को? "महाराज आपका तोता…." बीरबल बोला. "अरे खुदा के लिये कुछ तो कहो बीरबल मेरे तोते को क्या हुआ", अकबर ने खीजते हुए कहा.

"जहाँपनाह, आपका तोता ना तो कुछ खाता है ना कुछ पीता है, ना कुछ बोलता है ना अपने पँख फडफडाता है, ना आँखे खोलता है और ना ही…" राज ने गुस्से में कहा – "अरे सीधा-सीधा क्यों नहीं बोलते की वो मर गया है". बीरबल तपाक से बोला – "हुज़ूर मैंने मौत की खबर नहीं दी ब्लकि ऐसा आपने कहा है, मेरी जान बख्शी जाये".

और महाराज निरूत्तर हो गये.