Sunday 13 January 2019
Saturday 29 December 2018
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मेरी जिंदगी खुली किताब की तरह थी। उस किताब में लोगों के लिए प्यार और हमदर्दी के सिवा कुछ नहीं था। मैं अपने दोस्तों के लिए कुछ भी कर सकती थी और मेरी इस आदत ने मुझे परेशानी में डाल दिया था। एक वक्त ऐसा भी आया जब मैं बिल्कुल अकेली हो गई थी। मैं उन दिनों 12वीं के एग्जाम की तैयारी कर थी, जब तुम मेरी लाइफ में आए थे। मैं बहुत टूट चुकी थी। हर कोई मुझे बातें सुनाता था, जबकि मेरी कोई गलती नहीं थी। मैं तो बस अपनी दोस्त की जिंदगी बचा रही थी और सबने मुझको ही गलत समझ लिया था। अपनी पर्सनल दुश्मनी निकालने के लिए सभी ने मुझे बेवजह बदनाम करना चाहा। उस वक्त तुमने मेरा हाथ थामकर मुझे सहारा दिया। तुमने मुझे उस मुश्किल दौर से निकाला था। हालांकि, मैं इतनी बार धोखा खा चुकी थी कि मैं तुम पर भी भरोसा नहीं कर पा रही थी। तुम मुझे समझाने की कोशिश करते लेकिन मैं हमेशा तुमसे दूर ही रहती। मुझे बहुत देर बाद अहसास हुआ था तुम्हारे प्यार का। तुम मुझसे कहते थे कि मैं तुम्हारा हाथ कभी नहीं छोड़ूंगा और तुमने ऐसा किया भी। तुम आज भी मेरे साथ हो। तुम्हारे घरवाले जानते हैं कि मैं तुम्हारी गर्लफ्रेंड हूं और बहुत ही जल्द हमारी शादी होने वाली है। तुम मुझे अपने पापा से मिलवाने वाले हो यह सोचकर मैं काफी एक्साइटेड हूं। मैं भी उनसे मिलना चाहती हूं। मेरी जिंदगी में आने के लिए और मुझे अपनाने के लिए तुम्हारा शुक्रिया अमित। आज के दिन मैं तुमसे बस यही कहना चाहती हूं 'आए हो मेरी जिंदगी में तुम बहार बन के'...आई लव यू अमित।
Thursday 27 December 2018
एक दरबारी को बीरबल की ऐसी बातें पसंद न आती थीं। एक दिन वही दरबारी दरबार में बीरबल को संबोधित करता हुआ बोला, "देखो, ईश्वर ने मेरे साथ क्या किया-कल-शाम को जब मैं जानवरों के लिए चारा काट रहा था तो अचानक मेरी छोटी उंगली कट गई। क्या अब भी तुम यही कहोगे कि ईश्वर ने मेरे लिए यह अच्छा किया है ?"
कुछ देर चुप रहने के बाद बोला बीरबल, "मेरा अब भी यही विश्वास है क्योंकि ईश्वर जो कुछ भी करता है मनुष्य के भले के लिए ही करता है।"
सुनकर वह दरबारी नाराज हो गया कि मेरी तो उंगली कट गई और बीरबल को इसमें भी अच्छाई नजर आ रही है। मेरी पीड़ा तो जैसे कुछ भी नहीं। कुछ अन्य दरबारियों ने भी उसके सुर में सुर मिलाया।
तभी बीच में हस्तक्षेप करते हुए बादशाह अकबर बोले, "बीरबल हम भी अल्लाह पर भरोसा रखते हैं, लेकिन यहां तुम्हारी बात से सहमत नहीं। इस दरबारी के मामले में ऐसी कोई बात नहीं दिखाई देती जिसके लिए उसकी तारीफ की जाए।"
बीरबल मुस्कराता हुआ बोला, "ठीक है जहांपनाह, समय ही बताएगा अब।"
तीन महीने बीत चुके थे। वह दरबारी, जिसकी उंगली कट गई थी, घने जंगल में शिकार खेलने निकला हुआ था। एक हिरन का पीछा करते वह भटककर आदिवासियों के हाथों में जा पड़ा। वे आदिवासी अपने देवता को प्रसन्न करने के लिए मानव बलि में विश्वास रखते थे। अतः वे उस दरबारी को पकड़कर मंदिर में ले गए, बलि चढ़ाने के लिए। लेकिन जब पुजारी ने उसके शरीर का निरीक्षण किया तो हाथ की एक उंगली कम पाई।
"नहीं, इस आदमी की बलि नहीं दी जा सकती।" मंदिर का पुजारी बोला, "यदि नौ उंगलियों वाले इस आदमी को बलि चढ़ा दिया गया तो हमारे देवता बजाय प्रसन्न होने के क्रोधित हो जाएंगे, अधूरी बलि उन्हें पसंद नहीं। हमें महामारियों, बाढ़ या सूखे का प्रकोप झेलना पड़ सकता है। इसलिए इसे छोड़ देना ही ठीक होगा।"
और उस दरबारी को मुक्त कर दिया गया।
अगले दिन वह दरबारी दरबार में बीरबल के पास आकर रोने लगा।
तभी बादशाह भी दरबार में आ पहुंचे और उस दरबारी को बीरबल के सामने रोता देखकर हैरान रह गए।
"तुम्हें क्या हुआ, रो क्यों रहे हो ?" अकबर ने सवाल किया।
जवाब में उस दरबारी ने अपनी आपबीती विस्तार से कह सुनाई। वह बोला, "अब मुझे विश्वास हो गया है कि ईश्वर जो कुछ भी करता है, मनुष्य के भले के लिए ही करता है। यदि मेरी उंगली न कटी होती तो निश्चित ही आदिवासी मेरी बलि चढ़ा देते। इसीलिए मैं रो रहा हूं, लेकिन ये आंसू खुशी के हैं। मैं खुश हूं क्योंकि मैं जिन्दा हूं। बीरबल के ईश्वर पर विश्वास को संदेह की दृष्टि से देखना मेरी भूल थी।"
अकबर ने मंद-मंद मुस्कराते हुए दरबारियों की ओर देखा, जो सिर झुकाए चुपचाप खड़े थे। अकबर को गर्व महसूस हो रहा था कि बीरबल जैसा बुद्धिमान उसके दरबारियों में से एक है।
बीरबल भी बादशाह की हां में हां मिला रहे थे। इतना ही नहीं, वह अपनी तरफ से भी दो-चार वाक्य बैंगन की तारीफ में कह देते थे।
अचानक बादशाह अकबर के दिल में आया कि देखें बीरबल अपनी बात को कहां तक निभाते हैं- यह सोचकर बादशाह बीरबल के सामने बैंगन की बुराई करने लगे। बीरबल भी उनकी हां में हां मिलाने लगे कि बैंगन खाने से शारीरिक बीमारियाँ हो जाती हैं इत्यादि।
बीरबल की बात सुनकर बादशाह अकबर हैरान हो गए और बोले- "बीरबल! तुम्हारी इस बात का यकीन नहीं किया जा सकता। कभी तुम बैंगन की तारीफ करते हो और कभी बुराई करते हो। जब हमने इसकी तारीफ की तो तुमने भी इसकी तारीफ की और जब हमने इसकी बुराई की तो तुमने. भी इसकी बुराई की, आखिर ऐसा क्यों?"
बीरबल ने नरम लहजे में कहा- "बादशाह सलामत! मैं तो आपका नौकर हूं बैंगन का नौकर नहीं।
बीरबल, जो पास ही बैठा था, यह सब देख रहा था। उस आदमी के जाने के बाद वह बोला- "यह आदमी जरूरत से ज्यादा चालाक जान पड़ता है। बेईमानी किये बिना नहीं रहेगा।"
थोड़े ही समय के बाद अकबर बादशाह के पास उस आदमी की शिकायतें आने लगीं कि वह प्रजा को काफी परेशान करता है तथा रिश्वत लेता है। अकबर बादशाह ने उस आदमी का तबादला एक ऐसी जगह करने की सोची, जहां उसे किसी भी प्रकार की बेईमानी का मौका न मिले। उन्होंने उसे घुड़साल का मुंशी मुकर्रर कर दिया। उसका काम था घोड़ों की लीद उठवाना।
मुंशीजी ने वहां भी रिश्वत लेना आरम्भ कर दिया। मुंशीजी साईसों से कहने लगे कि तुम घोड़ों को दाना कम खिलाते हो, इसलिए मुझे लीद तौलने के लिए भेजा गया है। यदि तुम्हारी लीद तौल में कम बैठी तो अकबर बादशाह से शिकायत कर दूंगा। इस प्रकार मुंशीजी प्रत्येक घोड़े के हिसाब से एक रुपया लेने लगे।
अकबर बादशाह को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने मुंशीजी को यमुना की लहरें गिनने का काम दे दिया। वहां कोई रिश्वत व बेईमानी का मौका ही नहीं था।
लेकिन मुंशीजी ने वहां भी अपनी अक्त के घोड़े दौड़ा दिये। उन्होंने नावों को रोकना आरम्भ कर दिया कि नाव रोको, हम लहरें गिन रहे हैं। अत: नावों को दो-तीन दिन रुकना पड़ता था। नाव वाले बेचारे तंग आ गए। उन्होंने मुंशीजी को दस रुपये देना आरम्भ कर दिया।
अकबर बादशाह को जब इस बात का पता लगा तो उन्होंने लिखकर आज्ञा दी- "नावों को रोको मत, जाने दो?"
उस मुंशी ने उस लिखित में थोड़ा सुधार कर टंगवा दिया – नावों को रोको, मत जाने दो - और वसूली करने लगे.
अंततः बादशाह को उस मुंशी को सार्वजनिक सेवा से बाहर करना ही पड़ा.
अगले दिन अकबर बादशाह ने यह प्रश्न दरबारियों से पूछा।
दरबारी इस प्रश्न का क्या उत्तर देते? दरबारियों के लिए तो बीरबल ही सभी समस्याओं की कुँजी थे, इसलिए सभी दरबारियों की नजरें बीरबल पर टिक गईं।
बादशाह समझ गए कि किसी के पास इस प्रश्न का जवाब नहीं है। यदि किसी के पास जवाब है भी तो उसमें जवाब देने की हिम्मत नहीं है, इसलिए उन्होंने बीरबल से कहा, "बीरबल, तुम्हीं बताओ, सही और गलत में कितना अन्तर है?"
बीरबल ने तुरन्त उत्तर दिया, "बादशाह सलामत! सही और गलत के बीच में सिर्फ चार अंगुल का अंतर है।"
अकबर चौंके। वह तो समझते थे कि इस प्रश्न का कोई जवाब ही नहीं हो सकता! उन्हें बीरबल का जवाब सुन कर बहुत आश्चर्य हुआ। "बीरबल! अब तुम समझाओ कि तुमने सही और गलत के बीच का यह अन्तर किस प्रकार मापा?"
बीरबल ने कहा,"जहांपनाह! सीधी सी बात है। आँख और कान के बीच चार अँगुल का अन्तर है या नहीं?"
अकबर ने कहा, "हाँ, है! लेकिन मेरे प्रश्न से इसका क्या संबंध है?"
बीरबल ने कहा, "आपके प्रश्न से इसका संबंध है, जहांपनाह! आप जिसे अपनी आंखों से देखते हैं, वही सही है। जिसे आप अपने कानों से सुनते हैं, वह गलत भी हो सकता है। कानों से सुनी हुई बात हमेशा सच नहीं होती, इसलिए सही और गलत के बीच चार अंगुल का ही अन्तर माना जाएगा।"
यह सुनकर बादशाह चकित होकर बोले, "वाह! बीरबल, वाह! तुम्हारी बुद्धि और चतुराई बेजोड़ है।
एक दिन बादशाह ने बीरबल से कहा, बीरबल कोई एक ऐसा आदमी ढूंढकर लाओं जो बुद्धिमानों से भी ज्यादा बुद्धिमान हो। जैसा हुक्म जहापनाहं! बहुत जल्दी ऐसा आदमी आपके सामने हाजिर कर दूंगा, पर इसके लिए समय और धन की जरुरत पडेगी। 500 स्वर्ण मोहरे ले लो और तुम्हे एक सप्ताह का समय दिया जाता है।
बीरबल समय और धन पाकर अपने घर पर आराम करने लगे। आधे से ज्यादा धन को उन्होंने दिन दुखीयों की सहायता में लगा दिया। सातवे दिन बीरबल ने इधर-उधर घुमकर गाय-भैस चराते हुए एक ग्वाले को पकडा उसे नहला धुलाकर अच्छे वस्त्र पहनाऐ। फिर सौ स्वर्ण मुद्राएं देकर उसे राज दरबार मं ले गये। साथ ही उसे रास्ते में अच्छी तर सिखा पढा दिया की वहां जाकर उसे क्या करना है ।
दरबार में पहुचकर ग्वाले ने निःशब्द हाथ जोडकर बादशाह को प्रणाम किया, उसके बाद बीरबल ने बादशाह से कहा आपके आदेशानुसार मैं बुद्धिमानों से भी बुद्धिमान व्यक्ति ले आया हूं । बादशाह ने ग्वाले से पूछा- तुम कहां रहते हो ? तुम्हारा नाम क्या है ? तुम कौन सा विशेष कार्य जानते हो ? बादशाह ने उससे प्रश्न पर प्रश्न किये परन्तु वह तो बीरबल द्वारा सीखा, पढ़ाकर लाया गया था। अतः उसनें कोई उत्तर नही दिया।
बादशाह सवाल करते रहे और वह व्यक्ति खामोशी से बैठा उनका चेहरा देखता रहा। बादशाह को लगा कि यह उनका अपमान है कि मैं बोलता जा रहा हूं और यह व्यक्ति खामोश है। जब उसकी ख़ामोशी उनसे और बर्दाश्त न हुई तो झल्लाकर वह बोले- यह तुम किस बेवकूफ को पकड लाये बीरबल ? यह गुंगा बहरा तो नही है? मेरे किसी प्रश्न का उत्तर इसने नहीं दिया।
तब बीरबल ने मुस्कुराकर कहा यह इसकी बुद्धिमतता हैं अन्नदाता, बुजू्रर्गो से इसने सुन रखा हैं कि राजा और अपने से अधिक बुद्धिमान व्यक्ति के सामने चुप रहने पर ही भलाई है। इसलिए यह उन सुनी हुई बातों पर अमल कर रहा है। आपको शायद याद नही कि आपने मुझसे कहा था कि कोइ ऐसा व्यक्ति ढूंढकर लाओं जो बुद्धिमानों से भी बुद्धिमान हो। यह वही आदमी हैं बादशाह अकबर बीरबल की हाजिर जवाबी सुनकर मुस्कुराये और ग्वाले को इनाम देकर विदा किया।
"क्या है इस मर्तबान में ?" पूछा बादशाह ने।
वह बोला, "इसमें रेत और चीनी का मिश्रण है।"
"वह किसलिए ?" फिर पूछा अकबर ने।
"माफी चाहता हूँ हुजूर," दरबारी बोला, "हम बीरबल की काबलियत को परखना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि वह रेत से चीनी का दाना-दाना अलग कर दे।"
बादशाह अब बीरबल से मुखातिब हुए, "देख लो बीरबल, रोज ही तुम्हारे सामने एक नई समस्या रख दी जाती है।" वह मुस्कराए और आगे बोले, "तुम्हें बिना पानी में घोले इस रेत में से चीनी को अलग करना है।"
"कोई समस्या नहीं जहांपना," बोला बीरबल, "यह तो मेरे बाएं हाथ का काम है।" कहकर बीरबल ने वह मर्तबान उठाया और चल दिया दरबार से बाहर। बाकी दरबारी भी पीछे थे। बीरबल बाग में पहुंचकर रुका और मर्तबान से भरा सारा मिश्रण आम के एक बड़े पेड़ के चारों ओर बिखेर दिया।
"यह तुम क्या कर रहे हो ?" एक दरबारी ने पूछा।
बीरबल बोला, "यह तुम्हें कल पता चलेगा।"
अगले दिन फिर वे सभी उस आम के पेड़ के निकट जा पहुंचे। वहां अब केवल रेत पड़ी थी, चीनी के सारे दाने चीटियां बटोर कर अपने बिलों में पहुंचा चुकी थीं। कुछ चीटियां तो अभी भी चीनी के दाने घसीट कर ले जाती दिखाई दे रही थीं।
"लेकिन सारी चीनी कहां चली गई ?" पूछा एक दरबारी ने।
"रेत से अलग हो गई।" बीरबल ने उसके कान में फुसफुसाते हुए कहा। सभी जोरों से हंस पड़े।
बादशाह अकबर को जब बीरबल की चतुराई ज्ञात हुई तो बोले, "अब तुम्हें चीनी ढूंढ़नी है तो चीटियों के बिल में घुसना होगा।"
सभी दरबारियों ने जोरदार ठहाका लगाया और बीरबल का गुणगान करने लगे।
बीरबल ने एक आदमी को बुलाकर पूछा—"क्यों भई, इस गांव में सब ठीकठाक तो है न ?"
उस आदमी ने बादशाह को पहचान लिया और बोला—"हुजूर आपके राज में कोई कमी कैसे हो सकती है।"
"तुम्हारा नाम क्या है ?" बादशाह ने पूछा।
"गंगा।"
"तुम्हारे पिता का नाम ?"
"जमुना और मां का नाम सरस्वती है ?"
"हुजूर, नर्मदा।"
यह सुनकर बीरबल ने चुटकी ली और बोला—"हुजूर तुरन्त पीछे हट जाइए। यदि आपके पास नाव हो तभी आगे बढ़ें वरना नदियों के इस गांव में तो डूब जाने का खतरा है।"
यह सुनकर बादशाह अकबर हंसे बगैर न रह सके।
बीरबल को बांस का टुकड़ा दिखाते हुए वह बोले, "क्या तुम इस बांस के टुकड़े को बिना काटे छोटा कर सकते हो ?"
बीरबल लतीफा सुनाता-सुनाता रुक गया और अकबर की आंखों में झांका।
अकबर कुटिलता से मुस्कराए, बीरबल समझ गया कि बादशाह सलामत उससे मजाक करने के मूड में हैं।
अब जैसा बेसिर-पैर का सवाल था तो जवाब भी कुछ वैसा ही होना चाहिए था। बीरबल ने इधर-उधर देखा, एक माली हाथ में लंबा बांस लेकर जा रहा था। उसके पास जाकर बीरबल ने वह बांस अपने दाएं हाथ में ले लिया और बादशाह का दिया छोटा बांस का टुकड़ा बाएं हाथ में।
बीरबल बोला, "हुजूर, अब देखें इस टुकड़े को, हो गया न बिना काटे ही छोटा।"
बड़े बांस के सामने वह टुकड़ा छोटा तो दिखना ही था।
निरुत्तर बादशाह अकबर मुस्करा उठे बीरबल की चतुराई देखकर।