Saturday 29 December 2018

Learn and earn

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Learn and earn
Story: Learn and earn Chuan and Jing joined a wholesale company together just after graduation. Both worked very hard. After several years, the boss promoted Jing to sales executive but Chuan remained a sales rep. One day Chuan could not take it anymore, tender resignation to the boss and complained the boss did not value hard working staff, but only promoted those who flattered him. The boss knew that Chuan worked very hard for the years, but in order to help Chuan realize the difference between him and Jing, the boss asked Chuan to do the following. Go and find out anyone selling water melon in the market? Chuan returned and said yes. The boss asked how much per kg? Chuan went back to the market to ask and returned to inform boss the $12 per kg. Boss told Chuan, I will ask Jing the same question? Jing went, returned and said, boss, only one person selling water melon. $12 per kg, $100 for 10 kg, he has inventory of 340 melons. On the table 58 melons, every melon weighs about 15 kg, bought from the South two days ago, they are fresh and red, good quality. Chuan was very impressed and realized the difference between himself and Jing. He decided not to resign but to learn from Jing. My dear friends, a more successful person is more observant, think more and understand in depth. For the same matter, a more successful person sees several years ahead, while you see only tomorrow. The difference between a year and a day is 365 times, how could you win? Think! how far have you seen ahead in your life? How thoughtful in depth are you? Link to read: For More Stories Download our app from Playstore : https://play.google.com/store/apps/details?id=onanmobilesoftware.storiesenglish

You are unique

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You are unique
Story: You are unique! Think what a remarkable, unduplicatable, and miraculous thing it is to be you! Of all the people who have come and gone on the earth, since the beginning of time, not ONE of them is like YOU! No one who has ever lived or is to come has had your combination of abilities, talents, appearance, friends, acquaintances, burdens, sorrows and opportunities. No, one's hair grows exactly the way yours does. No one's finger prints are like yours. No one has the same combination of secret inside jokes and family expressions that you know. The few people who laugh at all the same things you do, don't sneeze the way you do. No one prays about exactly the same concerns as you do. No one is loved by the same combination of people that love you - NO ONE! No one before, no one to come. YOU ARE ABSOLUTELY UNIQUE! Enjoy that uniqueness. You do not have to pretend in order to seem more like someone else. You weren't meant to be like someone else. You do not have to lie to conceal the parts of you that are not like what you see in anyone else. You were meant to be different. Nowhere ever in all of history will the same things be going on in anyone's mind, soul and spirit as are going on in yours right now. If you did not exist, there would be a hole in creation, a gap in history, something missing from the plan for humankind. Treasure your uniqueness. It is a gift given only to you. Enjoy it and share it! No one can reach out to others in the same way that you can. No one can speak your words. No one can convey your meanings. No one can comfort with your kind of comfort. No one can bring your kind of understanding to another person. No one can be cheerful and lighthearted and joyous in your way. No one can smile your smile. No one else can bring the whole unique impact of you to another human being. Share your uniqueness. Let it be free to flow out among your family and friends and people you meet in the rush and clutter of living wherever you are. That gift of yourself was given you to enjoy and share. Give yourself away! See it! Receive it! Let it tickle you! Let it inform you and nudge you and inspire you! YOU ARE UNIQUE! Link to read: For More Stories Download our app from Playstore : https://play.google.com/store/apps/details?id=onanmobilesoftware.storiesenglish

आए हो मेरी जिंदगी में तुम बहार बन के

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आए हो मेरी जिंदगी में तुम बहार बन के

मेरी जिंदगी खुली किताब की तरह थी। उस किताब में लोगों के लिए प्यार और हमदर्दी के सिवा कुछ नहीं था। मैं अपने दोस्तों के लिए कुछ भी कर सकती थी और मेरी इस आदत ने मुझे परेशानी में डाल दिया था। एक वक्त ऐसा भी आया जब मैं बिल्कुल अकेली हो गई थी। मैं उन दिनों 12वीं के एग्जाम की तैयारी कर थी, जब तुम मेरी लाइफ में आए थे। मैं बहुत टूट चुकी थी। हर कोई मुझे बातें सुनाता था, जबकि मेरी कोई गलती नहीं थी। मैं तो बस अपनी दोस्त की जिंदगी बचा रही थी और सबने मुझको ही गलत समझ लिया था। अपनी पर्सनल दुश्मनी निकालने के लिए सभी ने मुझे बेवजह बदनाम करना चाहा। उस वक्त तुमने मेरा हाथ थामकर मुझे सहारा दिया। तुमने मुझे उस मुश्किल दौर से निकाला था। हालांकि, मैं इतनी बार धोखा खा चुकी थी कि मैं तुम पर भी भरोसा नहीं कर पा रही थी। तुम मुझे समझाने की कोशिश करते लेकिन मैं हमेशा तुमसे दूर ही रहती। मुझे बहुत देर बाद अहसास हुआ था तुम्हारे प्यार का। तुम मुझसे कहते थे कि मैं तुम्हारा हाथ कभी नहीं छोड़ूंगा और तुमने ऐसा किया भी। तुम आज भी मेरे साथ हो। तुम्हारे घरवाले जानते हैं कि मैं तुम्हारी गर्लफ्रेंड हूं और बहुत ही जल्द हमारी शादी होने वाली है। तुम मुझे अपने पापा से मिलवाने वाले हो यह सोचकर मैं काफी एक्साइटेड हूं। मैं भी उनसे मिलना चाहती हूं। मेरी जिंदगी में आने के लिए और मुझे अपनाने के लिए तुम्हारा शुक्रिया अमित। आज के दिन मैं तुमसे बस यही कहना चाहती हूं 'आए हो मेरी जिंदगी में तुम बहार बन के'...आई लव यू अमित।

Thursday 27 December 2018

ईश्वर अच्छा ही करता है-अकबर बीरबल

22:58 1
बीरबल एक ईमानदार तथा धर्म-प्रिय व्यक्ति था। वह प्रतिदिन ईश्वर की आराधना बिना नागा किया करता था। इससे उसे नैतिक व मानसिक बल प्राप्त होता था। वह अक्सर कहा करता था कि "ईश्वर जो कुछ भी करता है मनुष्य के भले के लिए ही करता है। कभी-कभी हमें ऐसा लगता है कि ईश्वर हम पर कृपादृष्टि नहीं रखता, लेकिन ऐसा होता नहीं। कभी-कभी तो उसके वरदान को भी लोग शाप समझने की भूल कर बैठते हैं। वह हमको थोड़ी पीड़ा इसलिए देता है ताकि बड़ी पीड़ा से बच सकें।"

एक दरबारी को बीरबल की ऐसी बातें पसंद न आती थीं। एक दिन वही दरबारी दरबार में बीरबल को संबोधित करता हुआ बोला, "देखो, ईश्वर ने मेरे साथ क्या किया-कल-शाम को जब मैं जानवरों के लिए चारा काट रहा था तो अचानक मेरी छोटी उंगली कट गई। क्या अब भी तुम यही कहोगे कि ईश्वर ने मेरे लिए यह अच्छा किया है ?"
कुछ देर चुप रहने के बाद बोला बीरबल, "मेरा अब भी यही विश्वास है क्योंकि ईश्वर जो कुछ भी करता है मनुष्य के भले के लिए ही करता है।"

सुनकर वह दरबारी नाराज हो गया कि मेरी तो उंगली कट गई और बीरबल को इसमें भी अच्छाई नजर आ रही है। मेरी पीड़ा तो जैसे कुछ भी नहीं। कुछ अन्य दरबारियों ने भी उसके सुर में सुर मिलाया।
तभी बीच में हस्तक्षेप करते हुए बादशाह अकबर बोले, "बीरबल हम भी अल्लाह पर भरोसा रखते हैं, लेकिन यहां तुम्हारी बात से सहमत नहीं। इस दरबारी के मामले में ऐसी कोई बात नहीं दिखाई देती जिसके लिए उसकी तारीफ की जाए।"
बीरबल मुस्कराता हुआ बोला, "ठीक है जहांपनाह, समय ही बताएगा अब।"

तीन महीने बीत चुके थे। वह दरबारी, जिसकी उंगली कट गई थी, घने जंगल में शिकार खेलने निकला हुआ था। एक हिरन का पीछा करते वह भटककर आदिवासियों के हाथों में जा पड़ा। वे आदिवासी अपने देवता को प्रसन्न करने के लिए मानव बलि में विश्वास रखते थे। अतः वे उस दरबारी को पकड़कर मंदिर में ले गए, बलि चढ़ाने के लिए। लेकिन जब पुजारी ने उसके शरीर का निरीक्षण किया तो हाथ की एक उंगली कम पाई।
"नहीं, इस आदमी की बलि नहीं दी जा सकती।" मंदिर का पुजारी बोला, "यदि नौ उंगलियों वाले इस आदमी को बलि चढ़ा दिया गया तो हमारे देवता बजाय प्रसन्न होने के क्रोधित हो जाएंगे, अधूरी बलि उन्हें पसंद नहीं। हमें महामारियों, बाढ़ या सूखे का प्रकोप झेलना पड़ सकता है। इसलिए इसे छोड़ देना ही ठीक होगा।"
और उस दरबारी को मुक्त कर दिया गया।

अगले दिन वह दरबारी दरबार में बीरबल के पास आकर रोने लगा।
तभी बादशाह भी दरबार में आ पहुंचे और उस दरबारी को बीरबल के सामने रोता देखकर हैरान रह गए।
"तुम्हें क्या हुआ, रो क्यों रहे हो ?" अकबर ने सवाल किया।
जवाब में उस दरबारी ने अपनी आपबीती विस्तार से कह सुनाई। वह बोला, "अब मुझे विश्वास हो गया है कि ईश्वर जो कुछ भी करता है, मनुष्य के भले के लिए ही करता है। यदि मेरी उंगली न कटी होती तो निश्चित ही आदिवासी मेरी बलि चढ़ा देते। इसीलिए मैं रो रहा हूं, लेकिन ये आंसू खुशी के हैं। मैं खुश हूं क्योंकि मैं जिन्दा हूं। बीरबल के ईश्वर पर विश्वास को संदेह की दृष्टि से देखना मेरी भूल थी।"
अकबर ने मंद-मंद मुस्कराते हुए दरबारियों की ओर देखा, जो सिर झुकाए चुपचाप खड़े थे। अकबर को गर्व महसूस हो रहा था कि बीरबल जैसा बुद्धिमान उसके दरबारियों में से एक है।

कौन किसका नौकर है-अकबर बीरबल,

22:57 2
जब कभी दरबार में अकबर और बीरबल अकेले होते थे तो किसी न किसी बात पर बहस छिड़ जाती थी। एक दिन बादशाह अकबर बैंगन की सब्जी की खूब तारीफ कर रहे थे।
बीरबल भी बादशाह की हां में हां मिला रहे थे। इतना ही नहीं, वह अपनी तरफ से भी दो-चार वाक्य बैंगन की तारीफ में कह देते थे।

अचानक बादशाह अकबर के दिल में आया कि देखें बीरबल अपनी बात को कहां तक निभाते हैं- यह सोचकर बादशाह बीरबल के सामने बैंगन की बुराई करने लगे। बीरबल भी उनकी हां में हां मिलाने लगे कि बैंगन खाने से शारीरिक बीमारियाँ हो जाती हैं इत्यादि।

बीरबल की बात सुनकर बादशाह अकबर हैरान हो गए और बोले- "बीरबल! तुम्हारी इस बात का यकीन नहीं किया जा सकता। कभी तुम बैंगन की तारीफ करते हो और कभी बुराई करते हो। जब हमने इसकी तारीफ की तो तुमने भी इसकी तारीफ की और जब हमने इसकी बुराई की तो तुमने. भी इसकी बुराई की, आखिर ऐसा क्यों?"
बीरबल ने नरम लहजे में कहा- "बादशाह सलामत! मैं तो आपका नौकर हूं बैंगन का नौकर नहीं।

लहरें गिनना-अकबर बीरबल

22:53 0
एक दिन अकबर बादशाह के दरबार में एक व्यक्ति नौकरी मांगने के लिए अर्जी लेकर आया। उससे कुछ देर बातचीत करने के बाद बादशाह ने उसे चुंगी अधिकारी बना दिया।

बीरबल, जो पास ही बैठा था, यह सब देख रहा था। उस आदमी के जाने के बाद वह बोला- "यह आदमी जरूरत से ज्यादा चालाक जान पड़ता है। बेईमानी किये बिना नहीं रहेगा।"

थोड़े ही समय के बाद अकबर बादशाह के पास उस आदमी की शिकायतें आने लगीं कि वह प्रजा को काफी परेशान करता है तथा रिश्वत लेता है। अकबर बादशाह ने उस आदमी का तबादला एक ऐसी जगह करने की सोची, जहां उसे किसी भी प्रकार की बेईमानी का मौका न मिले। उन्होंने उसे घुड़साल का मुंशी मुकर्रर कर दिया। उसका काम था घोड़ों की लीद उठवाना।

मुंशीजी ने वहां भी रिश्वत लेना आरम्भ कर दिया। मुंशीजी साईसों से कहने लगे कि तुम घोड़ों को दाना कम खिलाते हो, इसलिए मुझे लीद तौलने के लिए भेजा गया है। यदि तुम्हारी लीद तौल में कम बैठी तो अकबर बादशाह से शिकायत कर दूंगा। इस प्रकार मुंशीजी प्रत्येक घोड़े के हिसाब से एक रुपया लेने लगे।
अकबर बादशाह को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने मुंशीजी को यमुना की लहरें गिनने का काम दे दिया। वहां कोई रिश्वत व बेईमानी का मौका ही नहीं था।

लेकिन मुंशीजी ने वहां भी अपनी अक्त के घोड़े दौड़ा दिये। उन्होंने नावों को रोकना आरम्भ कर दिया कि नाव रोको, हम लहरें गिन रहे हैं। अत: नावों को दो-तीन दिन रुकना पड़ता था। नाव वाले बेचारे तंग आ गए। उन्होंने मुंशीजी को दस रुपये देना आरम्भ कर दिया।

अकबर बादशाह को जब इस बात का पता लगा तो उन्होंने लिखकर आज्ञा दी- "नावों को रोको मत, जाने दो?"
उस मुंशी ने उस लिखित में थोड़ा सुधार कर टंगवा दिया – नावों को रोको, मत जाने दो - और वसूली करने लगे.
अंततः बादशाह को उस मुंशी को सार्वजनिक सेवा से बाहर करना ही पड़ा.

सही और गलत के बीच का अंतर-अकबर बीरबल

22:51 0
एक बार अकबर बादशाह ने सोचा, "हम रोज-रोज न्याय करते हैं। इसके लिए हमें सही और गलत का पता लगाना पड़ता है। लेकिन सही और गलत के बीच आखिर कितना अंतर होता है?"

अगले दिन अकबर बादशाह ने यह प्रश्न दरबारियों से पूछा।

दरबारी इस प्रश्न का क्या उत्तर देते? दरबारियों के लिए तो बीरबल ही सभी समस्याओं की कुँजी थे, इसलिए सभी दरबारियों की नजरें बीरबल पर टिक गईं।

बादशाह समझ गए कि किसी के पास इस प्रश्न का जवाब नहीं है। यदि किसी के पास जवाब है भी तो उसमें जवाब देने की हिम्मत नहीं है, इसलिए उन्होंने बीरबल से कहा, "बीरबल, तुम्हीं बताओ, सही और गलत में कितना अन्तर है?"

बीरबल ने तुरन्त उत्तर दिया, "बादशाह सलामत! सही और गलत के बीच में सिर्फ चार अंगुल का अंतर है।"

अकबर चौंके। वह तो समझते थे कि इस प्रश्न का कोई जवाब ही नहीं हो सकता!  उन्हें बीरबल का जवाब सुन कर बहुत आश्चर्य हुआ। "बीरबल! अब तुम समझाओ कि तुमने सही और गलत के बीच का यह अन्तर किस प्रकार मापा?"

बीरबल ने कहा,"जहांपनाह! सीधी सी बात है। आँख और कान के बीच चार अँगुल का अन्तर है या नहीं?"

अकबर ने कहा, "हाँ, है! लेकिन मेरे प्रश्न से इसका क्या संबंध है?"

बीरबल ने कहा, "आपके प्रश्न से इसका संबंध है, जहांपनाह! आप जिसे अपनी आंखों से देखते हैं, वही सही है। जिसे आप अपने कानों से सुनते हैं, वह गलत भी हो सकता है। कानों से सुनी हुई बात हमेशा सच नहीं होती, इसलिए सही और गलत के बीच चार अंगुल का ही अन्तर माना जाएगा।"

यह सुनकर बादशाह चकित होकर बोले, "वाह! बीरबल, वाह! तुम्हारी बुद्धि और चतुराई बेजोड़ है।

बुद्धिमानो से भी बुद्धिमान-अकबर बीरबल

22:50 0


एक दिन बादशाह ने बीरबल से कहा, बीरबल कोई एक ऐसा आदमी ढूंढकर लाओं जो बुद्धिमानों से भी ज्यादा बुद्धिमान हो। जैसा हुक्म जहापनाहं! बहुत जल्दी ऐसा आदमी आपके सामने हाजिर कर दूंगा, पर इसके लिए समय और धन की जरुरत पडेगी। 500 स्वर्ण मोहरे ले लो और तुम्हे एक सप्ताह का समय दिया जाता है।

बीरबल समय और धन पाकर अपने घर पर आराम करने लगे। आधे से ज्यादा धन को उन्होंने दिन दुखीयों की सहायता में लगा दिया। सातवे दिन बीरबल ने इधर-उधर घुमकर गाय-भैस चराते हुए एक ग्वाले को पकडा उसे नहला धुलाकर अच्छे वस्त्र पहनाऐ। फिर सौ स्वर्ण मुद्राएं देकर उसे राज दरबार मं ले गये। साथ ही उसे रास्ते में अच्छी तर सिखा पढा दिया की वहां जाकर उसे क्या करना है ।

दरबार में पहुचकर ग्वाले ने निःशब्द हाथ जोडकर बादशाह को प्रणाम किया, उसके बाद बीरबल ने बादशाह से कहा आपके आदेशानुसार मैं बुद्धिमानों से भी बुद्धिमान व्यक्ति ले आया हूं । बादशाह ने ग्वाले से पूछा- तुम कहां रहते हो ? तुम्हारा नाम क्या है ? तुम कौन सा विशेष कार्य जानते हो ? बादशाह ने उससे प्रश्न पर प्रश्न किये परन्तु वह तो बीरबल द्वारा सीखा, पढ़ाकर लाया गया था। अतः उसनें कोई उत्तर नही दिया।

बादशाह सवाल करते रहे और वह व्यक्ति खामोशी से बैठा उनका चेहरा देखता रहा। बादशाह को लगा कि यह उनका अपमान है कि मैं बोलता जा रहा हूं और यह व्यक्ति खामोश है। जब उसकी ख़ामोशी उनसे और बर्दाश्त न हुई तो झल्लाकर वह बोले- यह तुम किस बेवकूफ को पकड लाये बीरबल ? यह गुंगा बहरा तो नही है? मेरे किसी प्रश्न का उत्तर इसने नहीं दिया।

तब बीरबल ने मुस्कुराकर कहा यह इसकी बुद्धिमतता हैं अन्नदाता, बुजू्रर्गो से इसने सुन रखा हैं कि राजा और अपने से अधिक बुद्धिमान व्यक्ति के सामने चुप रहने पर ही भलाई है। इसलिए यह उन सुनी हुई बातों पर अमल कर रहा है। आपको शायद याद नही कि आपने मुझसे कहा था कि कोइ ऐसा व्यक्ति ढूंढकर लाओं जो बुद्धिमानों से भी बुद्धिमान हो। यह वही आदमी हैं बादशाह अकबर बीरबल की हाजिर जवाबी सुनकर मुस्कुराये और ग्वाले को इनाम देकर विदा किया।

रेत से चीनी अलग करो-अकबर बीरबल

22:48 0
बादशाह अकबर के दरबार की कार्यवाही चल रही थी, तभी एक दरबारी हाथ में शीशे का एक मर्तबान लिए वहां आया।

"क्या है इस मर्तबान में ?" पूछा बादशाह ने।
वह बोला, "इसमें रेत और चीनी का मिश्रण है।"
"वह किसलिए ?" फिर पूछा अकबर ने।

"माफी चाहता हूँ हुजूर," दरबारी बोला, "हम बीरबल की काबलियत को परखना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि वह रेत से चीनी का दाना-दाना अलग कर दे।"

बादशाह अब बीरबल से मुखातिब हुए, "देख लो बीरबल, रोज ही तुम्हारे सामने एक नई समस्या रख दी जाती है।" वह मुस्कराए और आगे बोले, "तुम्हें बिना पानी में घोले इस रेत में से चीनी को अलग करना है।"

"कोई समस्या नहीं जहांपना," बोला बीरबल, "यह तो मेरे बाएं हाथ का काम है।" कहकर बीरबल ने वह मर्तबान उठाया और चल दिया दरबार से बाहर। बाकी दरबारी भी पीछे थे। बीरबल बाग में पहुंचकर रुका और मर्तबान से भरा सारा मिश्रण आम के एक बड़े पेड़ के चारों ओर बिखेर दिया।

"यह तुम क्या कर रहे हो ?" एक दरबारी ने पूछा।
बीरबल बोला, "यह तुम्हें कल पता चलेगा।"
अगले दिन फिर वे सभी उस आम के पेड़ के निकट जा पहुंचे। वहां अब केवल रेत पड़ी थी, चीनी के सारे दाने चीटियां बटोर कर अपने बिलों में पहुंचा चुकी थीं। कुछ चीटियां तो अभी भी चीनी के दाने घसीट कर ले जाती दिखाई दे रही थीं।
"लेकिन सारी चीनी कहां चली गई ?" पूछा एक दरबारी ने।
"रेत से अलग हो गई।" बीरबल ने उसके कान में फुसफुसाते हुए कहा। सभी जोरों से हंस पड़े।
बादशाह अकबर को जब बीरबल की चतुराई ज्ञात हुई तो बोले, "अब तुम्हें चीनी ढूंढ़नी है तो चीटियों के बिल में घुसना होगा।"
सभी दरबारियों ने जोरदार ठहाका लगाया और बीरबल का गुणगान करने लगे।

सब बह जाएंगे-अकबर बीरबल

22:46 0
बादशाह अकबर और बीरबल शिकार पर गए हुए थे। उनके साथ कुछ सैनिक तथा सेवक भी थे। शिकार से लौटते समय एक गांव से गुजरते हुए बादशाह अकबर ने उस गांव के बारे में जानने की जिज्ञासा हुई। उन्होंने इस बारे में बीरबल से कहा तो उसने जवाब दिया—"हुजूर, मैं तो इस गांव के बारे में कुछ नहीं जानता, किंतु इसी गांव के किसी बाशिन्दे से पूछकर बताता हूं।"

बीरबल ने एक आदमी को बुलाकर पूछा—"क्यों भई, इस गांव में सब ठीकठाक तो है न ?"

उस आदमी ने बादशाह को पहचान लिया और बोला—"हुजूर आपके राज में कोई कमी कैसे हो सकती है।"

"तुम्हारा नाम क्या है ?" बादशाह ने पूछा।
"गंगा।"
"तुम्हारे पिता का नाम ?"
"जमुना और मां का नाम सरस्वती है ?"
"हुजूर, नर्मदा।"

यह सुनकर बीरबल ने चुटकी ली और बोला—"हुजूर तुरन्त पीछे हट जाइए। यदि आपके पास नाव हो तभी आगे बढ़ें वरना नदियों के इस गांव में तो डूब जाने का खतरा है।"

यह सुनकर बादशाह अकबर हंसे बगैर न रह सके।

छोटा बांस, बड़ा बांस-अकबर बीरबल

22:44 0
एक दिन अकबर व बीरबल बाग में सैर कर रहे थे। बीरबल लतीफा सुना रहा था और अकबर उसका मजा ले रहे थे। तभी अकबर को नीचे घास पर पड़ा बांस का एक टुकड़ा दिखाई दिया। उन्हें बीरबल की परीक्षा लेने की सूझी।

बीरबल को बांस का टुकड़ा दिखाते हुए वह बोले, "क्या तुम इस बांस के टुकड़े को बिना काटे छोटा कर सकते हो ?"

बीरबल लतीफा सुनाता-सुनाता रुक गया और अकबर की आंखों में झांका।

अकबर कुटिलता से मुस्कराए, बीरबल समझ गया कि बादशाह सलामत उससे मजाक करने के मूड में हैं।

अब जैसा बेसिर-पैर का सवाल था तो जवाब भी कुछ वैसा ही होना चाहिए था। बीरबल ने इधर-उधर देखा, एक माली हाथ में लंबा बांस लेकर जा रहा था। उसके पास जाकर बीरबल ने वह बांस अपने दाएं हाथ में ले लिया और बादशाह का दिया छोटा बांस का टुकड़ा बाएं हाथ में।

बीरबल बोला, "हुजूर, अब देखें इस टुकड़े को, हो गया न बिना काटे ही छोटा।"
बड़े बांस के सामने वह टुकड़ा छोटा तो दिखना ही था।
निरुत्तर बादशाह अकबर मुस्करा उठे बीरबल की चतुराई देखकर।