साल-भर की बात ै, एक हदन शाम को वा खाने जा र ा था कक म ाशय नवीन
से मुलाकात ो गई। मेरे पुराने दोस्त ै, बडे बेतकल्लुफ़ और मनचले। आगरे में
मकान ै, अच्छे कवव ै। उनके कवव-समाज में कई बार शरीक ो चुका ूूँ। ऐसा
कववता का उपासक मैंने न ीिं देखा। पेशा तो वकालत; पर डूबे र ते ै काव्य-
धचतिंन में। आदमी ज़ ीन ै, मुक़दमा सामने आया और उसकी त तक प ुूँच
गए; इसमलए कभी-कभी मुक़दमे ममल जाते ैं, लेककन कच री के बा र अदालत
या मुकदमें की चचाा उनके मलए तनविद्ध ै। अदालत की चारदीवारी के अिंदर
चार-पाूँच घिंटे व वकील ोते ै। चारदीवारी के बा र तनकलते ी कवव ै - मसर
से पाूँव तक। जब देखखए, कवव-मिंडल जमा ै, कवव-चचाा ो र ी ै, रचनाएूँ सुन
र े ै। मस्त ो- ोकर झूम र े ै, और अपनी रचना सुनाते समय तो उन पर
एक तल्लीनता-सी छा जाती ै। किंठ स्वर भी इतना मिुर ै कक उनके पद बाण
की तर सीिे कलेजे में उतर जाते ैं। अध्यात्म में मािुया की स्ृटट करना,
तनगुणा में सगुण की ब ार हदखाना उनकी रचनाओिं की ववशेिता ै। व जब
लखनऊ आते ै, मुझे प ले सूचना दे हदया करते ै। आज उन् ें अनायास
लखनऊ में देखकर मुझे आश्चया ुआ - आप य ाूँ कै से? कुशल तो ै? मुझे आने
की सूचना तक न दी।
बोले - भाईजान, एक जिंजाल में फूँस गया ूूँ। आपको सूधचत करने का समय न
था। कफर आपके घर को मैं अपना घर समझता ूूँ। इस तकल्लुफ़ की क्या
जरूरत ै कक आप मेरे कोई ववशेि प्रबिंि करें। मैं एक जरूरी मुआमले में
आपको कटट देने आया ूूँ। इस वक़्त की सैर को स्थधगत की्जए और चलकर
मेरी ववप्त्त-कथा सुतनए।
मैंने घबराकर क ा - आपने तो मुझे धचतिं ा में डाल हदया। आप और ववप्त्त-
कथा! मेरे तो प्राण सूखे जाते ै।
'घर चमलए, धचत्त शािंत ो तो सुनाऊूँ!'
'बाल-बच्चे तो अच्छ तर ैं?'
' ाूँ, सब अच्छ तर ैं। वैसी बात न ीिं ै!'
'तो चमलए, रेस्रॉ में कुछ जलपाल तो कर ली्जए।'
'न ीिं भाई, इस वक़्त मुझे जलपान न ीिं सूझता।'
म दोनों घर की ओर चले।
घर प ुूँचकर उनका ाथ-मूँु िुलाया, शरबत वपलाया। इलायची-पान खाकर
उन् ोंने अपनी ववप्त्त-कथा सुनानी शुरू की -
'कुसुम के वववा में आप गए ी थे। उसके प ले भी आपने उसे देखा था। मेरा
ववचार ै कक ककसी सरल प्रकृतत के युवक को आकविता करने के मलए ्जन
गुणों की जरूरत ै, व सब उसमें मौजूद ैं। आपका क्या ख़्याल ै?'
मैंने तत्परता से क ा - मैं आपसे क ीिं ज्यादा कुसुम का प्रशिंसक ूूँ। ऐसी
लज्जाशील, सुघड, सलीकेदार और ववनोहदनी बामलका मनैं े दसू री न ीिं देखी।
म ाशय नवीन ने करुण स्वर में क ा - व ी कुसुम आज अपने पतत के तनदाय
व्यव ार के कारण रो-रोकर प्राण दे र ी ै। उसका गौना ुए एक साल ो र ा
ै। इस बीच में व तीन बार ससुराल गई, पर उसका पतत उससे बोलता ी
न ीिं। उसकी सूरत से बेज़ार ै। मनैं े ब ुत चा ा कक उसे बुलाकर दोनों में सफ़ाई
करा दूँ, ूमगर न आता ै, न मेरे पत्रों का उत्तर देता ै। न जाने क्या गाूँठ पड
गई ै कक उसने इस बेददी से आूँखें फेर लीिं। अब सुनता ूूँ, उसका दसू रा वववा
ोने वाला ै। कुसुम का बुरा ाल ो र ा ै। आप शायद उसे देखकर प चान
भी न सकें । रात-हदन रोने के मसवा दसू रा काम न ीिं ै। इससे आप मारी
परेशानी का अनुमान कर सकते ैं। ्जिंदगी की सारी अमभलािाएूँ ममटी जाती ैं।
में ईश्वर ने पुत्र न हदया; पर म अपनी कुसुम को पाकर सिंतुटट थे और अपने
भाग्य को िन्य मानते थे। उसे ककतने लाड-प्यार से पाला, कभी उसे फूल की
छडी से भी न छुआ। उसकी मशक्षा-दीक्षा में कोई बात उठा न रखी। उसने बी.ए.
न ीिं पास ककया, लेककन ववचारों की प्रौढ़चता और ज्ञान-ववस्तार में ककसी ऊूँचे दजे
की मशक्षक्षत मह ला से कम न ीिं। आपने उसके लेख देखे ैं। मेरा ख़्याल ै, ब ुत
कम देववयाूँ वैसे लेख मलख सकती ैं! समाज, िमा, नीतत सभी ववियों में उसके
ववचार बडे पररटकृत ैं। ब स करने में तो व अपनी पटु ै कक मुझे आश्चया
ोता ै। ग ृ-प्रबिंि में इतनी कुशल कक मेरे घर का प्रायः सारा प्रबिंि उसी के
ाथ में था; ककिंतुपतत की दृ्टट में व पाूँव की िूल के बराबर भी न ीिं। बार-बार
पूछता ूूँ, तूने उसे कुछ क हदया ै, या क्या बात ै? आखखर, व क्यों तुझसे
इतना उदासीन ै? इसके जवाब में रोकर य ी क ती ै - 'मुझसे तो उन् ोंने
कभी कोई बातचीत ी न ीिं की।' मेरा ववचार ै कक प ले ी हदन दोनों में कुछ
मनमुटाव ो गया। व कुसुम के पास आया ोगा और उससे कुछ पूछा ोगा।
उसने मारे शमा के जवाब न हदया ोगा। सिंभव ै, उससे दो-चार बातें और भी
की ो। कुसमु ने मसर न उठाया ोगा। आप जानते ी ैं, कक ककतनी शमीली ै।
बस, पततदेव रूठ गए ोंगे। मैंतो कल्पना ी न ीिं कर सकता कक कुसुम-जैसी
बामलका से कोई पुरुि उदासीन र सकता ै, लेककन दभु ााग्य को कोई क्या करे?
दखुखया ने पतत के नाम कई पत्र मलखे, पर उस तनदायी ने एक का भी जवाब न
हदया! सारी धचहियाूँ लौटा दीिं। मेरी समझ में न ीिं आता कक उस पािाण-हृदय को
कैसे वपघलाऊूँ। मैंअब खुद तो उसे कुछ मलख न ीिं सकता। आप ी कुसुम की
प्राण रक्षा करें, न ीिं तो शीघ्र ी उसके जीवन का अिंत ो जाएगा और उसके
साथ म दोनों प्राणी भी मसिार जाएूँगे। उसकी व्यथा अब न ीिं देखी जाती।
नवीनजी की आूँखें सजल ो गई। मुझे भी अत्यिंत क्षोभ ुआ। उन् ें तसल्ली
देता ुआ बोला - आप इतने हदनों इस धचिंता में पडे र े, मुझसे प ले ी क्यों न
क ा? मैंआज ी मुरादाबाद जाऊूँगा और और लौंडे की इस बुरी तर खबर लूँूगा
कक व भी याद करेगा। बचा को ज़बरदस्ती घसीट कर लाऊूँगा और कुसुम के
पैरों पर धगरा दूँगू ा।
नवीनजी में आत्मववश्वास पर मुसकराकर बोले - आप उससे क्या क ेंगे?
'य न पूतछए! वशीकरण के ्जतने मिंत्र ै, उन सभी की परीक्षा करूूँगा।'
'तो आप कदावप सफल न ोंगे। व इतना शीलवान, इतना ववनम्र, इतना
प्रसन्नधचत्त ै, इतना मिुर-भािी कक आप व ाूँ से उसके भक्त ोकर लौटेंगे! व
तनत्य आपके सामने ाथ बाूँिे खडा र ेगा। आपकी सारी कठोरता शािंत ो
जाएगी। आपके मलए तो एक ी सािन ै। आपके कलम में जादू ै! आपने
ककतने ी युवकों को सन्मागा पर लगाया ै। हृदय में सोई ुई मानवता को
जगाना आपका कतव्ा य ै। मैं चा ता ूूँ, आप कुसुम की ओर ओर से ऐसा
करुणाजनक, ऐसा हदल ह ला देनेवाला पत्र मलखें कक व ल्ज्जत ो जाए और
उसकी प्रेम-भावना सचेत ो उठे । मैं जीवन-पयन्ा त आपका आभारी र ूूँगा।'
नवीनजी कवव ी तो ठ रे। इस तजबीज में वास्तववकता की अपेक्षा कववत्व ी
की प्रिानता थी। आप मेरे कई गल्पों को पढ़कर रो पडे ै, इससे आपको
ववश्वास ो गया ै कक मैंचतुर सूँपेरे की भाूँतत ्जस हदल को चा ूूँनचा सकता
ूूँ। आपको य मालूम न ीिं कक सभी मनुटय कवव न ीिं ोते, और न एक-से
भावुक। ्जन गल्पों को पढ़कर आप रोये ै, उन् ीिं गल्पों को पढ़कर ककतने ी
सज्जनों ने ववरक्त ोकर पुस्तक फेंक दी ैं। पर इन बातों का व अवसर न
था। व समझते कक मैं अपना गला छुडाना चा ता ूूँ, इसमलए मैंने सहृदयता से
क ा - आपको ब ुत दरू की सूझी। और मैं इस प्रस्ताव से स मत ूूँ और
यद्यवप आपने मेरी करुणोत्पादक श्क्त का अनुमान करने में अत्यु्क्त से काम
मलया ै; लेककन मैंआपको तनराश न करूूँगा। मैंपत्र मलखूगूँ ा और यथाश्क्त
उस युवक की न्याय-बुवद्ध को जगाने की चटेटा भी करूूँगा, लेककन आप अनुधचत
न समझें तो प ले मुझे व पत्र हदखा दें, जो कुसुम ने अपने पतत के नाम मलखे
थे, उसने पत्र तो लौटा ी हदए ैंऔर यहद कुसुम ने उन् ें फाड न ीिं डाला ै,
तो उसके पास ोंगे। उन पत्रों को देखने से मुझे ज्ञात ो जाएगा कक ककन
प लुओिं पर मलखने की गुिंजाइश बाकी ै।
नवीनजी ने जेब से पत्रों का एक पुमलदिं ा तनकालकर मेरे सामने रख हदखा और
बोले - मैं जानता था आप इन पत्रों को देखना चा ेंगे, इसमलए इन् ें साथ लेता
आया। आप इन् ें शौक से पढ़ें। कुसुम जैसी मेरी लडकी ै, वैसी ी आपकी भी
लडकी ै। आपसे क्या परदा!
सुगिंधित, गुलाबी, धचकने कागज़ पर ब ुत- ी सुिंदर अक्षरों में मलखे उन पत्रों को
मनैं े पढ़ना शुरू ककया -
मेरे स्वामी, मुझे य ाूँ आये एक सप्ता ो गया; लेककन आूँखे पल-भर के मलए
भी न ीिं झपकीिं। सारी रात करवटें बदलते बीत जाती ै। बार-बार सोचती ूूँ,
मुझसे ऐसा क्या अपराि ुआ कक उसकी आप मुझे य सजा दे र े ै। आप
मुझे खझडकें, घुडकें, कोसें; इच्छा ो तो मेरे कान भी पकडे। मैं इन सभी सजाओिं
को स िा स लूँूगी; लेककन य तनटठुरता न ीिं स ी जाती। मैंआपके घर एक
सप्ता र ी। परमात्मा जानता ै कक मेरे हदल में क्या-क्या अरमान थे। मैंने
ककतनी बार चा ा कक आपसे कुछ पूछूूँ; आपसे अपने अपरािों को क्षमा कराऊूँ;
लेककन आप मेरी परछाई से भी दरू भागते थे। मुझे कोई अवसर न ममला।
आपको याद ोगा कक जब दोप र को सारा घर सो जाता था; तो मैं आपके कमरे
में जाती थी और घिंटों मसर झुकाए खडी र ती थी; पर आपने कभी आूँख उठाकर
न देखा। उस वक्त मेरे मन की क्या दशा ोती थी, इसका कदाधचत् आप
अनुमान न कर सकेंगे। मेरी जैसी अभाधगनी ्स्त्रयाूँ इसका कुछ अिंदाज कर
सकती ैं। मनैं े अपनी स ेमलयों से उनकी सो ागरात की कथाएूँ सुन-सुनकर
अपनी कल्पना में सुखों का जो स्वगा बनाया था उसे आपने ककतनी तनदायता से
नटट कर हदया!
मैंआपसे पूछती ूूँ, क्या आपके ऊपर मेरा कोई अधिकार न ीिं ै? अदालत भी
ककसी अपरािी को दिंड देती ै, तो उस पर कोई-न-कोई अमभयोग लगाती ै,
गवाह याूँ लेती ै, उनका बयान सुनती ै। आपने तो कुछ पूछा ी न ीिं। मुझे
अपनी खता मालूम ो जाती, तो आगे के मलए सचेत ो जाती। आपके चरणों
पर धगरकर क ती, मुझे क्षमा-दान दो। मैंशपथपूवका क ती ूूँ, मुझे कुछ न ीिं
मालूम, आप क्यों रुटट ो गए। सिंभव ै, आपने अपनी पत्नी में ्जन गुणों को
देखने की कामना की ो, वे मुझमें न ों। बेशक मैं अूँगरेजी न ीिं पढ़ी, अूँगरेजी-
समाज की रीतत-नीतत से पररधचत न ीिं, न अूँगरेजी खेल खेलना जानती ूूँ। और
भी ककतनी ी त्रुहटयाूँ मुझमें ोगी। मैंजानती ूूँ कक मैंआपके योग्य न थी।
आपको मुझसे क ीिं अधिक रूपवती, गुणवती, बुवद्धमती स्त्री ममलनी चाह ए थी;
लेककन मेरे देवता, दिंड अपरािों का ममलना चाह ए, त्रुहटयों का न ीिं। कफर मैंतो
आपके इशारे पर चलने को तैयार ूूँ। आप मेरी हदलजोई करें, कफर देखखए, मैं
अपनी त्रुहटयों को ककतनी जल्द पूरा कर लेती ूूँ। आपका प्रेम-कटाक्ष मेरे रूप को
प्रदीप्त, मेरी बुवद्ध को तीव्र और मेरे भाग्य को बलवान कर देगा। व ववभूतत
पाकर मेरा कायाकल्प ो जाएगी।
स्वामी! क्या आपने सोचा ै? आप य क्रोि ककस पर कर र े ै? व अबला जो
आपके चरणों पर पडी ुई आपसे क्षमा-दान माूँग र ी ै, जो जन्म-जन्मािंतर के
मलए आपकी चेरी ै, क्या इस क्रोि को स न कर सकती ै? मेरा हदल ब ुत
कमजोर ै। मुझे रुलाकर आपको पश्चाताप के मसवा और क्या ाथ आएगा। इस
क्रोिा्ग्न की एक धचनगारी मुझे भस्म कर देने के मलए काफी ै, अगर आपकी
य इच्छा ै कक मैं मर जाऊूँ, तो मैंमरने के मलए तैयार ूूँ; के वल आपका इशारा
चा ती ूूँ। अगर मरने से आपका धचत्त प्रसन्न ो, तो मैं बडे िा से अपने को
आपके चरणों पर समवपता कर दूँगू ी; मगर इतना क े बबना न ीिं र ा जाता कक
मुझमें सौ ऐब ो, पर एक गुण भी ै - मुझे दावा ै कक आपकी ्जतनी सेवा मैं
कर सकती ूूँ, उतनी कोई दसू री स्त्री न ीिं कर सकती। आप ववद्वान ै, उदार ै,
मनोववज्ञान के पिंडडत ै, आपकी लौंडी आपके सामने खडी दया की भीख माूँग
र ी ै। क्या उसे द्वार से ठुकरा दी्जएगा?
आपकी अपराधिनी,
- कुसुम
य पत्र पढ़कर मुझे रोमािंच ो आया। य बात मेरे मलए असह्य थी कक कोई
स्त्री अपने पतत की इतनी खुशामद करने पर मजबूर ो जाए। पुरुि अगर स्त्री
से उदासीन र सकता ै, तो स्त्री उसे क्यों न ीिं ठुकरा सकती? व दटुट समझता
ै कक वववा ने एक स्त्री को उसका गुलाम बना हदया। व उस अबला पर
्जतना अत्याचार चा े करे, कोई उसका ाथ न ीिं पकड सकता, कोई चूँूभी न ीिं
कर सकता। पुरुि अपनी दसू री, तीसरी, चौथी शादी कर सकता ै, स्त्री से कोई
सिंबिंि न रखकर भी उस पर उसी कठोरता से शासन कर सकता ै। व जानता
ै कक स्त्री कुल-मयाादा के बििं नों में जकडी ुई ै, उसे रो-रोकर मर जाने के
मसवा और कोई उपाय न ीिं ै। अगर उसे भय ोता कक औरत भी उसकी ईंट का
जवाब पत्थर से न ीिं, ईंट से भी न ीिं; के वल थप्पड से दे सकती ै, तो उसे कभी
इस बदममज़ाजी का सा स न ोता। बेचारी स्त्री ककतनी वववश ै। शायद मैं
कुसुम की जग ोता, तो इस तनटठुरता का जवाब इसकी दसगुनी कठोरता से
देता। उसकी छाती पर मूँूग दलता? सिंसार के ूँसने की ज़रा भी धचतिं ा न करता।
समाज अबलाओिं पर इतना जुल्म देख सकता ै और चूँूतक न ीिं करता, उसके
रोने या ूँसने की मुझे जरा भी परवा न ोती। अरे अभागे युवक! तुझे खबर
न ीिं, तूअपने भववटय की गदान पर ककतनी बेददी से छुरी फेर र ा ै? य व
समय ै, जब पुरुि को अपने प्रणय-भिंडार से स्त्री के माता-वपता, भाई-ब न,
सखखयाूँ-स ेमलयाूँ, सभी के प्रेम की पूतता करनी पडती ै। अगर पुरुि में य
सामर्थया न ीिं ैतो स्त्री की क्षधुित आत्मा को कैसे सिंतुटट रख सकेगा। पररणाम
व ी ोगा, जो ब ुिा ोता ै। अबला कुढ़-कुढ़कर मर जाती ै। य ी व समय ै,
्जसकी स्मतृत जीवन में सदैव के मलए ममठास पैदा कर देती ै। स्त्री की
प्रेमसुिा इतनी तीव्र ोती ै कक व पतत का स्ने पाकर अपना जीवन सफल
समझती ैऔर इस प्रेम के आिार पर जीवन के सारे कटटों को ूँस- ूँसकर स
लेती ै। य ी व समय ै, जब हृदय में प्रेम का बसिंत आता ै और उसमें नई-
नई आशा-कोंपलें तनकलने लगती ैं। ऐसा कौन तनदायी ै, जो इस ऋतुमें उस
वक्षृ पर कुल् ाडी चलाएगा। य ी व समय ै, जब मशकारी ककसी पक्षी को उसके
बसेरे से लाकर वपजिं रे में बिंद कर देता ै। क्या व उसकी गदान पर छुरी
चलाकर उसका मिुर गान सुनने का आशा रखता ै?
मैंने दसू रा पत्र पढ़ना शुरू ककया -
मेरे जीवन-िन! दो सप्ता जवाब की प्रतीक्षा करने के बाद आज कफर य ी
उला ना देने बैठ ूूँ। जब मनैं े व पत्र मलखा था, तो मेरा मन गवा ी दे र ा था
कक उसका उत्तर जरूर आएगा। आशा के ववरुद्ध आशा लगाए ुए थी। मेरा मन
अब भी इसे स्वीकार न ीिं करता कक जान-बूझकर उसका उत्तर न ीिं हदया।
कदाधचत् आपको अवकाश न ीिं ममला, या ईश्वर न करें, क ीिं आप अस्वस्थ तो
न ीिं ो गए? ककससे पूछूूँ? इस ववचार से ी मेरा हृदय काूँप र ा ै। मेरी ईश्वर
से य ी प्राथना ा ै कक आप प्रसन्न और स्वस्थ ों। पत्र मुझे न मलखें, न स ी,
रोकर चुप ी तो ो जाऊूँगी। आपको ईश्वर का वास्ता ै; अगर आपको ककसी
प्रकार का कटट ो, तो तुरिंत पत्र मलखखए, मैं ककसी को साथ लेकर आ जाऊूँ गी।
मयाादा और पररपाटी के बिंिनों से मेरा जी घबराता ै, ऐसी दशा में भी यहद
आप मुझे अपनी सेवा से विंधचत रखते ैं, तो आप मुझसे मेरा व अधिकार छ न
र े ै, जो मेरे जीवन की सबसे मूल्यवान् वस्तु ै। मैंआपसे और कुछ न ीिं
माूँगती, आप मुझे मोटे-से-मोटा खखलाइए, मोटे-से-मोटा प नाइए, मुझे जरा भी
मशकायत न ोगी। मैं आपके साथ घोर-से-घोर ववप्त्त में भी प्रसन्न र ूूँगी।
मुझे आभूिणों की लालसा न ीिं, म ल में र ने की लालसा न ीिं, सैर-तमाशे की
लालसा न ीिं, िन बटोरने की लालसा न ीिं। मेरे जीवन का उद्देश्य के वल आपकी
सेवा करना ै। य ी उसका ध्येय ै। मेरे मलए दतुनया में कोई देवता न ीिं, कोई
गुरु न ीिं, कोई कीम न ीिं। मेरे देवता आप ै, मेरे राजा आप ै, मुझे अपने
चरणों से न टाइए, मुझे ठुकराइए न ीिं। मैंसेवा और प्रेम के फूल मलये, कताव्य
और व्रत की भेंट अिंचल में सजाए आपकी सेवा में आई ूूँ। मुझे इस भेंट को,
इन फूलों को अपने चरणों में रखने दी्जए। उपासक का काम तो पूजा करना
ै। देवता उसकी पूजा स्वीकार करता ैया न ीिं, य सोचना उसका िमा न ीिं।
मेरे मसरताज! शायद आपको पता न ीिं, आजकल मेरी क्या दशा ै। यहद मालमू
ोता, तो आप इस तनटठुरता का व्यव ार न करत।े आप पुरुि ै, आपके हृदय में
दया ै, स ानुभूतत ै, उदारता ै, मैंववश्वास न ीिं कर सकती कक आप मुझ जैसी
नाचीज़ पर क्रोि कर सकते ै। मैंआपकी दया के योग्य ूूँ - ककतनी दबुला ,
ककतनी अपिंग, ककतनी बेज़बान! आप सूया ै, मैंअणु ूूँ; आप अ्ग्न ै, मैंतणृ ूूँ;
आप राजा ै, मैंमभखाररन ूूँ। क्रोि, तो बराबरवालों पर करना चाह ए, मैं भला
आपके क्रोि का आघात कैसे स सकती ूूँ? अगर आप समझते ै कक मैं
आपकी सेवा के योग्य न ीिं ूूँ, तो मुझे अपने ाथों से ववि का प्याला दे दी्जए।
मैंउसे सुिा समझकर मसर और आूँखों से लगाऊूँगी और आूँखें बिंद करके पी
जाऊूँ गी। जब जीवन आपकी भेंट ो गया, तो आप मारें या ्जलाएूँ, य आपकी
इच्छा ै। मुझे य ी सिंतोि काफी ै कक मेरी मत्ृयुसे आप तन्श्चिंत ो गए। मैं
तो इतना ी जानती ूूँ कक मैंआपकी ूूँऔर सदैव आपकी र ूूँगी; इस जीवन में
ी न ीिं, ब्ल्क अनिंत तक।
अभाधगनी,
कुसुम
य पत्र पढ़कर मुझे कुसुम पर भी झूँुझला ट आने लगी और उस लौंडे से तो
घणृ ा ो गई। माना, तुम स्त्री ो, आजकल के प्रथानुसार पुरुि को तुम् ारे ऊपर
र तर का अधिकार ै, लेककन नम्रता की भी तो कोई सीमा ोती ै? तो उसे
भी चाह ए कक उसकी बात न पूछे। ्स्त्रयों को िमा और त्याग का पाठ पढ़ा-
पढ़ाकर मने उनके आत्म-सम्मान और आत्म-ववश्वास दोनों का ी अिंत कर
हदया। अगर पुरुि स्त्री का म ुताज न ीिं, तो स्त्री भी पुरुि की मु ताज क्यों ै?
ईश्वर ने पुरुि को ाथ हदये ै, तो क्या स्त्री को उससे विंधचत रखा ै? पुरुि के
पास बुवद्ध ै, तो क्या स्त्री अबोि ै? इसी नम्रता ने तो मरदों का ममजाज
आसमान पर प ुूँचा हदया। पुरुि रूठ गया, तो स्त्री के मलए मानो प्रलय आ
गया। मैंतो समझता ूूँ, कुसुम न ीिं, उसका अभागा पतत ी दया के योग्य ै, जो
कुसुम-जैसी स्त्री की कद्र न ीिं कर सकता। मुझे ऐसा सिंदे ोने लगा कक इस
लौंडे ने कोई दसू रा रोग पाल रखा ै। ककसी मशकारी के रिंगीन जाल में फूँसा
ुआ ै।
खैर, मैंने तीसरा पत्र खोला -
वप्रयतम! अब मुझे मालूम ो गया कक मेरी ्जिंदगी तनरुद्देश्य ै। ्जस फूल को
देखनेवाला, चुननेवाला कोई न ीिं. व खखलें तो क्यों? क्या इसीमलए कक मुरझाकर
जमीन पर धगर पडे और पैरों से कुचल हदया जाए? मैं आपके घर में एक म ीना
र कर दोबारा आई ूूँ। ससुरजी ी ने मुझे बुलाया, ससुरजी ी ने मुझे बबदा कर
हदया। इतने हदनों में आपने एक बार भी मुझे दशान न हदये। आप हदन में बीसों
ी बार घर में आते थे, अपने भाई-ब नों से ूँसते-बोलते थे, या ममत्रों के साथ
सैर-तमाशे देखते थे; लेककन मेरे पास आने की आपने कसम खा ली थी। मैंने
ककतनी बार आपके पास सिंदेश भेजे, ककतना अनुनय-ववनय ककया, ककतनी बार
बेशमी करके आपके कमरे में गई; लेककन आपने कभी मुझे आूँख उठाकर भी न
देखा। मैं तो कल्पना ी न ीिं कर सकती कक कोई प्राणी इतना हृदय ीन ो
सकता ै। प्रेम के योग्य न ीिं, ववश्वास के योग्य न ीिं, सेवार करने के भी योग्य
न ीिं, तो क्या दया के भी योग्य न ीिं?
मनैं े उस हदन ककतनी मे नत और प्रेम से आपके मलए रसगुल्ले बनाए थे।
आपने उन् ें ाथ से छुआ भी न ीिं। जब आप मुझसे इतने ववरक्त ैं, तो मेरी
समझ में न ीिं आता कक जीकर क्या करूूँ? न-जाने य कौन-सी आशा ै, जो मुझे
जीववत रखे ुए ै। क्या अिंिेर ै कक आप सजा तो देते ै; पर अपराि न ीिं
बतलाते। य कौन-सी नीतत ै? आपको ज्ञात ै, इस एक मास में मनैं े मु्श्कल
से दस हदन आपके घर में भोजन ककया ोगा। मैंइतनी कमजोर ो गई ूूँ कक
चलती ूूँतो आूँखों के सामने अूँिेरा छा जाता ै। आूँखों में जैसे ज्योतत ी न ीिं
र ी! हृदय में मानो रक्त का सिंचालन ी न ीिं र ा। खैर, सता ली्जए, ्जतना जी
चा े। इस अनीतत का अिंत भी एक हदन ो ी जाएगा। अब तो मत्ृयु ी पर
सारी आशाएूँ हटकी ुई ैं। अब मुझे प्रतीत ो र ा ै कक मेरे मरने की खबर
पाकर आप उछलेंगे और ल्की साूँस लेंगे, आपकी आूँखों से आूँसूकी एक बूँूद भी
न धगरेगी; पर य आपका दोि न ीिं, मेरा दभु ााग्य ै। उस जन्म में मनैं े कोई
ब ुत बडा पाप ककया था। मैंचा ती ूूँ मैंभी आपकी परवा न करूूँ, आप ी
की भाूँतत आपसे आखें फेर लूँू, मूँु फेर लूँू, हदल फेर लूँू; लेककन न-जाने क्यों
मुझमें व श्क्त न ीिं ै। क्या लता वक्षृ की भाूँतत खडी र सकती ै? वक्षृ के
मलए ककसी स ारे की जरूरत न ीिं। लता व श्क्त क ाूँ से लाए? व तो वक्षृ से
मलपटने के मलए पैदा की गई ै। उसे वक्षृ से अलग कर दो और व सूख
जाएगी। मैंआपसे पथृ क् अपने अ्स्तत्व की कल्पना ी न ीिं कर सकती। मेरे
जीवन की र एक गतत, प्रत्येक ववचार, प्रत्येक कामना में आप मौजूद ोते ैं।
मेरा जीवन व वत्ृत ै, ्जसके केंद्र आप ै। मैंव ार ूूँ, ्जसके प्रत्येक फूल
में आप िागे की भाूँतत घुसे ैं। उस घागे के बगैर ार के फूल बबखर जाएूँगे
और िूल में ममल जाएूँगे।
मेरी एक स ेली ै, शन्नो। उसका इस साल पाखणग्र ण ो गया ै। उसका पतत
जब ससुराल आता ै, शन्नो के पाूँव जमीन पर न ीिं पडते। हदन-भर में न जाने
ककतने रूप बदलती ै। मुख-कमल खखल जाता ै। उल्लास सूँभाले न ीिं सूँभलता।
उसे बबखेरती, लुटाती चलती ै - म जैसे अभागों के मलए। जब आकर मेरे गले
से मलपट जाती ै, तो िा और उन्माद की विाा से जैसे मैंलथपथ ो जाती ूूँ।
दोनों अनुराग से मतवाले ो र े ैं। उनके पास िन न ीिं ै, जायदाद न ीिं ै।
मगर अपनी द्रररद्रता में ी मगन ैं। इस अखिंड प्रेम का एक क्षण! उसकी
तुलना में सिंसार की कौन-सी वस्तु रखी जा सकती ै? मैं जानती ूूँ, य
रूँगरेमलयाूँ और बेकफकक्रयाूँ ब ुत हदन न र ेंगी। जीवन की धचतिं ाएूँ और दरुाशाएूँ
उन् ें भी परास्त कर देंगी, लेककन ये मिुर स्मतृतयाूँ सिंधचत िन की भाूँतत अिंत
तक उन् ें स ारा देती र ेंगी। प्रेम में भीगी ुई सूखी रोहटयाूँ, प्रेम में रूँगे ुए मोटे
कपडे और प्रेम के प्रकाश से आलोककत छोटी-सी कोठरी, अपनी इस ववपन्नता में
भी व स्वाद, व शोभा और ववश्राम रखती ै, जो शायद देवताओिं को स्वगा में
भी नसीब न ीिं। जब शन्नों का पतत अपने घर चला जाता ै, तो व दखुखया
ककस तर फूट-फूटकर रोती ै कक मेरा हृदय गद् गद ो जाता ै। उसके पत्र आ
जाते ैं, तो मानो उसे कोई ववभूतत ममल जाती ै। उसके रोने में भी, उसकी
ववफलताओिं में भी, उसके उपालम्भों में भी एक स्वाद ै, एक रस ै। उसके आसूँ ू
व्यग्रता और ववह्वलता के ैं, मेरे आूँसू तनराशा और दःुख के। उसकी व्याकुलता
में प्रतीक्षा और उल्लास ै, मेरी व्याकुलता में दैन्य और परवशता। उसके
उपालम्भ में अधिकार और ममता ै, मेरे उपालम्भ में भग्नता और रुदन!
पत्र लिंबा ुआ जाता ै और हदल का बोझ लका न ीिं ोता। भयिंकर गरमी पड
र ी ै। दादा मुझे मसूरी ले जाने का ववचार कर र े ै। मेरी दबुला ता से उन् ें
'टी.बी.' का सिंदे ो र ा ै। व न ीिं जानते कक मेरे मलए मसूरी न ीिं, स्वगा भी
काल-कोठरी ै।
अभाधगन,
-कुसुम
मेरे पत्थर के देवता! कल मसरूी से लौट आई। लोग क ते ै, बडा स्वास्र्थयवद्धाक
और रमणीक स्थान ै, ोगा। मैं तो एक हदन भी कमरे से न ीिं तनकली। भग्न-
हृदयों के मलए सिंसार सूना ै।
मैंने रात एक बडे मजे का सपना देखा। बतलाऊूँ; पर क्या फायदा? न जाने क्यों
मैंअब भी मौत से डरती ूूँ। आशा का कच्चा िागा मुझे अब भी जीवन से बाूँिे
ुए ै। जीवन-उद्यान के द्वार पर जाकर बबना सैर ककए लौट आना ककतना
सरतनाक ै। अिंदर क्या सुिमा ै, क्या आनिंद ै। मेरे मलए व द्वार ी बिंद
ै। ककतनी अमभलािाओिं से वव ार का आनिंद उठाने चली थी - ककतनी तैयाररयों
से - पर मेरे प ुूँचते ी द्वार बिंद ो गया ै।
अच्छा बतलाओ, मैंमर जाऊूँगी तो मेरी लाश पर आूँसू की दो बूिंदें धगराओिंगे?
्जसकी ्जिंदगी-भर की ्जम्मेदारी ली थी, ्जसकी सदैव के मलए बाूँ पकडी थी,
क्या उसके साथ इतनी भी उदारता न करोगे? मरनेवालों के अपराि सभी क्षमा
कर हदया करते ैं। तुम भी क्षमा कर देना। आकर मेरे शव को अपने ाथों से
न लाना, अपने ाथों से सो ाग के मसदिं रू लगाना, अपने ाथ से सो ाग की
चूडडयाूँ प नाना, अपने ाथ से मेरे मूँु में गिंगाजल डालना, दो-चार पग किं िा दे
देना, बस, मेरी आत्मा सिंतुटट ो जाएगी और तुम् ें आशीवादा देगी। मैंवचन देती
ूूँ कक मामलक के दरबार में तुम् ारा यश गाऊूँगी। क्या य भी म ूँगा सौदा ै?
इतने-से मशटटाचार से तुम अपनी सारी ्जम्मेदाररयों से मुक्त ुए जाते ो।
आ ! मुझे ववश्वास ोता कक तुम इतना मशटटाचार करोगे, तो मैंककतनी खुशी से
मौत का स्वागत करती। लेककन मैंतुम् ारे साथ अन्याय न करूूँगी। तुम ककतने
ी तनटठुर ो, इतने तनदायी न ीिं ो सकत।े मैंजानती ूूँ; तुम य समाचार पाते
ी आओगे और शायद एक क्षण के मलए मेरी शोक-मत्ृयु पर तुम् ारी आूँखें रो
पड।े क ीिं मैंअपने जीवन में व शुभ अवसर देख सकती!
अच्छा, क्या मैंएक प्रश्न पूछ सकती ूूँ? नाराज न ोना। क्या मेरी जग ककसी
और सौभाग्यवती ने ले ली ै? अगर ऐसा ै, तो बिाई! जरा उसका धचत्र मेरे
पास भेज देना। मैंउसकी पूजा करूूँगी, उसके चरणों पर शीश नवाऊूँ गी। मैं ्जस
देवता को प्रसन्न न कर सकी, उसी देवता से उसने वरदान प्राप्त कर मलया।
ऐसी सौभाधगनी के तो चरण िो-िो पीना चाह ए। मेरी ाहदाक इच्छा ै कक तुम
उसके साथ सुखी र ो। यहद मैंउस देवी की कुछ सेवा कर सकती, अपरोक्ष न
स ी, परोक्ष रूप से ी तुम् ारे कुछ काम आ सकती। अब मझु े केवल उसका शुभ
नाम और स्थान बता दो, मैं मसर के बल दौडी ुई उसके पास जाऊूँगी और
क ूूँगी - देवी, तुम् ारी लौंडी ूूँ, इसमलए कक तुम मेरे स्वामी की प्रेममका ो। मुझे
अपने चरणों में शरण दो। मैंतुम् ारे मलए फूलों की सेज बबछाऊूँगी, तुम् ारी माूँग
मोततयों से भरूूँगी, तुम् ारी एडडयों में म ावर रचाऊूँगी - य मेरी जीवन की
सािना ोगी! य न समझना कक मैंजलूँूगी या कुढूूँगी। जलन तब ोती ै, जब
कोई मुझे मेरी वस्तुछ न र ा ो। ्जस वस्तुको अपना समझने का मुझे कभी
सौभाग्य न ुआ, उसके मलए मुझे जलन क्यों ो।
अभी ब ुत कुछ मलखना था; लेककन डाक्टर सा ब आ गए ै। बेचारा हृदयदा को
टी.बी. समझ र ा ैं।
दःुख की सताई ुई,
कुसुम
इन दोनों पत्रों ने िैया का प्याला भर हदया! मैंब ुत ी आवेश ीन आदमी ूूँ।
भावुकता मुझे छू भी न ीिं गई। अधिकािंश कलाववदों की भाूँतत मैंभी शब्दों से
आिंदोमलत न ीिं ोता। क्या वस्तु हदल से तनकलती ै, क्या वस्तुममा को स्पशा
करने के मलए मलखी गई ै, य भेद ब ुिा मेरे साह ्त्यक आनिंद में बािक ो
जाता ै, लेककन इन पत्रों ने मुझे आपे से बा र कर हदया। एक स्थान पर तो
सचमुच मेरी आूँखें भर आईं। य भावना ककतनी वेदनापूणा थी कक व ी बामलका,
्जस पर माता-वपता प्राण तछडकते र ते थे, वववा ोते ी इतनी ववपदग्रस्त ो
जाए! वववा क्या ुआ, मानो उसकी धचता बनी, या उसकी मौत का परवाना
मलखा गया। इसमें सिंदे न ीिं कक ऐसी वैवाह क दघु टा नाएूँ कम ोती ैं; लेककन
समाज की वतामान दशा में उनकी सिंभावना बनी र ती ै। जब तक स्त्री-पुरुि
के अधिकार समान न ोंगे, ऐसे आघात तनत्य ोते र ेंगे। दबुला को सताना
कदाधचत् प्राखणयों का स्वभाव ै। काटनेवाले कुत्तों से लोग दरू भागते ै, सीिे
कुत्ते पर बालविंदृ ववनोद के मलए पत्थर फेंकते ैं। तुम् ारे दो नौकर एक ी
श्रेणी के ों, उनमें कभी झगडा न ोगा; लेककन आज उनमें से एक अफसर और
दसू रे को उसका मात त बना दो, कफर देखो, अफसर सा ब अपने मात त पर
ककतना रोब जमाते ैं। सुखमय दाम्पत्य की नीिंव अधिकार-साम्य पर ी रखी
जा सकती ै। इस वैिम्य में प्रेम का तनवास ो सकता ै, मुझे तो इसमें सिंदे
ै। म आज ्जसे स्त्री-पुरुिों में प्रेम क ते ै, व व ी प्रेम ै, जो स्वामी को
अपने पशुसे ोता ै। पशु मसर झुकाए काम ककए चला जाए, स्वामी उसे भूसा
और खली भी देखा, उसकी दे भी स लाएगा, उसे आभूिण भी प नाएगा; लेककन
जानवर ने जरा चाल िीमी की, जरा गदान टेढ़ी की कक मामलक का चाबुक पीठ
पर पडा। इसे प्रेम न ीिं क ते।
खैर, मैंने पाूँचवाूँ पत्र खोला -
जैसा मुझे ववश्वास था, आपने मेरे वपछले पत्र का भी उत्तर न हदया। इसका
खुला ुआ अथा य ै कक आपने मुझे पररत्याग करने का सिंकल्प कर मलया ै।
जैसी आपकी इच्छा! पुरुि के मलए स्त्री पाूँव की जूती ै, स्त्री के मलए तो पुरुि
देव तुल्य ै, ब्ल्क देवता से भी बढ़कर। वववेक का उदय ोते ी व पतत की
कल्पना करने लगती ै। मैंने भी व ी ककया। ्जस समय मैंगुडडया खेलती थी,
उसी समय आपने गुड्डे के रूप में मेरे मनोदेश में प्रवेश ककया। मनैं े आपके
चरणों को पखारा, माला-फूल और नैवेद्य से आपका सत्कार ककया। कुछ हदनों के
बाद क ातनयाूँसुनने और पढ़ने की चाट पडी, तब आप कथाओिं के नायक के रूप
में मेरे घर आए। मैंने आपको हृदय में स्थान हदया। बाल्यकाल ी से आप
ककसी-न-ककसी रूप में मेरे जीवन में घुसे ुए थे। वे भावनाएूँ मेरे अिंतरस्तल की
ग राइयों तक प ुूँच गई ै। मेरे अ्स्तत्व का एक-एक अणु उन भावनाओिं से
गूँुथा ुआ ै। उन् ें हदल से तनकाल डालना स ज न ीिं ै। उसके साथ मेरे जीवन
के परमाणु भी बबखर जाएूँगे, लेककन आपकी य ी इच्छा ै तो य ी स ी। मैं
आपकी सेवा में सब कुछ करने को तैयार थी। अभाव और ववपन्नता का तो
क ना ी क्या मैं तो अपने को ममटा देने को भी राजी थी। आपकी सेवा में ममट
जाना ी मेरे जीवन का उद्देश्य था। मैंने लज्जा और सिंकोच का पररत्याग ककया,
आत्म-सम्मान को पैरों से कुचला, लेककन आप मुझे स्वीकार न ीिं करना चा त।े
मजबूर ूूँ। आपका कोई दोि न ीिं। अवश्य मुझसे कोई ऐसी बात ो गई ै,
्जसने आपको इतना कठोर बना हदया ै। आप उसे जबान पर लाना भी उधचत
न ीिं समझत।े मैंइस तनटठुरता के मसवा और र एक सजा झेलने को तैयार
थी। आपके ाथ से ज र का प्याला लेकर पी जाने में मुझे ववलिंब न ोता, ककिंतु
ववधि की गतत तनराली ै! मुझे प ले इस सत्य के स्वीकार करने में बािा थी
कक स्त्री पुरुि की दासी ै। मैंउसे पुरुि की स चरी, अद्धााधगनी समझती थी, पर
अब मेरी आूँखें खुल गई। मनैं े कई हदन ुए एक पुस्तक में पढ़ा था कक
आहदकाल में स्त्री पुरुि की उसी तर सिंप्त्त थी, जैसा गाय-बैल या खेतबारी।
पुरुि को अधिकार था स्त्री को बेचे, धगरो रखे या मार डाले। वववा की प्रथा उस
समय के वल य थी कक वर-पक्ष अपने सूर सामिंतों को लेकर सशस्त्र आता था
कन्या को उडा ले जाता था। कन्या के साथ कन्या के घर में रुपया-पैसा, अनाज
या पशुजो कुछ उसके ाथ लग जाता था, उसे भी उठा ले जाता था। व स्त्री
को अपने घर ले जाकर, उसके पैरों में बेडडयाूँ डालकर घर के अिंदर बिंद कर देता
था। उसके आत्म-सम्मान के भावों को ममटाने के मलए य उपदेश हदया जाता
था कक पुरुि ी उसका देवता ै, सो ाग स्त्री की सबसे बडी ववभूतत ै। आज कई
जार विों के बीतने पर पुरुि के उस मनोभाव में कोई पररवतना न ीिं ुआ।
पुरानी सभी प्रथाएूँ कुछ ववकृत या सिंस्कृत रूप में मौजूद ै। आज मुझे मालूम
ुआ कक उस लेखक ने स्त्री-समाज की दशा का ककतना सुिंदर तनरूपण ककया था।
अब आपसे मेरा सववनय अनुरोि ै और य ी अिंततम अनुरोि ै कक आप मेरे
पत्रों को लौटा दें। आपके हदए ुए ग ने और कपडे अब मेरे ककसी काम के न ीिं।
इन् ें अपने पास रखने का मुझे कोई अधिकार न ीिं। आप ्जस समय चा ें,
वापस मूँगवा लें। मनैं े उन् ें एक वपटारी में बिंद करके अलग रख हदया ै। उसकी
सूची भी व ीिं रखी ुई ै, ममला ली्जएगा। आज से आप मेरी जबान या कलम
से कोई मशकायत न सुनेंगे। इस भ्रम को भूलकर भी हदल में स्थान न दी्जएगा
कक मैंआपसे बेवफाई या ववश्वासघात करूूँगी। मैंइसी घर में कुढ़-कुढ़कर मर
जाऊूँ गी, पर आपकी ओर से मेरा मन कभी मैला न ोगा। मैं्जस जलवायुमें
पली ूूँ, उसका मूल तत्त्व ै पतत में श्रद्धा। ईटयाा या जलन भी उस भावना को
मेरे हदल से न ीिं तनकाल सकती। मैंआपकी कुल-मयाादा की रक्षक्षका ूूँ। उस
अमानत में जीते-जी खनायत न करूूँगी। अगर मेरे बस में ोता, तो मैं उसे भी
वापस कर देती, लेककन य ाूँ मैं भी मजबूर ूूँ और आप भी मजबूर ै। मेरी
ईश्वर से य ी ववनती ै कक आप ज ाूँ र ें, कुशल से र ें। जीवन में मुझे सबसे
कटु अनुभव जो ुआ, व य ी ै कक नारी-जीवन अिम ै - अपने मलए, अपने
माता-वपता के मलए, अपने पतत के मलए। उसकी कदर न माता के घर में ै, न
पतत के घर में। मेरा घर शोकागार बना ुआ ै। अम्माूँ रो र ी ै, दादा रो र े
ै। कुटुिंब के लोग रो र े ै, एक मेरी जात से लोगों को ककतनी मानमसक वेदना
ो र ी ै, कदाधचत्वे सोचते ोंगे, य कन्या कुल में न आती तो ककतनी अच्छा
ोता। मगर सारी दतुनया एक तरफ ो जाए, आपके ऊपर ववजय न ीिं पा सकती।
आप मेरे प्रभु ै। आपका फैसला अटल ै। उसकी क ीिं अपील न ीिं, क ी फररयाद
न ीिं। खैर, आज से य कािंड समाप्त ुआ। अब मैं ूूँ और मेरा दमलत, भग्न
हृदय। सरत य ी ै कक आपकी कुछ सेवा न कर सकी!
अभाधगनी,
कुसुम
2
मालूम न ीिं, मैंककतनी देर तक मूक वेदना की दशा में बठै ा र ा कक म ाशय
नवीन बोले- आपने इस पत्रों को पढ़कर क्या तनश्चय ककया?
मैने रोते ुए ुदय से क ा- अगर इन पत्रों ने उस नर-वपशाच के हदल पर कोई
असर न ककया, तो मेरा पत्र भला क्या असर करेगा। इससे अधिक करुणा और
वेदना मेरी श्क्त के बा र ैं। ऐसा कौन-सा माममाक भाव ैं, ्जसे इन पत्रों में
स्पशा न ककया गया ो। दया, लज्जा, ततरस्कार, न्याय, मेरे ववचार में तो कुसुम ने
कोई प लून ीिं छोडा। मेरे मलए अब य ी अ्न्तम उपाय ैंकक उस शैतान के
मसर पर सवार ो जाऊूँ और उससे मूँु -दर-मूँु बातें करके इस समस्या की त
तक प ुूँचने की चटेटा करूूँ। अगर उससे मुझे कोई सन्तोिप्रद उत्तर न हदया, तो
मैं उसका और अपना खून एक कर दूँगू ा। या तो मुझे फाूँसी ोगी, या व ी
कालेपानी जायगा। कुसुम ने ्जस िैया और सा स से काम मलया ैं, व
सरा नीय ैं। आप उसे सान्त्वना दी्जएगा। मैंआज रात की गाडी से मुरादाबाद
जाऊूँगा और परसों तक जैसी कुछ परर्स्थतत ोगी; उसकी आपको सूचना दूँगू ा!
मुझे तो य कोई चररत्र ीन और बुवद्ध ीन युवक मालूम ोता ैं।
मैं उस ब क में जाने क्या-क्या बकता र ा। इसके बाद म दोनों भोजन करके
स्टेशन चले। व आगरे गये, मनैं े मुरादाबाद का रास्ता मलया। उनके प्राण अब
भी सूखे जाते थे कक क्रोि के आवेश में कोई पागलपन न कर बैठूूँ। मेरे ब ुत
समझाने पर उनका धचत्त शान्त ुआ।
मैंप्रातःकाल मुरादाबाद प ुूँचा और जाूँच शुरू कर दी। इस युवक के चररत्र के
वविय में मुझे जो सन्देग था, व गलत तनकला। मु ल्ले में, कालेज में ; उसके
इटट-ममत्रों में, सभी उसके प्रशिंसक थे। अूँिेरा और ग रा ोता ुआ जान पडा।
सन्ध्या-समय में उसके घर जा प ुूँचा। ्जस तनटकपट भाव से व दौडकर मेरे
पैरों पर झुका ैं, व मैं न ीिं भूल सकता। ऐसा वाकचतुर, ऐसा सुशील और
ववनीत युवक मैने न ीिं देखा। बा र और भीतर में इतना आकाश-पाताल का
अन्तर मैने कभी न देखा था। मनैं े कुशल-क्षेम और मशटटाचार के दो-चार वाक्यों
के बाद पूछा- तुमसे ममलकर धचत्त शान्त प्रसन्न ुआ; लेककन आखखर कुसुम ने
क्या अपराि ककया ैं, ्जसका तुम उसके इतना कठोर दिंड दे र े ो? उसने
तुम् ारे पास कई पत्र मलखे, तुमने एक का भी उत्तर न हदया। व दो-तीन बार
य ाूँ भी आयी, पर तुम उससे बोले तक न ीिं। क्या उस तनदोि बामलका के साथ
तुम् ारा य अन्याय न ीिं ैं।
युवक ने ल्ज्जत भाव से क ा- ब ुत अच्छा ोता कक आपने इस प्रश्न को न
उठाया ोता। उसका जवाब देना मेरे मलए ब ुत मु्श्कल ैं। मनैं े तो इसे आप
लोगों के अनुमान पर छोड हदया था; लेककन इस गलतफ मी को दरू करने के
मलए मुझे वववश ोकर क ना पडगे ा।
य क ते-क ते व चुप ो गया। बबजली की बत्ती पर भाूँतत-भाूँतत के कीट-
पिंतगे जमा ो गये। कई झीगिं ुर उछल-उछलकर मूँु पर आ जाते थे; और जैसे
मनुटय पर अपनी ववजय का पररचय देकर उड जाते थे। एक बडा-सा अूँखफोड
भी मेज पर बैठा था और शायद जस्त मारने के मलए अपनी दे तौल र ा था।
युवक ने एक पिंखा ला कर मेज पर रख हदया, ्जसने ववजयी कीट-पिंतगों को
हदखा हदया कक मनुटय इतना तनबला न ीिं ैं, ्जतना वे समझ र े थे। एक क्षण
में मैदान साफ ो गया और मारी बातों में दखल देने वाला कोई न र ा।
युवक ने सकुचाते ुए क ा- सम्भव ैं, आप मुझे अत्यन्त लोभी , कमीना और
स्वाथी समझे; लेककन यथाथा य ै कक इस वववा से मेरी अमभलािा न पूरी ुई,
जो मुझे प्राणों से भी वप्रय थी। मैंवववा पर रजामन्द न था, अपने पैरों पर
बेडडयाूँ न डालना चा ता था; ककन्तुजब म ाशय नवीन ब ुत पीछे पड गये और
उनकी बातों से मुझे य आशा ुई कक व सब प्रकार से मेरी स ायता करने को
तैयार ैं, तब मैं राजी ो गया; पर वववा ोने के बाद उन् ोंने मेरी बात भी न
पूछ । मुझे एक पत्र भी न मलखा कक कब तक व मुझे ववलायत भेजने का
प्रबन्ि कर सकें गे। ालािंकक मैंने अपनी इच्छा उन पर प ले ी प्रकट कर दी थी;
पर उन् ोंने मुझे तनराश करना ी उधचत समझा। उनकी इस अकृपा ने मेरे सारे
मनसूबे िूल में ममला हदये। मेरे मलए अब इसके मसवा और क्या र गया ैंकक
एल.एल.बी. पास कर लूँूऔर कच री में जूती फटफटाता कफरूूँ।
मैने मशकायत की- तो आखखर तुम नवीनजी से क्या चा ते ो? लेन-देन में तो
उन् ोंने मशकायत का कोई अवसर न ीिं हदया। तुम् ें ववलायत भेजने का खचा तो
शायद उनके काबूसे बा र ो।
युवक ने मसर झुकाकर क ा- तो य उन् ें प ले ी मुझसे क देना चाह ए था।
कफर मैं वववा ी क्यो करता? उन् ोंने चा े ककतना ी खचा कर डाला ो; पर
इससे मेरा क्या उपकार ुआ? दोनों तरफ से दस-बार जार रुपये खाक में ममल
गये और उनके साथ मेरी अमभलािाएूँ खाक में ममल गयी। वपताजी पर तो कई
जार का ऋण ो गया ैं। व अब मुझे इिंगलैंड न ीिं भेज सकत।े क्या पूज्य
नवीनजी चा ते तो मुझे इिंगलडैं न ीिं भेज देत? े उनके मलए दस-पाूँच जार की
कोई कीकत न ीिं।
मैं सन्नाटे मे आ गया। मेरे मूँु से अनायास तनकल गया- तछः! वा री दतुनया!
और वा रे ह न्द-ूसमाज! तेरे य ाूँ ऐसे-ऐसे स्वाथा के दास पडे ुए ैं, जो एक
अबला का जीवन सिंकट में डालकर उसके वपता पर ऐसे अत्याचार पूणा दबाव
डालकर ऊूँ चा पद प्राप्त करना चा ते ैं। ववद्याजान के मलए ववदेश जाना बुरा
न ीिं। ईश्वर सामर्थया दे तो शौक से जाओ; ककन्तुपत्नी का पररत्याग करके ससुर
पर इसका भार रखना तनलाज्जता की पराकाटठा ैं। तारीफ की बात तो तब थी
कक तुम अपने पुरुिाथा से जात।े इस तर ककसी की गदान पर सवार ोकर,
अपना आत्म-सम्मान बेचकर गये तो क्या गये। इस पामर का दृ्टट में कुसुम
का कोई मूल्य ी न ीिं। व केवल उसकी स्वाथ-ामसवद्ध का सािनमात्र ैं। ऐसे
नीच प्रकृतत के आदमी से कुछ तका करना व्यथा था। परर्स्थतत ने मारी
चुहटया उसके ाथ में रखी थी और में उसके चरणों पर मसर झुकाने के मसवाय
और कोई उपाय न था।
दसू री गाडी से मैंआगरे जा प ुूँचा और नवीनजी से य वत्ृतािंत क ा। उन बेचारे
को क्या मालूम था कक य ाूँ सारी ्जम्मेदारी उन् ीिं के मसर डाल दी गयी ै।
यद्यवप इस मन्दी ने उनकी वकालत ठिंडी कर रखी ै और व दस-पाूँच जार
का खचा सुगमता से न ीिं उठा सकते लेककन इस युवक ने उनसे इसका सिंके त
भी ककया ोता, तो व अवश्य कोई-न-कोई उपाय करत।े कुसुम के मसवा दसू रा
उनका कौन बैठा ुआ ै? उन बेचारे को तो इस बात का ज्ञान ी न था। अतएव
मैंने उनसे य समाचार क ा, तो व बोल उठे- तछः! इस जरा-सी बात के मलए
इस भले आदमी ने इतना तूल दे हदया। आप आज ी उसे मलख दें कक व
्जस वक़्त ज ाूँ पढ़ने के मलए जाना चा े, शौक से जा सकता ैं। मैं उसका सारा
भार स्वीकार करता ूूँ। साल-भर तक तनदायी ने कुसुम को रुला-रुलाकर मार
डाला।
घर में इसकी चचाा ुई। कुसुम ने भी माूँ से सुना। मालूम ुआ, एक जार का
चेक उसके पतत के नाम भेजा जा र ा ैं; पर इस तर , जैसे ककसी सिंकट का
मोचन करने के मलए अनुटठान ककया जा र ा ो।
कुसुम ने भकृ ुटी मसकोडकर क ा- अम्माूँ, दादा से क दो, क ीिं रुपयें भेजने की
जरूरत न ीिं।
माता ने वव्स्मत ोकर बामलका की ओर देखा- कै से रुपये? अच्छा! व ! क्यों
इसमें क्या जा ैं? लडके का मन ै, तो ववलायत जाकर पढ़े। म क्यों रोकने
लगे? यों भी उसी का ैं, वो भी उसी का नाम ैं। में कौन छाती पर लादकर ले
जाना ैं?
'न ीिं, आप दादा से क दी्जए, एक पाई न भेजें।'
'आखखर इसमें क्या बुराई ैं?'
'इसीमलए कक य उसी तर की डाकाजनी ैं, जैसा बदमाश लोग ककया करते ैं।
अच्छे आदमी को पकडकर ले गये और उसके घरवालों से उसके मु्क्तिन के
तौर पर अच्छ रकम ऐिंठ ली।'
माता ने ततरस्कार की आूँखों से देखा।
'कै सी बातें करती ो बेटी? इतने हदनों के बाद को जाके देवता सीिे ुए ैंऔर
तुम उन् ें कफर धचढ़ाये देती ो।'
कुसुम ने झल्लाकर क ा- ऐसे देवता का रूठे र ना ी अच्छा। जो आदमी इतनी
स्वाथी, इतना दम्भी, इतना नीच ै, उसके साथ मेरा तनवाा न ोगा। मैं क े देती
ूूँ, व ाूँ रुपये गये; तो मैं ज र खा लूँूगी। इसे हदल्लगी न समझना। मैं ऐसे
आदमी का मूँु भी न ीिं देखना चा ती। दादा से क देना और तुम् ें डर लगता
ो तो मैंखुद क दूँ!ू मनैं े स्वतन्त्र र ने का तनश्चय कर मलया ैं।
माूँ ने देखा, लडकी का मुखमिंडल आरक्त ो उठा ैं। मानो इस प्रश्न पर व न
कुछ क ना चा ती ैं, न सुनना।
दसू रे हदन नवीनजी ने य ाल मुझसे क ा, तो मैं एक आत्म-ववस्मतृ की दशा
में दौडा ुआ गया और कुससु को गले लगा मलया। मैं नाररयों में ऐसा ी
आत्मामभमान देखना चा ता ूूँ। कुसुम ने व कर हदखाया, जो मेरे मन में था
और ्जसे प्रकट करने का सा स मुझमें न था।
साल-भर ो गया ै, कुसुम ने पतत के पास एक पत्र भी न ीिं मलखा और न
उसका ्जक्र ी करती ै। नवीनजी ने कई बार जमाई को मना लाने की इच्छा
प्रकट की; पर कुसुम उसका नाम भी न ीिं सुनना चा ती । उसमें स्वावलम्बन की
ऐसी ढृढता आ गयी ैंकक आश्चया ोता ै। उसके मुख पर तनराशा और वेदना
के पीलेपन और तेज ीनता की जग स्वामभमान और स्वतन्त्रता की लाली और
तेज्स्वता भामसत ो गयी ै।
से मुलाकात ो गई। मेरे पुराने दोस्त ै, बडे बेतकल्लुफ़ और मनचले। आगरे में
मकान ै, अच्छे कवव ै। उनके कवव-समाज में कई बार शरीक ो चुका ूूँ। ऐसा
कववता का उपासक मैंने न ीिं देखा। पेशा तो वकालत; पर डूबे र ते ै काव्य-
धचतिंन में। आदमी ज़ ीन ै, मुक़दमा सामने आया और उसकी त तक प ुूँच
गए; इसमलए कभी-कभी मुक़दमे ममल जाते ैं, लेककन कच री के बा र अदालत
या मुकदमें की चचाा उनके मलए तनविद्ध ै। अदालत की चारदीवारी के अिंदर
चार-पाूँच घिंटे व वकील ोते ै। चारदीवारी के बा र तनकलते ी कवव ै - मसर
से पाूँव तक। जब देखखए, कवव-मिंडल जमा ै, कवव-चचाा ो र ी ै, रचनाएूँ सुन
र े ै। मस्त ो- ोकर झूम र े ै, और अपनी रचना सुनाते समय तो उन पर
एक तल्लीनता-सी छा जाती ै। किंठ स्वर भी इतना मिुर ै कक उनके पद बाण
की तर सीिे कलेजे में उतर जाते ैं। अध्यात्म में मािुया की स्ृटट करना,
तनगुणा में सगुण की ब ार हदखाना उनकी रचनाओिं की ववशेिता ै। व जब
लखनऊ आते ै, मुझे प ले सूचना दे हदया करते ै। आज उन् ें अनायास
लखनऊ में देखकर मुझे आश्चया ुआ - आप य ाूँ कै से? कुशल तो ै? मुझे आने
की सूचना तक न दी।
बोले - भाईजान, एक जिंजाल में फूँस गया ूूँ। आपको सूधचत करने का समय न
था। कफर आपके घर को मैं अपना घर समझता ूूँ। इस तकल्लुफ़ की क्या
जरूरत ै कक आप मेरे कोई ववशेि प्रबिंि करें। मैं एक जरूरी मुआमले में
आपको कटट देने आया ूूँ। इस वक़्त की सैर को स्थधगत की्जए और चलकर
मेरी ववप्त्त-कथा सुतनए।
मैंने घबराकर क ा - आपने तो मुझे धचतिं ा में डाल हदया। आप और ववप्त्त-
कथा! मेरे तो प्राण सूखे जाते ै।
'घर चमलए, धचत्त शािंत ो तो सुनाऊूँ!'
'बाल-बच्चे तो अच्छ तर ैं?'
' ाूँ, सब अच्छ तर ैं। वैसी बात न ीिं ै!'
'तो चमलए, रेस्रॉ में कुछ जलपाल तो कर ली्जए।'
'न ीिं भाई, इस वक़्त मुझे जलपान न ीिं सूझता।'
म दोनों घर की ओर चले।
घर प ुूँचकर उनका ाथ-मूँु िुलाया, शरबत वपलाया। इलायची-पान खाकर
उन् ोंने अपनी ववप्त्त-कथा सुनानी शुरू की -
'कुसुम के वववा में आप गए ी थे। उसके प ले भी आपने उसे देखा था। मेरा
ववचार ै कक ककसी सरल प्रकृतत के युवक को आकविता करने के मलए ्जन
गुणों की जरूरत ै, व सब उसमें मौजूद ैं। आपका क्या ख़्याल ै?'
मैंने तत्परता से क ा - मैं आपसे क ीिं ज्यादा कुसुम का प्रशिंसक ूूँ। ऐसी
लज्जाशील, सुघड, सलीकेदार और ववनोहदनी बामलका मनैं े दसू री न ीिं देखी।
म ाशय नवीन ने करुण स्वर में क ा - व ी कुसुम आज अपने पतत के तनदाय
व्यव ार के कारण रो-रोकर प्राण दे र ी ै। उसका गौना ुए एक साल ो र ा
ै। इस बीच में व तीन बार ससुराल गई, पर उसका पतत उससे बोलता ी
न ीिं। उसकी सूरत से बेज़ार ै। मनैं े ब ुत चा ा कक उसे बुलाकर दोनों में सफ़ाई
करा दूँ, ूमगर न आता ै, न मेरे पत्रों का उत्तर देता ै। न जाने क्या गाूँठ पड
गई ै कक उसने इस बेददी से आूँखें फेर लीिं। अब सुनता ूूँ, उसका दसू रा वववा
ोने वाला ै। कुसुम का बुरा ाल ो र ा ै। आप शायद उसे देखकर प चान
भी न सकें । रात-हदन रोने के मसवा दसू रा काम न ीिं ै। इससे आप मारी
परेशानी का अनुमान कर सकते ैं। ्जिंदगी की सारी अमभलािाएूँ ममटी जाती ैं।
में ईश्वर ने पुत्र न हदया; पर म अपनी कुसुम को पाकर सिंतुटट थे और अपने
भाग्य को िन्य मानते थे। उसे ककतने लाड-प्यार से पाला, कभी उसे फूल की
छडी से भी न छुआ। उसकी मशक्षा-दीक्षा में कोई बात उठा न रखी। उसने बी.ए.
न ीिं पास ककया, लेककन ववचारों की प्रौढ़चता और ज्ञान-ववस्तार में ककसी ऊूँचे दजे
की मशक्षक्षत मह ला से कम न ीिं। आपने उसके लेख देखे ैं। मेरा ख़्याल ै, ब ुत
कम देववयाूँ वैसे लेख मलख सकती ैं! समाज, िमा, नीतत सभी ववियों में उसके
ववचार बडे पररटकृत ैं। ब स करने में तो व अपनी पटु ै कक मुझे आश्चया
ोता ै। ग ृ-प्रबिंि में इतनी कुशल कक मेरे घर का प्रायः सारा प्रबिंि उसी के
ाथ में था; ककिंतुपतत की दृ्टट में व पाूँव की िूल के बराबर भी न ीिं। बार-बार
पूछता ूूँ, तूने उसे कुछ क हदया ै, या क्या बात ै? आखखर, व क्यों तुझसे
इतना उदासीन ै? इसके जवाब में रोकर य ी क ती ै - 'मुझसे तो उन् ोंने
कभी कोई बातचीत ी न ीिं की।' मेरा ववचार ै कक प ले ी हदन दोनों में कुछ
मनमुटाव ो गया। व कुसुम के पास आया ोगा और उससे कुछ पूछा ोगा।
उसने मारे शमा के जवाब न हदया ोगा। सिंभव ै, उससे दो-चार बातें और भी
की ो। कुसमु ने मसर न उठाया ोगा। आप जानते ी ैं, कक ककतनी शमीली ै।
बस, पततदेव रूठ गए ोंगे। मैंतो कल्पना ी न ीिं कर सकता कक कुसुम-जैसी
बामलका से कोई पुरुि उदासीन र सकता ै, लेककन दभु ााग्य को कोई क्या करे?
दखुखया ने पतत के नाम कई पत्र मलखे, पर उस तनदायी ने एक का भी जवाब न
हदया! सारी धचहियाूँ लौटा दीिं। मेरी समझ में न ीिं आता कक उस पािाण-हृदय को
कैसे वपघलाऊूँ। मैंअब खुद तो उसे कुछ मलख न ीिं सकता। आप ी कुसुम की
प्राण रक्षा करें, न ीिं तो शीघ्र ी उसके जीवन का अिंत ो जाएगा और उसके
साथ म दोनों प्राणी भी मसिार जाएूँगे। उसकी व्यथा अब न ीिं देखी जाती।
नवीनजी की आूँखें सजल ो गई। मुझे भी अत्यिंत क्षोभ ुआ। उन् ें तसल्ली
देता ुआ बोला - आप इतने हदनों इस धचिंता में पडे र े, मुझसे प ले ी क्यों न
क ा? मैंआज ी मुरादाबाद जाऊूँगा और और लौंडे की इस बुरी तर खबर लूँूगा
कक व भी याद करेगा। बचा को ज़बरदस्ती घसीट कर लाऊूँगा और कुसुम के
पैरों पर धगरा दूँगू ा।
नवीनजी में आत्मववश्वास पर मुसकराकर बोले - आप उससे क्या क ेंगे?
'य न पूतछए! वशीकरण के ्जतने मिंत्र ै, उन सभी की परीक्षा करूूँगा।'
'तो आप कदावप सफल न ोंगे। व इतना शीलवान, इतना ववनम्र, इतना
प्रसन्नधचत्त ै, इतना मिुर-भािी कक आप व ाूँ से उसके भक्त ोकर लौटेंगे! व
तनत्य आपके सामने ाथ बाूँिे खडा र ेगा। आपकी सारी कठोरता शािंत ो
जाएगी। आपके मलए तो एक ी सािन ै। आपके कलम में जादू ै! आपने
ककतने ी युवकों को सन्मागा पर लगाया ै। हृदय में सोई ुई मानवता को
जगाना आपका कतव्ा य ै। मैं चा ता ूूँ, आप कुसुम की ओर ओर से ऐसा
करुणाजनक, ऐसा हदल ह ला देनेवाला पत्र मलखें कक व ल्ज्जत ो जाए और
उसकी प्रेम-भावना सचेत ो उठे । मैं जीवन-पयन्ा त आपका आभारी र ूूँगा।'
नवीनजी कवव ी तो ठ रे। इस तजबीज में वास्तववकता की अपेक्षा कववत्व ी
की प्रिानता थी। आप मेरे कई गल्पों को पढ़कर रो पडे ै, इससे आपको
ववश्वास ो गया ै कक मैंचतुर सूँपेरे की भाूँतत ्जस हदल को चा ूूँनचा सकता
ूूँ। आपको य मालूम न ीिं कक सभी मनुटय कवव न ीिं ोते, और न एक-से
भावुक। ्जन गल्पों को पढ़कर आप रोये ै, उन् ीिं गल्पों को पढ़कर ककतने ी
सज्जनों ने ववरक्त ोकर पुस्तक फेंक दी ैं। पर इन बातों का व अवसर न
था। व समझते कक मैं अपना गला छुडाना चा ता ूूँ, इसमलए मैंने सहृदयता से
क ा - आपको ब ुत दरू की सूझी। और मैं इस प्रस्ताव से स मत ूूँ और
यद्यवप आपने मेरी करुणोत्पादक श्क्त का अनुमान करने में अत्यु्क्त से काम
मलया ै; लेककन मैंआपको तनराश न करूूँगा। मैंपत्र मलखूगूँ ा और यथाश्क्त
उस युवक की न्याय-बुवद्ध को जगाने की चटेटा भी करूूँगा, लेककन आप अनुधचत
न समझें तो प ले मुझे व पत्र हदखा दें, जो कुसुम ने अपने पतत के नाम मलखे
थे, उसने पत्र तो लौटा ी हदए ैंऔर यहद कुसुम ने उन् ें फाड न ीिं डाला ै,
तो उसके पास ोंगे। उन पत्रों को देखने से मुझे ज्ञात ो जाएगा कक ककन
प लुओिं पर मलखने की गुिंजाइश बाकी ै।
नवीनजी ने जेब से पत्रों का एक पुमलदिं ा तनकालकर मेरे सामने रख हदखा और
बोले - मैं जानता था आप इन पत्रों को देखना चा ेंगे, इसमलए इन् ें साथ लेता
आया। आप इन् ें शौक से पढ़ें। कुसुम जैसी मेरी लडकी ै, वैसी ी आपकी भी
लडकी ै। आपसे क्या परदा!
सुगिंधित, गुलाबी, धचकने कागज़ पर ब ुत- ी सुिंदर अक्षरों में मलखे उन पत्रों को
मनैं े पढ़ना शुरू ककया -
मेरे स्वामी, मुझे य ाूँ आये एक सप्ता ो गया; लेककन आूँखे पल-भर के मलए
भी न ीिं झपकीिं। सारी रात करवटें बदलते बीत जाती ै। बार-बार सोचती ूूँ,
मुझसे ऐसा क्या अपराि ुआ कक उसकी आप मुझे य सजा दे र े ै। आप
मुझे खझडकें, घुडकें, कोसें; इच्छा ो तो मेरे कान भी पकडे। मैं इन सभी सजाओिं
को स िा स लूँूगी; लेककन य तनटठुरता न ीिं स ी जाती। मैंआपके घर एक
सप्ता र ी। परमात्मा जानता ै कक मेरे हदल में क्या-क्या अरमान थे। मैंने
ककतनी बार चा ा कक आपसे कुछ पूछूूँ; आपसे अपने अपरािों को क्षमा कराऊूँ;
लेककन आप मेरी परछाई से भी दरू भागते थे। मुझे कोई अवसर न ममला।
आपको याद ोगा कक जब दोप र को सारा घर सो जाता था; तो मैं आपके कमरे
में जाती थी और घिंटों मसर झुकाए खडी र ती थी; पर आपने कभी आूँख उठाकर
न देखा। उस वक्त मेरे मन की क्या दशा ोती थी, इसका कदाधचत् आप
अनुमान न कर सकेंगे। मेरी जैसी अभाधगनी ्स्त्रयाूँ इसका कुछ अिंदाज कर
सकती ैं। मनैं े अपनी स ेमलयों से उनकी सो ागरात की कथाएूँ सुन-सुनकर
अपनी कल्पना में सुखों का जो स्वगा बनाया था उसे आपने ककतनी तनदायता से
नटट कर हदया!
मैंआपसे पूछती ूूँ, क्या आपके ऊपर मेरा कोई अधिकार न ीिं ै? अदालत भी
ककसी अपरािी को दिंड देती ै, तो उस पर कोई-न-कोई अमभयोग लगाती ै,
गवाह याूँ लेती ै, उनका बयान सुनती ै। आपने तो कुछ पूछा ी न ीिं। मुझे
अपनी खता मालूम ो जाती, तो आगे के मलए सचेत ो जाती। आपके चरणों
पर धगरकर क ती, मुझे क्षमा-दान दो। मैंशपथपूवका क ती ूूँ, मुझे कुछ न ीिं
मालूम, आप क्यों रुटट ो गए। सिंभव ै, आपने अपनी पत्नी में ्जन गुणों को
देखने की कामना की ो, वे मुझमें न ों। बेशक मैं अूँगरेजी न ीिं पढ़ी, अूँगरेजी-
समाज की रीतत-नीतत से पररधचत न ीिं, न अूँगरेजी खेल खेलना जानती ूूँ। और
भी ककतनी ी त्रुहटयाूँ मुझमें ोगी। मैंजानती ूूँ कक मैंआपके योग्य न थी।
आपको मुझसे क ीिं अधिक रूपवती, गुणवती, बुवद्धमती स्त्री ममलनी चाह ए थी;
लेककन मेरे देवता, दिंड अपरािों का ममलना चाह ए, त्रुहटयों का न ीिं। कफर मैंतो
आपके इशारे पर चलने को तैयार ूूँ। आप मेरी हदलजोई करें, कफर देखखए, मैं
अपनी त्रुहटयों को ककतनी जल्द पूरा कर लेती ूूँ। आपका प्रेम-कटाक्ष मेरे रूप को
प्रदीप्त, मेरी बुवद्ध को तीव्र और मेरे भाग्य को बलवान कर देगा। व ववभूतत
पाकर मेरा कायाकल्प ो जाएगी।
स्वामी! क्या आपने सोचा ै? आप य क्रोि ककस पर कर र े ै? व अबला जो
आपके चरणों पर पडी ुई आपसे क्षमा-दान माूँग र ी ै, जो जन्म-जन्मािंतर के
मलए आपकी चेरी ै, क्या इस क्रोि को स न कर सकती ै? मेरा हदल ब ुत
कमजोर ै। मुझे रुलाकर आपको पश्चाताप के मसवा और क्या ाथ आएगा। इस
क्रोिा्ग्न की एक धचनगारी मुझे भस्म कर देने के मलए काफी ै, अगर आपकी
य इच्छा ै कक मैं मर जाऊूँ, तो मैंमरने के मलए तैयार ूूँ; के वल आपका इशारा
चा ती ूूँ। अगर मरने से आपका धचत्त प्रसन्न ो, तो मैं बडे िा से अपने को
आपके चरणों पर समवपता कर दूँगू ी; मगर इतना क े बबना न ीिं र ा जाता कक
मुझमें सौ ऐब ो, पर एक गुण भी ै - मुझे दावा ै कक आपकी ्जतनी सेवा मैं
कर सकती ूूँ, उतनी कोई दसू री स्त्री न ीिं कर सकती। आप ववद्वान ै, उदार ै,
मनोववज्ञान के पिंडडत ै, आपकी लौंडी आपके सामने खडी दया की भीख माूँग
र ी ै। क्या उसे द्वार से ठुकरा दी्जएगा?
आपकी अपराधिनी,
- कुसुम
य पत्र पढ़कर मुझे रोमािंच ो आया। य बात मेरे मलए असह्य थी कक कोई
स्त्री अपने पतत की इतनी खुशामद करने पर मजबूर ो जाए। पुरुि अगर स्त्री
से उदासीन र सकता ै, तो स्त्री उसे क्यों न ीिं ठुकरा सकती? व दटुट समझता
ै कक वववा ने एक स्त्री को उसका गुलाम बना हदया। व उस अबला पर
्जतना अत्याचार चा े करे, कोई उसका ाथ न ीिं पकड सकता, कोई चूँूभी न ीिं
कर सकता। पुरुि अपनी दसू री, तीसरी, चौथी शादी कर सकता ै, स्त्री से कोई
सिंबिंि न रखकर भी उस पर उसी कठोरता से शासन कर सकता ै। व जानता
ै कक स्त्री कुल-मयाादा के बििं नों में जकडी ुई ै, उसे रो-रोकर मर जाने के
मसवा और कोई उपाय न ीिं ै। अगर उसे भय ोता कक औरत भी उसकी ईंट का
जवाब पत्थर से न ीिं, ईंट से भी न ीिं; के वल थप्पड से दे सकती ै, तो उसे कभी
इस बदममज़ाजी का सा स न ोता। बेचारी स्त्री ककतनी वववश ै। शायद मैं
कुसुम की जग ोता, तो इस तनटठुरता का जवाब इसकी दसगुनी कठोरता से
देता। उसकी छाती पर मूँूग दलता? सिंसार के ूँसने की ज़रा भी धचतिं ा न करता।
समाज अबलाओिं पर इतना जुल्म देख सकता ै और चूँूतक न ीिं करता, उसके
रोने या ूँसने की मुझे जरा भी परवा न ोती। अरे अभागे युवक! तुझे खबर
न ीिं, तूअपने भववटय की गदान पर ककतनी बेददी से छुरी फेर र ा ै? य व
समय ै, जब पुरुि को अपने प्रणय-भिंडार से स्त्री के माता-वपता, भाई-ब न,
सखखयाूँ-स ेमलयाूँ, सभी के प्रेम की पूतता करनी पडती ै। अगर पुरुि में य
सामर्थया न ीिं ैतो स्त्री की क्षधुित आत्मा को कैसे सिंतुटट रख सकेगा। पररणाम
व ी ोगा, जो ब ुिा ोता ै। अबला कुढ़-कुढ़कर मर जाती ै। य ी व समय ै,
्जसकी स्मतृत जीवन में सदैव के मलए ममठास पैदा कर देती ै। स्त्री की
प्रेमसुिा इतनी तीव्र ोती ै कक व पतत का स्ने पाकर अपना जीवन सफल
समझती ैऔर इस प्रेम के आिार पर जीवन के सारे कटटों को ूँस- ूँसकर स
लेती ै। य ी व समय ै, जब हृदय में प्रेम का बसिंत आता ै और उसमें नई-
नई आशा-कोंपलें तनकलने लगती ैं। ऐसा कौन तनदायी ै, जो इस ऋतुमें उस
वक्षृ पर कुल् ाडी चलाएगा। य ी व समय ै, जब मशकारी ककसी पक्षी को उसके
बसेरे से लाकर वपजिं रे में बिंद कर देता ै। क्या व उसकी गदान पर छुरी
चलाकर उसका मिुर गान सुनने का आशा रखता ै?
मैंने दसू रा पत्र पढ़ना शुरू ककया -
मेरे जीवन-िन! दो सप्ता जवाब की प्रतीक्षा करने के बाद आज कफर य ी
उला ना देने बैठ ूूँ। जब मनैं े व पत्र मलखा था, तो मेरा मन गवा ी दे र ा था
कक उसका उत्तर जरूर आएगा। आशा के ववरुद्ध आशा लगाए ुए थी। मेरा मन
अब भी इसे स्वीकार न ीिं करता कक जान-बूझकर उसका उत्तर न ीिं हदया।
कदाधचत् आपको अवकाश न ीिं ममला, या ईश्वर न करें, क ीिं आप अस्वस्थ तो
न ीिं ो गए? ककससे पूछूूँ? इस ववचार से ी मेरा हृदय काूँप र ा ै। मेरी ईश्वर
से य ी प्राथना ा ै कक आप प्रसन्न और स्वस्थ ों। पत्र मुझे न मलखें, न स ी,
रोकर चुप ी तो ो जाऊूँगी। आपको ईश्वर का वास्ता ै; अगर आपको ककसी
प्रकार का कटट ो, तो तुरिंत पत्र मलखखए, मैं ककसी को साथ लेकर आ जाऊूँ गी।
मयाादा और पररपाटी के बिंिनों से मेरा जी घबराता ै, ऐसी दशा में भी यहद
आप मुझे अपनी सेवा से विंधचत रखते ैं, तो आप मुझसे मेरा व अधिकार छ न
र े ै, जो मेरे जीवन की सबसे मूल्यवान् वस्तु ै। मैंआपसे और कुछ न ीिं
माूँगती, आप मुझे मोटे-से-मोटा खखलाइए, मोटे-से-मोटा प नाइए, मुझे जरा भी
मशकायत न ोगी। मैं आपके साथ घोर-से-घोर ववप्त्त में भी प्रसन्न र ूूँगी।
मुझे आभूिणों की लालसा न ीिं, म ल में र ने की लालसा न ीिं, सैर-तमाशे की
लालसा न ीिं, िन बटोरने की लालसा न ीिं। मेरे जीवन का उद्देश्य के वल आपकी
सेवा करना ै। य ी उसका ध्येय ै। मेरे मलए दतुनया में कोई देवता न ीिं, कोई
गुरु न ीिं, कोई कीम न ीिं। मेरे देवता आप ै, मेरे राजा आप ै, मुझे अपने
चरणों से न टाइए, मुझे ठुकराइए न ीिं। मैंसेवा और प्रेम के फूल मलये, कताव्य
और व्रत की भेंट अिंचल में सजाए आपकी सेवा में आई ूूँ। मुझे इस भेंट को,
इन फूलों को अपने चरणों में रखने दी्जए। उपासक का काम तो पूजा करना
ै। देवता उसकी पूजा स्वीकार करता ैया न ीिं, य सोचना उसका िमा न ीिं।
मेरे मसरताज! शायद आपको पता न ीिं, आजकल मेरी क्या दशा ै। यहद मालमू
ोता, तो आप इस तनटठुरता का व्यव ार न करत।े आप पुरुि ै, आपके हृदय में
दया ै, स ानुभूतत ै, उदारता ै, मैंववश्वास न ीिं कर सकती कक आप मुझ जैसी
नाचीज़ पर क्रोि कर सकते ै। मैंआपकी दया के योग्य ूूँ - ककतनी दबुला ,
ककतनी अपिंग, ककतनी बेज़बान! आप सूया ै, मैंअणु ूूँ; आप अ्ग्न ै, मैंतणृ ूूँ;
आप राजा ै, मैंमभखाररन ूूँ। क्रोि, तो बराबरवालों पर करना चाह ए, मैं भला
आपके क्रोि का आघात कैसे स सकती ूूँ? अगर आप समझते ै कक मैं
आपकी सेवा के योग्य न ीिं ूूँ, तो मुझे अपने ाथों से ववि का प्याला दे दी्जए।
मैंउसे सुिा समझकर मसर और आूँखों से लगाऊूँगी और आूँखें बिंद करके पी
जाऊूँ गी। जब जीवन आपकी भेंट ो गया, तो आप मारें या ्जलाएूँ, य आपकी
इच्छा ै। मुझे य ी सिंतोि काफी ै कक मेरी मत्ृयुसे आप तन्श्चिंत ो गए। मैं
तो इतना ी जानती ूूँ कक मैंआपकी ूूँऔर सदैव आपकी र ूूँगी; इस जीवन में
ी न ीिं, ब्ल्क अनिंत तक।
अभाधगनी,
कुसुम
य पत्र पढ़कर मुझे कुसुम पर भी झूँुझला ट आने लगी और उस लौंडे से तो
घणृ ा ो गई। माना, तुम स्त्री ो, आजकल के प्रथानुसार पुरुि को तुम् ारे ऊपर
र तर का अधिकार ै, लेककन नम्रता की भी तो कोई सीमा ोती ै? तो उसे
भी चाह ए कक उसकी बात न पूछे। ्स्त्रयों को िमा और त्याग का पाठ पढ़ा-
पढ़ाकर मने उनके आत्म-सम्मान और आत्म-ववश्वास दोनों का ी अिंत कर
हदया। अगर पुरुि स्त्री का म ुताज न ीिं, तो स्त्री भी पुरुि की मु ताज क्यों ै?
ईश्वर ने पुरुि को ाथ हदये ै, तो क्या स्त्री को उससे विंधचत रखा ै? पुरुि के
पास बुवद्ध ै, तो क्या स्त्री अबोि ै? इसी नम्रता ने तो मरदों का ममजाज
आसमान पर प ुूँचा हदया। पुरुि रूठ गया, तो स्त्री के मलए मानो प्रलय आ
गया। मैंतो समझता ूूँ, कुसुम न ीिं, उसका अभागा पतत ी दया के योग्य ै, जो
कुसुम-जैसी स्त्री की कद्र न ीिं कर सकता। मुझे ऐसा सिंदे ोने लगा कक इस
लौंडे ने कोई दसू रा रोग पाल रखा ै। ककसी मशकारी के रिंगीन जाल में फूँसा
ुआ ै।
खैर, मैंने तीसरा पत्र खोला -
वप्रयतम! अब मुझे मालूम ो गया कक मेरी ्जिंदगी तनरुद्देश्य ै। ्जस फूल को
देखनेवाला, चुननेवाला कोई न ीिं. व खखलें तो क्यों? क्या इसीमलए कक मुरझाकर
जमीन पर धगर पडे और पैरों से कुचल हदया जाए? मैं आपके घर में एक म ीना
र कर दोबारा आई ूूँ। ससुरजी ी ने मुझे बुलाया, ससुरजी ी ने मुझे बबदा कर
हदया। इतने हदनों में आपने एक बार भी मुझे दशान न हदये। आप हदन में बीसों
ी बार घर में आते थे, अपने भाई-ब नों से ूँसते-बोलते थे, या ममत्रों के साथ
सैर-तमाशे देखते थे; लेककन मेरे पास आने की आपने कसम खा ली थी। मैंने
ककतनी बार आपके पास सिंदेश भेजे, ककतना अनुनय-ववनय ककया, ककतनी बार
बेशमी करके आपके कमरे में गई; लेककन आपने कभी मुझे आूँख उठाकर भी न
देखा। मैं तो कल्पना ी न ीिं कर सकती कक कोई प्राणी इतना हृदय ीन ो
सकता ै। प्रेम के योग्य न ीिं, ववश्वास के योग्य न ीिं, सेवार करने के भी योग्य
न ीिं, तो क्या दया के भी योग्य न ीिं?
मनैं े उस हदन ककतनी मे नत और प्रेम से आपके मलए रसगुल्ले बनाए थे।
आपने उन् ें ाथ से छुआ भी न ीिं। जब आप मुझसे इतने ववरक्त ैं, तो मेरी
समझ में न ीिं आता कक जीकर क्या करूूँ? न-जाने य कौन-सी आशा ै, जो मुझे
जीववत रखे ुए ै। क्या अिंिेर ै कक आप सजा तो देते ै; पर अपराि न ीिं
बतलाते। य कौन-सी नीतत ै? आपको ज्ञात ै, इस एक मास में मनैं े मु्श्कल
से दस हदन आपके घर में भोजन ककया ोगा। मैंइतनी कमजोर ो गई ूूँ कक
चलती ूूँतो आूँखों के सामने अूँिेरा छा जाता ै। आूँखों में जैसे ज्योतत ी न ीिं
र ी! हृदय में मानो रक्त का सिंचालन ी न ीिं र ा। खैर, सता ली्जए, ्जतना जी
चा े। इस अनीतत का अिंत भी एक हदन ो ी जाएगा। अब तो मत्ृयु ी पर
सारी आशाएूँ हटकी ुई ैं। अब मुझे प्रतीत ो र ा ै कक मेरे मरने की खबर
पाकर आप उछलेंगे और ल्की साूँस लेंगे, आपकी आूँखों से आूँसूकी एक बूँूद भी
न धगरेगी; पर य आपका दोि न ीिं, मेरा दभु ााग्य ै। उस जन्म में मनैं े कोई
ब ुत बडा पाप ककया था। मैंचा ती ूूँ मैंभी आपकी परवा न करूूँ, आप ी
की भाूँतत आपसे आखें फेर लूँू, मूँु फेर लूँू, हदल फेर लूँू; लेककन न-जाने क्यों
मुझमें व श्क्त न ीिं ै। क्या लता वक्षृ की भाूँतत खडी र सकती ै? वक्षृ के
मलए ककसी स ारे की जरूरत न ीिं। लता व श्क्त क ाूँ से लाए? व तो वक्षृ से
मलपटने के मलए पैदा की गई ै। उसे वक्षृ से अलग कर दो और व सूख
जाएगी। मैंआपसे पथृ क् अपने अ्स्तत्व की कल्पना ी न ीिं कर सकती। मेरे
जीवन की र एक गतत, प्रत्येक ववचार, प्रत्येक कामना में आप मौजूद ोते ैं।
मेरा जीवन व वत्ृत ै, ्जसके केंद्र आप ै। मैंव ार ूूँ, ्जसके प्रत्येक फूल
में आप िागे की भाूँतत घुसे ैं। उस घागे के बगैर ार के फूल बबखर जाएूँगे
और िूल में ममल जाएूँगे।
मेरी एक स ेली ै, शन्नो। उसका इस साल पाखणग्र ण ो गया ै। उसका पतत
जब ससुराल आता ै, शन्नो के पाूँव जमीन पर न ीिं पडते। हदन-भर में न जाने
ककतने रूप बदलती ै। मुख-कमल खखल जाता ै। उल्लास सूँभाले न ीिं सूँभलता।
उसे बबखेरती, लुटाती चलती ै - म जैसे अभागों के मलए। जब आकर मेरे गले
से मलपट जाती ै, तो िा और उन्माद की विाा से जैसे मैंलथपथ ो जाती ूूँ।
दोनों अनुराग से मतवाले ो र े ैं। उनके पास िन न ीिं ै, जायदाद न ीिं ै।
मगर अपनी द्रररद्रता में ी मगन ैं। इस अखिंड प्रेम का एक क्षण! उसकी
तुलना में सिंसार की कौन-सी वस्तु रखी जा सकती ै? मैं जानती ूूँ, य
रूँगरेमलयाूँ और बेकफकक्रयाूँ ब ुत हदन न र ेंगी। जीवन की धचतिं ाएूँ और दरुाशाएूँ
उन् ें भी परास्त कर देंगी, लेककन ये मिुर स्मतृतयाूँ सिंधचत िन की भाूँतत अिंत
तक उन् ें स ारा देती र ेंगी। प्रेम में भीगी ुई सूखी रोहटयाूँ, प्रेम में रूँगे ुए मोटे
कपडे और प्रेम के प्रकाश से आलोककत छोटी-सी कोठरी, अपनी इस ववपन्नता में
भी व स्वाद, व शोभा और ववश्राम रखती ै, जो शायद देवताओिं को स्वगा में
भी नसीब न ीिं। जब शन्नों का पतत अपने घर चला जाता ै, तो व दखुखया
ककस तर फूट-फूटकर रोती ै कक मेरा हृदय गद् गद ो जाता ै। उसके पत्र आ
जाते ैं, तो मानो उसे कोई ववभूतत ममल जाती ै। उसके रोने में भी, उसकी
ववफलताओिं में भी, उसके उपालम्भों में भी एक स्वाद ै, एक रस ै। उसके आसूँ ू
व्यग्रता और ववह्वलता के ैं, मेरे आूँसू तनराशा और दःुख के। उसकी व्याकुलता
में प्रतीक्षा और उल्लास ै, मेरी व्याकुलता में दैन्य और परवशता। उसके
उपालम्भ में अधिकार और ममता ै, मेरे उपालम्भ में भग्नता और रुदन!
पत्र लिंबा ुआ जाता ै और हदल का बोझ लका न ीिं ोता। भयिंकर गरमी पड
र ी ै। दादा मुझे मसूरी ले जाने का ववचार कर र े ै। मेरी दबुला ता से उन् ें
'टी.बी.' का सिंदे ो र ा ै। व न ीिं जानते कक मेरे मलए मसूरी न ीिं, स्वगा भी
काल-कोठरी ै।
अभाधगन,
-कुसुम
मेरे पत्थर के देवता! कल मसरूी से लौट आई। लोग क ते ै, बडा स्वास्र्थयवद्धाक
और रमणीक स्थान ै, ोगा। मैं तो एक हदन भी कमरे से न ीिं तनकली। भग्न-
हृदयों के मलए सिंसार सूना ै।
मैंने रात एक बडे मजे का सपना देखा। बतलाऊूँ; पर क्या फायदा? न जाने क्यों
मैंअब भी मौत से डरती ूूँ। आशा का कच्चा िागा मुझे अब भी जीवन से बाूँिे
ुए ै। जीवन-उद्यान के द्वार पर जाकर बबना सैर ककए लौट आना ककतना
सरतनाक ै। अिंदर क्या सुिमा ै, क्या आनिंद ै। मेरे मलए व द्वार ी बिंद
ै। ककतनी अमभलािाओिं से वव ार का आनिंद उठाने चली थी - ककतनी तैयाररयों
से - पर मेरे प ुूँचते ी द्वार बिंद ो गया ै।
अच्छा बतलाओ, मैंमर जाऊूँगी तो मेरी लाश पर आूँसू की दो बूिंदें धगराओिंगे?
्जसकी ्जिंदगी-भर की ्जम्मेदारी ली थी, ्जसकी सदैव के मलए बाूँ पकडी थी,
क्या उसके साथ इतनी भी उदारता न करोगे? मरनेवालों के अपराि सभी क्षमा
कर हदया करते ैं। तुम भी क्षमा कर देना। आकर मेरे शव को अपने ाथों से
न लाना, अपने ाथों से सो ाग के मसदिं रू लगाना, अपने ाथ से सो ाग की
चूडडयाूँ प नाना, अपने ाथ से मेरे मूँु में गिंगाजल डालना, दो-चार पग किं िा दे
देना, बस, मेरी आत्मा सिंतुटट ो जाएगी और तुम् ें आशीवादा देगी। मैंवचन देती
ूूँ कक मामलक के दरबार में तुम् ारा यश गाऊूँगी। क्या य भी म ूँगा सौदा ै?
इतने-से मशटटाचार से तुम अपनी सारी ्जम्मेदाररयों से मुक्त ुए जाते ो।
आ ! मुझे ववश्वास ोता कक तुम इतना मशटटाचार करोगे, तो मैंककतनी खुशी से
मौत का स्वागत करती। लेककन मैंतुम् ारे साथ अन्याय न करूूँगी। तुम ककतने
ी तनटठुर ो, इतने तनदायी न ीिं ो सकत।े मैंजानती ूूँ; तुम य समाचार पाते
ी आओगे और शायद एक क्षण के मलए मेरी शोक-मत्ृयु पर तुम् ारी आूँखें रो
पड।े क ीिं मैंअपने जीवन में व शुभ अवसर देख सकती!
अच्छा, क्या मैंएक प्रश्न पूछ सकती ूूँ? नाराज न ोना। क्या मेरी जग ककसी
और सौभाग्यवती ने ले ली ै? अगर ऐसा ै, तो बिाई! जरा उसका धचत्र मेरे
पास भेज देना। मैंउसकी पूजा करूूँगी, उसके चरणों पर शीश नवाऊूँ गी। मैं ्जस
देवता को प्रसन्न न कर सकी, उसी देवता से उसने वरदान प्राप्त कर मलया।
ऐसी सौभाधगनी के तो चरण िो-िो पीना चाह ए। मेरी ाहदाक इच्छा ै कक तुम
उसके साथ सुखी र ो। यहद मैंउस देवी की कुछ सेवा कर सकती, अपरोक्ष न
स ी, परोक्ष रूप से ी तुम् ारे कुछ काम आ सकती। अब मझु े केवल उसका शुभ
नाम और स्थान बता दो, मैं मसर के बल दौडी ुई उसके पास जाऊूँगी और
क ूूँगी - देवी, तुम् ारी लौंडी ूूँ, इसमलए कक तुम मेरे स्वामी की प्रेममका ो। मुझे
अपने चरणों में शरण दो। मैंतुम् ारे मलए फूलों की सेज बबछाऊूँगी, तुम् ारी माूँग
मोततयों से भरूूँगी, तुम् ारी एडडयों में म ावर रचाऊूँगी - य मेरी जीवन की
सािना ोगी! य न समझना कक मैंजलूँूगी या कुढूूँगी। जलन तब ोती ै, जब
कोई मुझे मेरी वस्तुछ न र ा ो। ्जस वस्तुको अपना समझने का मुझे कभी
सौभाग्य न ुआ, उसके मलए मुझे जलन क्यों ो।
अभी ब ुत कुछ मलखना था; लेककन डाक्टर सा ब आ गए ै। बेचारा हृदयदा को
टी.बी. समझ र ा ैं।
दःुख की सताई ुई,
कुसुम
इन दोनों पत्रों ने िैया का प्याला भर हदया! मैंब ुत ी आवेश ीन आदमी ूूँ।
भावुकता मुझे छू भी न ीिं गई। अधिकािंश कलाववदों की भाूँतत मैंभी शब्दों से
आिंदोमलत न ीिं ोता। क्या वस्तु हदल से तनकलती ै, क्या वस्तुममा को स्पशा
करने के मलए मलखी गई ै, य भेद ब ुिा मेरे साह ्त्यक आनिंद में बािक ो
जाता ै, लेककन इन पत्रों ने मुझे आपे से बा र कर हदया। एक स्थान पर तो
सचमुच मेरी आूँखें भर आईं। य भावना ककतनी वेदनापूणा थी कक व ी बामलका,
्जस पर माता-वपता प्राण तछडकते र ते थे, वववा ोते ी इतनी ववपदग्रस्त ो
जाए! वववा क्या ुआ, मानो उसकी धचता बनी, या उसकी मौत का परवाना
मलखा गया। इसमें सिंदे न ीिं कक ऐसी वैवाह क दघु टा नाएूँ कम ोती ैं; लेककन
समाज की वतामान दशा में उनकी सिंभावना बनी र ती ै। जब तक स्त्री-पुरुि
के अधिकार समान न ोंगे, ऐसे आघात तनत्य ोते र ेंगे। दबुला को सताना
कदाधचत् प्राखणयों का स्वभाव ै। काटनेवाले कुत्तों से लोग दरू भागते ै, सीिे
कुत्ते पर बालविंदृ ववनोद के मलए पत्थर फेंकते ैं। तुम् ारे दो नौकर एक ी
श्रेणी के ों, उनमें कभी झगडा न ोगा; लेककन आज उनमें से एक अफसर और
दसू रे को उसका मात त बना दो, कफर देखो, अफसर सा ब अपने मात त पर
ककतना रोब जमाते ैं। सुखमय दाम्पत्य की नीिंव अधिकार-साम्य पर ी रखी
जा सकती ै। इस वैिम्य में प्रेम का तनवास ो सकता ै, मुझे तो इसमें सिंदे
ै। म आज ्जसे स्त्री-पुरुिों में प्रेम क ते ै, व व ी प्रेम ै, जो स्वामी को
अपने पशुसे ोता ै। पशु मसर झुकाए काम ककए चला जाए, स्वामी उसे भूसा
और खली भी देखा, उसकी दे भी स लाएगा, उसे आभूिण भी प नाएगा; लेककन
जानवर ने जरा चाल िीमी की, जरा गदान टेढ़ी की कक मामलक का चाबुक पीठ
पर पडा। इसे प्रेम न ीिं क ते।
खैर, मैंने पाूँचवाूँ पत्र खोला -
जैसा मुझे ववश्वास था, आपने मेरे वपछले पत्र का भी उत्तर न हदया। इसका
खुला ुआ अथा य ै कक आपने मुझे पररत्याग करने का सिंकल्प कर मलया ै।
जैसी आपकी इच्छा! पुरुि के मलए स्त्री पाूँव की जूती ै, स्त्री के मलए तो पुरुि
देव तुल्य ै, ब्ल्क देवता से भी बढ़कर। वववेक का उदय ोते ी व पतत की
कल्पना करने लगती ै। मैंने भी व ी ककया। ्जस समय मैंगुडडया खेलती थी,
उसी समय आपने गुड्डे के रूप में मेरे मनोदेश में प्रवेश ककया। मनैं े आपके
चरणों को पखारा, माला-फूल और नैवेद्य से आपका सत्कार ककया। कुछ हदनों के
बाद क ातनयाूँसुनने और पढ़ने की चाट पडी, तब आप कथाओिं के नायक के रूप
में मेरे घर आए। मैंने आपको हृदय में स्थान हदया। बाल्यकाल ी से आप
ककसी-न-ककसी रूप में मेरे जीवन में घुसे ुए थे। वे भावनाएूँ मेरे अिंतरस्तल की
ग राइयों तक प ुूँच गई ै। मेरे अ्स्तत्व का एक-एक अणु उन भावनाओिं से
गूँुथा ुआ ै। उन् ें हदल से तनकाल डालना स ज न ीिं ै। उसके साथ मेरे जीवन
के परमाणु भी बबखर जाएूँगे, लेककन आपकी य ी इच्छा ै तो य ी स ी। मैं
आपकी सेवा में सब कुछ करने को तैयार थी। अभाव और ववपन्नता का तो
क ना ी क्या मैं तो अपने को ममटा देने को भी राजी थी। आपकी सेवा में ममट
जाना ी मेरे जीवन का उद्देश्य था। मैंने लज्जा और सिंकोच का पररत्याग ककया,
आत्म-सम्मान को पैरों से कुचला, लेककन आप मुझे स्वीकार न ीिं करना चा त।े
मजबूर ूूँ। आपका कोई दोि न ीिं। अवश्य मुझसे कोई ऐसी बात ो गई ै,
्जसने आपको इतना कठोर बना हदया ै। आप उसे जबान पर लाना भी उधचत
न ीिं समझत।े मैंइस तनटठुरता के मसवा और र एक सजा झेलने को तैयार
थी। आपके ाथ से ज र का प्याला लेकर पी जाने में मुझे ववलिंब न ोता, ककिंतु
ववधि की गतत तनराली ै! मुझे प ले इस सत्य के स्वीकार करने में बािा थी
कक स्त्री पुरुि की दासी ै। मैंउसे पुरुि की स चरी, अद्धााधगनी समझती थी, पर
अब मेरी आूँखें खुल गई। मनैं े कई हदन ुए एक पुस्तक में पढ़ा था कक
आहदकाल में स्त्री पुरुि की उसी तर सिंप्त्त थी, जैसा गाय-बैल या खेतबारी।
पुरुि को अधिकार था स्त्री को बेचे, धगरो रखे या मार डाले। वववा की प्रथा उस
समय के वल य थी कक वर-पक्ष अपने सूर सामिंतों को लेकर सशस्त्र आता था
कन्या को उडा ले जाता था। कन्या के साथ कन्या के घर में रुपया-पैसा, अनाज
या पशुजो कुछ उसके ाथ लग जाता था, उसे भी उठा ले जाता था। व स्त्री
को अपने घर ले जाकर, उसके पैरों में बेडडयाूँ डालकर घर के अिंदर बिंद कर देता
था। उसके आत्म-सम्मान के भावों को ममटाने के मलए य उपदेश हदया जाता
था कक पुरुि ी उसका देवता ै, सो ाग स्त्री की सबसे बडी ववभूतत ै। आज कई
जार विों के बीतने पर पुरुि के उस मनोभाव में कोई पररवतना न ीिं ुआ।
पुरानी सभी प्रथाएूँ कुछ ववकृत या सिंस्कृत रूप में मौजूद ै। आज मुझे मालूम
ुआ कक उस लेखक ने स्त्री-समाज की दशा का ककतना सुिंदर तनरूपण ककया था।
अब आपसे मेरा सववनय अनुरोि ै और य ी अिंततम अनुरोि ै कक आप मेरे
पत्रों को लौटा दें। आपके हदए ुए ग ने और कपडे अब मेरे ककसी काम के न ीिं।
इन् ें अपने पास रखने का मुझे कोई अधिकार न ीिं। आप ्जस समय चा ें,
वापस मूँगवा लें। मनैं े उन् ें एक वपटारी में बिंद करके अलग रख हदया ै। उसकी
सूची भी व ीिं रखी ुई ै, ममला ली्जएगा। आज से आप मेरी जबान या कलम
से कोई मशकायत न सुनेंगे। इस भ्रम को भूलकर भी हदल में स्थान न दी्जएगा
कक मैंआपसे बेवफाई या ववश्वासघात करूूँगी। मैंइसी घर में कुढ़-कुढ़कर मर
जाऊूँ गी, पर आपकी ओर से मेरा मन कभी मैला न ोगा। मैं्जस जलवायुमें
पली ूूँ, उसका मूल तत्त्व ै पतत में श्रद्धा। ईटयाा या जलन भी उस भावना को
मेरे हदल से न ीिं तनकाल सकती। मैंआपकी कुल-मयाादा की रक्षक्षका ूूँ। उस
अमानत में जीते-जी खनायत न करूूँगी। अगर मेरे बस में ोता, तो मैं उसे भी
वापस कर देती, लेककन य ाूँ मैं भी मजबूर ूूँ और आप भी मजबूर ै। मेरी
ईश्वर से य ी ववनती ै कक आप ज ाूँ र ें, कुशल से र ें। जीवन में मुझे सबसे
कटु अनुभव जो ुआ, व य ी ै कक नारी-जीवन अिम ै - अपने मलए, अपने
माता-वपता के मलए, अपने पतत के मलए। उसकी कदर न माता के घर में ै, न
पतत के घर में। मेरा घर शोकागार बना ुआ ै। अम्माूँ रो र ी ै, दादा रो र े
ै। कुटुिंब के लोग रो र े ै, एक मेरी जात से लोगों को ककतनी मानमसक वेदना
ो र ी ै, कदाधचत्वे सोचते ोंगे, य कन्या कुल में न आती तो ककतनी अच्छा
ोता। मगर सारी दतुनया एक तरफ ो जाए, आपके ऊपर ववजय न ीिं पा सकती।
आप मेरे प्रभु ै। आपका फैसला अटल ै। उसकी क ीिं अपील न ीिं, क ी फररयाद
न ीिं। खैर, आज से य कािंड समाप्त ुआ। अब मैं ूूँ और मेरा दमलत, भग्न
हृदय। सरत य ी ै कक आपकी कुछ सेवा न कर सकी!
अभाधगनी,
कुसुम
2
मालूम न ीिं, मैंककतनी देर तक मूक वेदना की दशा में बठै ा र ा कक म ाशय
नवीन बोले- आपने इस पत्रों को पढ़कर क्या तनश्चय ककया?
मैने रोते ुए ुदय से क ा- अगर इन पत्रों ने उस नर-वपशाच के हदल पर कोई
असर न ककया, तो मेरा पत्र भला क्या असर करेगा। इससे अधिक करुणा और
वेदना मेरी श्क्त के बा र ैं। ऐसा कौन-सा माममाक भाव ैं, ्जसे इन पत्रों में
स्पशा न ककया गया ो। दया, लज्जा, ततरस्कार, न्याय, मेरे ववचार में तो कुसुम ने
कोई प लून ीिं छोडा। मेरे मलए अब य ी अ्न्तम उपाय ैंकक उस शैतान के
मसर पर सवार ो जाऊूँ और उससे मूँु -दर-मूँु बातें करके इस समस्या की त
तक प ुूँचने की चटेटा करूूँ। अगर उससे मुझे कोई सन्तोिप्रद उत्तर न हदया, तो
मैं उसका और अपना खून एक कर दूँगू ा। या तो मुझे फाूँसी ोगी, या व ी
कालेपानी जायगा। कुसुम ने ्जस िैया और सा स से काम मलया ैं, व
सरा नीय ैं। आप उसे सान्त्वना दी्जएगा। मैंआज रात की गाडी से मुरादाबाद
जाऊूँगा और परसों तक जैसी कुछ परर्स्थतत ोगी; उसकी आपको सूचना दूँगू ा!
मुझे तो य कोई चररत्र ीन और बुवद्ध ीन युवक मालूम ोता ैं।
मैं उस ब क में जाने क्या-क्या बकता र ा। इसके बाद म दोनों भोजन करके
स्टेशन चले। व आगरे गये, मनैं े मुरादाबाद का रास्ता मलया। उनके प्राण अब
भी सूखे जाते थे कक क्रोि के आवेश में कोई पागलपन न कर बैठूूँ। मेरे ब ुत
समझाने पर उनका धचत्त शान्त ुआ।
मैंप्रातःकाल मुरादाबाद प ुूँचा और जाूँच शुरू कर दी। इस युवक के चररत्र के
वविय में मुझे जो सन्देग था, व गलत तनकला। मु ल्ले में, कालेज में ; उसके
इटट-ममत्रों में, सभी उसके प्रशिंसक थे। अूँिेरा और ग रा ोता ुआ जान पडा।
सन्ध्या-समय में उसके घर जा प ुूँचा। ्जस तनटकपट भाव से व दौडकर मेरे
पैरों पर झुका ैं, व मैं न ीिं भूल सकता। ऐसा वाकचतुर, ऐसा सुशील और
ववनीत युवक मैने न ीिं देखा। बा र और भीतर में इतना आकाश-पाताल का
अन्तर मैने कभी न देखा था। मनैं े कुशल-क्षेम और मशटटाचार के दो-चार वाक्यों
के बाद पूछा- तुमसे ममलकर धचत्त शान्त प्रसन्न ुआ; लेककन आखखर कुसुम ने
क्या अपराि ककया ैं, ्जसका तुम उसके इतना कठोर दिंड दे र े ो? उसने
तुम् ारे पास कई पत्र मलखे, तुमने एक का भी उत्तर न हदया। व दो-तीन बार
य ाूँ भी आयी, पर तुम उससे बोले तक न ीिं। क्या उस तनदोि बामलका के साथ
तुम् ारा य अन्याय न ीिं ैं।
युवक ने ल्ज्जत भाव से क ा- ब ुत अच्छा ोता कक आपने इस प्रश्न को न
उठाया ोता। उसका जवाब देना मेरे मलए ब ुत मु्श्कल ैं। मनैं े तो इसे आप
लोगों के अनुमान पर छोड हदया था; लेककन इस गलतफ मी को दरू करने के
मलए मुझे वववश ोकर क ना पडगे ा।
य क ते-क ते व चुप ो गया। बबजली की बत्ती पर भाूँतत-भाूँतत के कीट-
पिंतगे जमा ो गये। कई झीगिं ुर उछल-उछलकर मूँु पर आ जाते थे; और जैसे
मनुटय पर अपनी ववजय का पररचय देकर उड जाते थे। एक बडा-सा अूँखफोड
भी मेज पर बैठा था और शायद जस्त मारने के मलए अपनी दे तौल र ा था।
युवक ने एक पिंखा ला कर मेज पर रख हदया, ्जसने ववजयी कीट-पिंतगों को
हदखा हदया कक मनुटय इतना तनबला न ीिं ैं, ्जतना वे समझ र े थे। एक क्षण
में मैदान साफ ो गया और मारी बातों में दखल देने वाला कोई न र ा।
युवक ने सकुचाते ुए क ा- सम्भव ैं, आप मुझे अत्यन्त लोभी , कमीना और
स्वाथी समझे; लेककन यथाथा य ै कक इस वववा से मेरी अमभलािा न पूरी ुई,
जो मुझे प्राणों से भी वप्रय थी। मैंवववा पर रजामन्द न था, अपने पैरों पर
बेडडयाूँ न डालना चा ता था; ककन्तुजब म ाशय नवीन ब ुत पीछे पड गये और
उनकी बातों से मुझे य आशा ुई कक व सब प्रकार से मेरी स ायता करने को
तैयार ैं, तब मैं राजी ो गया; पर वववा ोने के बाद उन् ोंने मेरी बात भी न
पूछ । मुझे एक पत्र भी न मलखा कक कब तक व मुझे ववलायत भेजने का
प्रबन्ि कर सकें गे। ालािंकक मैंने अपनी इच्छा उन पर प ले ी प्रकट कर दी थी;
पर उन् ोंने मुझे तनराश करना ी उधचत समझा। उनकी इस अकृपा ने मेरे सारे
मनसूबे िूल में ममला हदये। मेरे मलए अब इसके मसवा और क्या र गया ैंकक
एल.एल.बी. पास कर लूँूऔर कच री में जूती फटफटाता कफरूूँ।
मैने मशकायत की- तो आखखर तुम नवीनजी से क्या चा ते ो? लेन-देन में तो
उन् ोंने मशकायत का कोई अवसर न ीिं हदया। तुम् ें ववलायत भेजने का खचा तो
शायद उनके काबूसे बा र ो।
युवक ने मसर झुकाकर क ा- तो य उन् ें प ले ी मुझसे क देना चाह ए था।
कफर मैं वववा ी क्यो करता? उन् ोंने चा े ककतना ी खचा कर डाला ो; पर
इससे मेरा क्या उपकार ुआ? दोनों तरफ से दस-बार जार रुपये खाक में ममल
गये और उनके साथ मेरी अमभलािाएूँ खाक में ममल गयी। वपताजी पर तो कई
जार का ऋण ो गया ैं। व अब मुझे इिंगलैंड न ीिं भेज सकत।े क्या पूज्य
नवीनजी चा ते तो मुझे इिंगलडैं न ीिं भेज देत? े उनके मलए दस-पाूँच जार की
कोई कीकत न ीिं।
मैं सन्नाटे मे आ गया। मेरे मूँु से अनायास तनकल गया- तछः! वा री दतुनया!
और वा रे ह न्द-ूसमाज! तेरे य ाूँ ऐसे-ऐसे स्वाथा के दास पडे ुए ैं, जो एक
अबला का जीवन सिंकट में डालकर उसके वपता पर ऐसे अत्याचार पूणा दबाव
डालकर ऊूँ चा पद प्राप्त करना चा ते ैं। ववद्याजान के मलए ववदेश जाना बुरा
न ीिं। ईश्वर सामर्थया दे तो शौक से जाओ; ककन्तुपत्नी का पररत्याग करके ससुर
पर इसका भार रखना तनलाज्जता की पराकाटठा ैं। तारीफ की बात तो तब थी
कक तुम अपने पुरुिाथा से जात।े इस तर ककसी की गदान पर सवार ोकर,
अपना आत्म-सम्मान बेचकर गये तो क्या गये। इस पामर का दृ्टट में कुसुम
का कोई मूल्य ी न ीिं। व केवल उसकी स्वाथ-ामसवद्ध का सािनमात्र ैं। ऐसे
नीच प्रकृतत के आदमी से कुछ तका करना व्यथा था। परर्स्थतत ने मारी
चुहटया उसके ाथ में रखी थी और में उसके चरणों पर मसर झुकाने के मसवाय
और कोई उपाय न था।
दसू री गाडी से मैंआगरे जा प ुूँचा और नवीनजी से य वत्ृतािंत क ा। उन बेचारे
को क्या मालूम था कक य ाूँ सारी ्जम्मेदारी उन् ीिं के मसर डाल दी गयी ै।
यद्यवप इस मन्दी ने उनकी वकालत ठिंडी कर रखी ै और व दस-पाूँच जार
का खचा सुगमता से न ीिं उठा सकते लेककन इस युवक ने उनसे इसका सिंके त
भी ककया ोता, तो व अवश्य कोई-न-कोई उपाय करत।े कुसुम के मसवा दसू रा
उनका कौन बैठा ुआ ै? उन बेचारे को तो इस बात का ज्ञान ी न था। अतएव
मैंने उनसे य समाचार क ा, तो व बोल उठे- तछः! इस जरा-सी बात के मलए
इस भले आदमी ने इतना तूल दे हदया। आप आज ी उसे मलख दें कक व
्जस वक़्त ज ाूँ पढ़ने के मलए जाना चा े, शौक से जा सकता ैं। मैं उसका सारा
भार स्वीकार करता ूूँ। साल-भर तक तनदायी ने कुसुम को रुला-रुलाकर मार
डाला।
घर में इसकी चचाा ुई। कुसुम ने भी माूँ से सुना। मालूम ुआ, एक जार का
चेक उसके पतत के नाम भेजा जा र ा ैं; पर इस तर , जैसे ककसी सिंकट का
मोचन करने के मलए अनुटठान ककया जा र ा ो।
कुसुम ने भकृ ुटी मसकोडकर क ा- अम्माूँ, दादा से क दो, क ीिं रुपयें भेजने की
जरूरत न ीिं।
माता ने वव्स्मत ोकर बामलका की ओर देखा- कै से रुपये? अच्छा! व ! क्यों
इसमें क्या जा ैं? लडके का मन ै, तो ववलायत जाकर पढ़े। म क्यों रोकने
लगे? यों भी उसी का ैं, वो भी उसी का नाम ैं। में कौन छाती पर लादकर ले
जाना ैं?
'न ीिं, आप दादा से क दी्जए, एक पाई न भेजें।'
'आखखर इसमें क्या बुराई ैं?'
'इसीमलए कक य उसी तर की डाकाजनी ैं, जैसा बदमाश लोग ककया करते ैं।
अच्छे आदमी को पकडकर ले गये और उसके घरवालों से उसके मु्क्तिन के
तौर पर अच्छ रकम ऐिंठ ली।'
माता ने ततरस्कार की आूँखों से देखा।
'कै सी बातें करती ो बेटी? इतने हदनों के बाद को जाके देवता सीिे ुए ैंऔर
तुम उन् ें कफर धचढ़ाये देती ो।'
कुसुम ने झल्लाकर क ा- ऐसे देवता का रूठे र ना ी अच्छा। जो आदमी इतनी
स्वाथी, इतना दम्भी, इतना नीच ै, उसके साथ मेरा तनवाा न ोगा। मैं क े देती
ूूँ, व ाूँ रुपये गये; तो मैं ज र खा लूँूगी। इसे हदल्लगी न समझना। मैं ऐसे
आदमी का मूँु भी न ीिं देखना चा ती। दादा से क देना और तुम् ें डर लगता
ो तो मैंखुद क दूँ!ू मनैं े स्वतन्त्र र ने का तनश्चय कर मलया ैं।
माूँ ने देखा, लडकी का मुखमिंडल आरक्त ो उठा ैं। मानो इस प्रश्न पर व न
कुछ क ना चा ती ैं, न सुनना।
दसू रे हदन नवीनजी ने य ाल मुझसे क ा, तो मैं एक आत्म-ववस्मतृ की दशा
में दौडा ुआ गया और कुससु को गले लगा मलया। मैं नाररयों में ऐसा ी
आत्मामभमान देखना चा ता ूूँ। कुसुम ने व कर हदखाया, जो मेरे मन में था
और ्जसे प्रकट करने का सा स मुझमें न था।
साल-भर ो गया ै, कुसुम ने पतत के पास एक पत्र भी न ीिं मलखा और न
उसका ्जक्र ी करती ै। नवीनजी ने कई बार जमाई को मना लाने की इच्छा
प्रकट की; पर कुसुम उसका नाम भी न ीिं सुनना चा ती । उसमें स्वावलम्बन की
ऐसी ढृढता आ गयी ैंकक आश्चया ोता ै। उसके मुख पर तनराशा और वेदना
के पीलेपन और तेज ीनता की जग स्वामभमान और स्वतन्त्रता की लाली और
तेज्स्वता भामसत ो गयी ै।
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